ओम शांति ओम: यथार्थ से कोसों दूर


-अजय ब्रह्मात्मज

फराह खान और शाहरुख खान की ओम शांति ओम का भी वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है। इंटरवल तक की फिल्म फिर भी मनोरंजक और रोचक लगती है। उसके बाद पुनर्जन्म, आत्मा, न्याय और बदले का जो वितान बुना गया है, वह उबाऊ है। फराह ने अगर इंटरवल तक की कहानी पर ही पूरी फिल्म बना दी होती तो अधिक प्रभावशाली निर्मित होती।
फिल्म में दो ओम हैं, एक शांति है। एक सैंडी है, जो बाद में शांति का रूप लेती है। और एक शांति की अतृप्त आत्मा है, जो निर्माता मुकेश मेहरा से बदला लेने के बाद ही शांत होती है। चलिए थोड़ा विस्तार में चलें। ओमप्रकाश मखीजा (शाहरुख) जूनियर फिल्म आर्टिस्ट है। वह स्टार बनने के ख्वाब देखता है। उसे शांतिप्रिया से प्रेम हो गया है। वह सेट पर लगी आग से शांति को जान पर खेल कर बचाता है। शांति उसके जोखिम से प्रभावित होती है। ओम को लगता है कि शांति उसे चाहने लगी हैं। ओम का प्यार पींगें मारने लगता है। अगली बार जब मुकेश मेहरा शांति को सचमुच आग में झोंक देता है तो उसे बचाने के चक्कर में ओम जान भी गवां बैठता है। यहीं इंटरवल होता है। हमें पता चलता है कि ओम का पुनर्जन्म हो गया है। नए ओम को पिछले जन्म की बातें याद आ जाती हैं। वह शांति को न्याय दिलाने के लिए व्यूह रचता है। उस व्यूह में शांति की आत्मा आकर बदला लेती है। मालूम नहीं 21वीं सदी में मनोरंजन के नाम पर परोसे गए इस अंधविश्वास पर कितने दर्शक यकीन करेंगे? अगर यह फिल्म शाहरुख की नहीं होती तो कहानी के आधार पर इसे सी ग्रेड फिल्म कहा जाता।
शाहरुख और फराह ने इसे सेवेंटीज (आठवें दशक) की खासियत के तौर पर परोसते हुए मनमोहन देसाई की शैली से जोड़कर खुद को प्रतिष्ठित करने की कोशिश की है। माफ करें, मनमोहन देसाई की फिल्मों में लाजिक नहीं होता था लेकिन उनकी फिल्में अंधविश्वास को बढ़ावा भी नहीं देती थीं। फराह की फिल्म तो 21वीं सदी की कहानी में अंधविश्वास का सहारा लेती है। ..और यह सब मनोरंजन के नाम पर हो रहा है। आाखिर दर्शकों को क्या समझा या समझाया जा रहा है?
फिल्म का तकनीकी पक्ष उत्तम है। स्पेशल इफेक्ट से दृश्य प्रभावशाली हो गए हैं। कोशिश की गई है कि शाहरुख की देहयष्टि दिखा कर नई उम्र के दर्शकों को आकर्षित किया जाए, लेकिन उनकी देह सलमान और जान अब्राहम के समकक्ष नहीं आ पाती। अभिनय के लिहाज से इंटरवल के पहले के शाहरुख ठीक लगते हैं। बाद के शाहरुख अपने किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाते। दीपिका पादुकोण में आकर्षण है। इस फिल्म की वह एक उपलब्धि हैं। गीत-संगीत विषय के अनुकूल है। पापुलर हो चुके गानों के फिल्मांकन व संयोजन में फराह की खूबी दिखती है। एक गाने में तो ढेर सारे कलाकार आये हैं।

Comments

जानकारी के लिए धन्यवाद
इन्दु said…
पता नही कैसे खालिद मोहम्मद ने इस फिल्म को ३-४ स्टार दे दिए, खासी आगे की सीट में बैठकर एक उबाऊ फिल्म देखनी पड़ी और भयानक सिरदर्द लेकर घर लौटे. थोडा बहुत जो रोमांच है, वह इंटरवल से पहले ही है, बाद में तो ....लेकिन ये लड़की दीपिका काफी इम्प्रेसिव लगी.
Anonymous said…
Kahin ki Eent Kahin Ka Roda, Farah Madam ne kunba joda. Kuchh hollywood se liya, kuchh Karz se liya aur climax poora Madhumati se copy kar liya. Bahut saare gags jo yesteryear stars par hain wo sab Sajid Khan ke TV comedy (??) shows mein kai baar dikhaye ja chuke hain. Lekin itna sab hote hue bhi SRK aur FK ki ye chaat bahut paise kamayegi box-office par. Deepika ki jodi jamegi with Hrithik, Abhishek aur Neil Mukesh jaise well built heroes ke saath. Khan uncles to saare bechare chhote chhote hain.

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