दरअसल : आ रहे हैं विदेशी तकनीशियन

-अजय ब्रह्मात्‍मज

पिछले हफ्ते मैं हेमा मालिनी की फिल्म टेल मी ओ खुदा के सेट पर था। जोधपुर के बालसमंद में शूटिंग चल रही है। मयूर पुरी निर्देशित इस फिल्म की कहानी चार शहरों में प्रवास करती है। जोधपुर में राजस्थान के हिस्से की शूटिंग हो रही थी, जिसमें एषा देओल, अर्जन बाजवा और चंदन सान्याल के साथ मधु और विनोद खन्ना हैं। इस सेट पर रेगुलर इंटरव्यू और कवरेज के दौरान दो व्यक्तियों ने ध्यान खींचा। एपल नामक कैमरामैन राजस्थान के हिस्से की फोटोग्राफी कर रहे थे और एलेक्स फिल्म के मेकअप आर्टिस्ट थे। दोनों विदेशी मूल के हैं।

एलेक्स मलेशिया के हैं। मलेशिया में एक भारतीय वीडियो शूटिंग के समय उनका भारतीय यूनिट से संपर्क हुआ। उसके बाद एक-दो छोटे वेंचर में काम करने के बाद उन्होंने विवेक ओबेराय की फिल्म प्रिंस की और अभी टेल मी ओ खुदा का मेकअप डिपार्टमेंट देख रहे हैं। सेट पर मौजूद तमाम भारतीयों के बीच इन विदेशियों को आराम से अपना काम करते देख कर खुशी और गर्व हुआ। हिंदी समेत सभी भारतीय फिल्में अब इस ऊंचाई तक पहुंच गई हैं कि विदेशी आर्टिस्ट और तकनीशियन यहां बेहिचक काम खोज रहे हैं।

टेल मी ओ खुदा में चार विदेशी कैमरामैन होंगे, जो चारों शहरों के हिस्सों की अलग-अलग शूटिंग करेंगे। फरहान अख्तर ने भी लक्ष्य के लिए विदेशी कैमरामैन का सहारा लिया था। कृष के स्पेशल इफेक्ट और स्टंट सीन के लिए राकेश रोशन ने विदेशी तकनीशियनों को भारत बुलाया था। उनकी अगली फिल्म का निर्देशन अनुराग बसु ने किया है। हिंदी और अंग्रेजी में एक साथ रिलीज हो रही इस फिल्म में कई विदेशी तकनीशियन हैं। शाहरुख खान की निर्माणाधीन फिल्म रा1 में 40 प्रतिशत तकनीशियन विदेशी होंगे। कह सकते हैं कि हिंदी फिल्में अब उस मुकाम पर पहुंच गई हैं, जहां विदेशी तकनीशियनों की खपत हो रही है। कई बार वे भारतीय तकनीशियनों से सस्ते और योग्य भी ठहरते हैं। चूंकि मंदी का असर विदेशों में ज्यादा है और तकनीकी विकास से कई तकनीशियन बेरोजगार हो रहे हैं, इसलिए वे एशियाई देशों की तरफ उम्मीद से देख रहे हैं। उन्हें इधर काम के अवसर के साथ सुनिश्चित कमाई दिख रही है।

इस ट्रेंड पर दो प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। पहली प्रतिक्रिया स्वाभाविक है, जो असुरक्षा से पैदा होती है। हिंदी फिल्मों के तकनीशियन पूछ सकते हैं कि क्या वे किसी प्रकार अयोग्य हैं? ..और अगर विदेशी तकनीशियनों को धड़ल्ले से काम मिलता रहा, तो उनका फ्यूचर क्या होगा? इस असुरक्षा में वे अड़ंगा लगा सकते हैं। दूसरी प्रतिक्रिया यह है कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री अब विदेशियों को भी रोजगार देने में सक्षम हो गई है। गौरतलब है कि पहले विदेशी तकनीशियनों को श्रेष्ठ और उत्तम जानकारी के लिए लाया जाता था। हिमांशु राय के समय से यह परंपरा चली आ रही है। वर्तमान परिपे्रक्ष्य में श्रेष्ठता से अधिक कुशलता और बचत पर जोर दिया जा रहा है। वर्तमान में हमारे अपने तकनीशियन हर लिहाज से उत्तम काम कर रहे हैं। खुद उन्हें भी विदेशी फिल्मों में काम मिल रहा है।

ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में योग्यता और जरूरत ही तकनीशियन, कलाकार और निर्देशकों को जोड़ रही है। उन्हें अपनी भौगोलिक सीमाओं से बाहर निकलने के लिए प्रेरित कर रही है। हमें विदेशी तकनीशियनों की आमद का स्वागत करना चाहिए..।


Comments

Udan Tashtari said…
ग्लोबल विलेज की अवधारणा बलवति होती जा रही है.
Parul kanani said…
fully agree with u sir !

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