21वीं सदी का देवदास है देव डी: अनुराग कश्यप

-अजय ब्रह्मात्मज

शरतचंद्र के उपन्यास देवदास पर हिंदी में तीन फिल्में बन चुकी हैं। इनके अलावा, कई फिल्में उससे प्रभावित रही हैं। युवा फिल्मकार अनुराग कश्यप की देव डी एक नई कोशिश है। इस फिल्म में अभय देओल, माही, कल्कि और दिब्येन्दु भट्टाचार्य मुख्य भूमिकाएं निभा रहे हैं। देव डी को लेकर बातचीत अनुराग कश्यप से..
देव डी का विचार कैसे आया?
सन 2006 में मैं अभय के साथ एक दिन फीफा व‌र्ल्ड कप देख रहा था। मैच में मजा नहीं आ रहा था। अभय ने समय काटने के लिए एक कहानी सुनाई। लॉस एंजिल्स के एक स्ट्रिपर की कहानी थी। एक लड़का उस पर आसक्त हो जाता है। उस लड़के की अपनी अधूरी प्रेम कहानी है। कहानी सुनाने के बाद अभय ने मुझसे पूछा कि क्या यह कहानी सुनी है? मेरे नहीं कहने पर अभय ने ही बताया कि यह देवदास है। मैं सोच भी नहीं सकता था कि देवदास की कहानी इस अंदाज में भी बताई जा सकती है!
अभय से आपकी पुरानी दोस्ती है?
देव डी में मेरे सहयोगी लेखक विक्रमादित्य मोटवाणे हैं। वे अभय के स्कूल के दिनों के दोस्त हैं। विक्रम से मेरी मुलाकात पहले हो चुकी थी, लेकिन वाटर के लेखन के दौरान हम करीब हुए। जब मैं पहली फिल्म पांच बना रहा था, तब विक्रमादित्य उसके गीतों के निर्देशन में मेरी सहायता कर रहे थे। उन्हीं दिनों अभय से मेरी मुलाकात हुई। तब वे स्केचिंग करते थे। बोस्टन से पढ़कर आए थे। मैं उन दिनों फिल्मी परिवारों के बच्चों को थोड़े संदेह और नाराजगी से देखता था। अभय में कुछ अलग बात थी। उन्होंने ब्लैकफ्राइडे के ब्लास्ट सीन के लिए स्टोरी बोर्ड भी तैयार किया था। बहरहाल, मैंने उन्हें अपने मित्र संजय राउत्रे से मिलवाया और संजय ने उनकी मुलाकात इम्तियाज अली से करवा दी। इस तरह एक ऐक्टर और एक डायरेक्टर प्रकाश में आए।
आपने अभय के साथ क्यों नहीं काम किया?
ऐसा संयोग नहीं बना। नो स्मोकिंग और गुलाल में अभय के लायक रोल नहीं थे। मैं उनका काम लगातार देख रहा था। सच कहूं, तो मुझे पहले यकीन नहीं था कि अभय ऐक्टिंग कर सकते हैं। एक चालीस की लास्ट लोकल देखने के बाद मैंने तय किया कि मुझे अभय के साथ काम करना है। संयोग देखें कि देव डी का आइडिया लेकर अभय ही आए। इस कहानी को दर्शक कई बार देख चुके हैं।
आपने इसके लिए निर्माता को कैसे तैयार किया?
कोई भी इस फिल्म में हाथ नहीं लगाना चाह रहा था। खासकर नो स्मोकिंग के फ्लॉप होने के बाद मेरे प्रति निर्माताओं का विश्वास हिल चुका था। यूटीवी के विकास बहल के पास मैं अपने मित्र राजकुमार गुप्ता की आमिर लेकर गया था। उस मीटिंग में मैंने आमिर के साथ देव डी की भी कहानी सुना दी। विकास बहल को आइडिया पसंद आया। इस तरह फिल्म की शुरुआत हुई।
कलाकारों के चयन के बारे में बताएंगे?
दोस्त दिब्येन्दु के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में मैंने माही को पहली बार देखा था। माही उस शाम दुनिया से बेपरवाह डांस कर रही थी। मुझे उसका वह अंदाज पसंद आया। मुझे ऐसी ही पारो चाहिए थी। चूंकि देव डी की पृष्ठभूमि पंजाब की थी, इसलिए माही और ज्यादा सही लगी। मेरी फिल्म में पारो का नाम परमिंदर है। कल्कि का चुनाव काफी सोच-समझकर चंदा के रूप में किया। फिल्म देखने पर लोग उसका महत्व भी समझ जाएंगे।
21वीं सदी में देव डी के रूप में देवदास को आप कैसे परिभाषित करेंगे?
यह एक ऐसे युवक की कहानी है, जिसे समाज इसलिए बहिष्कृत कर देता है कि वह बने-बनाए नियमों का पालन नहीं करता। वह दुनिया की नहीं सुनता। सही और गलत का फैसला स्वयं करता है।
फिल्म में अठारह गाने रखने की वजह?
शुरू में ऐसा विचार नहीं था, लेकिन फिल्म के संगीतकार अमित त्रिवेदी ने जब गीत रचे और उन्हें सुरों से सजाया, तो मैं बहुत प्रभावित हुआ। यकीन करें, उनके संगीत के कारण मैंने स्क्रिप्ट में फेरबदल की। फिर मैंने देव डी को म्यूजिकल का रूप दिया। इस फिल्म के गीत बैकग्राउंड में चलते हैं। मुख्य कलाकारों ने गीतों पर होंठ नहीं हिलाए हैं।

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