फिल्‍म समीक्षा : प्‍यार इंपासिबल

पासिबल है प्‍यार

सामान्य सूरत का लड़का और खूबसूरत लड़की ़ ़ ़ दोनों के बीच का असंभावित प्यार ़ ़ ़ इस विषय पर दुनिया की सभी भाषाओं में फिल्में बन चुकी हैं। उदय चोपड़ा ने इसी चिर-परिचित कहानी को नए अंदाज में लिखा है। कुछ नए टर्न और ट्विस्ट दिए हैं। उसे जुगल हंसराज ने रोचक तरीके से पेश किया है। फिल्म और रोचक हो जाती, अगर उदय चोपड़ा अपनी भूमिका को लेकर इतने गंभीर नहीं होते। वे अपने किरदार को खुलने देते तो वह ज्यादा सहज और स्वाभाविक लगता।

अलीशा का दीवाना है अभय, लेकिन वह अपनी भावनाओं का इजहार नहीं कर पाता। वह इंटेलिजेंट है, लेकिन बात-व्यवहार में स्मार्ट नहीं है। यही वजह है कि पढ़ाई पूरी होने तक वह आई लव यू नहीं बोल पाता। सात सालों के गैप के बाद अलीशा उसे फिर से मिलती है। इन सात सालों में वह एक बेटी की मां और तलाकशुदा हो चुकी है। वह सिंगापुर में सिंगल वर्किंग वीमैन है। इस बीच अभय ने अपने सेकेंड लव पर ध्यान देकर एक उपयोगी साफ्टवेयर प्रोग्राम तैयार किया है, लेकिन उसे कोई चुरा लेता है। उस व्यक्ति की तलाश में अभय भी सिंगापुर पहुंच जाता है। परिस्थितियां कुछ ऐसी बनती है कि वह अलीशा के घर में उसकी बेटी को संभालने की नौकरी करने लगता है। समर्पण, तारीफ, समझदारी और गलतफहमी के साथ कहानी आगे बढ़ती है। एक पाइंट के बाद हम भी चाहने लगते हैं कि अलीशा का मिलन अभय से ही होना चाहिए। ऑन स्क्रीन लूजर के प्रति यह समर्थन स्वाभाविक है।

उदय चोपड़ा मस्त एक्टर हैं। वे दुखी कामिकल किरदारों को अच्छी तरह निभाते हैं। इस फिल्म में वे और निखरे हैं। स्वयं को च्यादा स्क्रीन स्पेस देने के लोभ से वे बचे रहते तो फिल्म चुस्त और प्रभावशाली हो जाती। प्रियंका चोपड़ा अनुभवी अभिनेत्री के तौर पर दिखती हैं। वह छोटे मनोभावों और दुविधाओं को भी बारीकी से निभाती हैं। इस फिल्म में वह खूब जंची हैं। उन्होंने अलीशा के किरदार को जीवंत कर दिया है। छोटे बालों में उनका लुक फिल्म का एक और आकर्षण बन गया है, लेकिन उनके परिधानों के बारे में यही बात नहीं कही जा सकती। मनीष मल्होत्रा ने अलीशा के किरदार के बजाए प्रियंका चोपड़ा एक्ट्रेस की छवि के लिहाज से ड्रेस डिजाइन कर दी है।

और एक सवाल ़ ़ ़ क्या चश्मा लगाने से व्यक्ति साधारण और अनाकर्षक हो जाता है। हिंदी फिल्मों की दशकों पुरानी इस धारणा से अलग जाकर भी सोचा जा सकता था। अलीशा की छह साल की बेटी को प्रेम के प्रेरक रूप में दिखाना भी हिंदी फिल्मों का फार्मूला है। करण जौहर की कुछ कुछ होता है में भी हम ऐसी लड़की से मिल चुके हैं। बहरहाल, प्यार इंपासिबल का फील अच्छा है और दोनो चोपड़ा प्यार के एहसास को बढ़ाते हैं।

**1/2 ढाई स्टार


Comments

Kulwant Happy said…
चौकसे और आपकी समीक्षा पढ़कर मुझे मेरे पसंदीदास् सितारे की फिल्म देखने की हिम्मत सी आ गई। अक्षय कुमार ने तीन बार पैसे डुबो दिए 2009 में

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