रूठे हुए दर्शक थियेटर में कैसे आए

-अजय ब्रह्मात्‍मज

हिंदी फिल्मों के प्रचार पर अभी करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। छोटी से छोटी फिल्म की पब्लिसिटी में भी इतनी रकम लग ही जाती है। निर्माता-निर्देशक और फिल्म के स्टारों का पूरा जोर रहता है कि रिलीज के पहले दर्शकों के दिमाग में फिल्म की छवि बिठा दी जाए। वे शुक्रवार को उनकी फिल्म देखने जरूर जाएं। व्यापार के बदले स्वरूप की वजह से प्रचार भी सघन और केंद्रित होता जा रहा है। अभी फिल्मों का व्यापार मल्टीप्लेक्स थिएटरों के वीकऐंड बिजनेस पर ही निर्भर कर रहा है। पहले वीकऐंड में ही पता चल जाता है कि फिल्म के प्रति दर्शकों का क्या रवैया होगा? इन दिनों शायद ही कोई फिल्म सोमवार के बाद फिल्मों से कमाई कर पाती है।

मल्टीप्लेक्स मुख्य रूप से महानगरों में हैं। हिंदी फिल्मों के बिजनेस के लिहाज से मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, चंडीगढ़ और इंदौर मुख्य ठिकाने हैं। निर्माता और प्रोडक्शन कंपनियों का जोर रहता है कि इन शहरों के दर्शकों को किसी भी तरह रिझाकर सिनेमाघरों में पहुंचाया जाए। इस उद्देश्य से इन शहरों में ही प्रचार संबंधी इवेंट और गतिविधियों पर उनका ध्यान रहता है। बाकी शहरों और इलाकों की तरफ वे गौर भी नहीं करते। परिणाम यह होता है कि प्रचार और इवेंट से वंचित शहरों के दर्शकों में नई फिल्मों को लेकर उत्सुकता नहीं बनती। वे सिनेमाघरों में जाकर फ‌र्स्ट डे फ‌र्स्ट शो देखने के लिए तत्पर नहीं होते। फिल्में वे भी देखते हैं, पर जरूरी नहीं है कि सिनेमाघरों में जाकर देखें। दर्शकों की इस उदासी और निष्क्रियता का सीधा असर फिल्म के कलेक्शन में दिखता है। मुंबई और दिल्ली में अच्छा व्यवसाय कर रही फिल्में कई बार पटना, लखनऊ और दूसरे शहरों के दर्शकों के शहरों को आकर्षित नहीं कर पातीं। गजनी और दबंग जैसी व्यापक प्रभाव और लोकप्रियता की फिल्मों की बात अलग है। ये फिल्में समान रूप से पूरे देश में चलती हैं। मैं उन फिल्मों की बात कर रहा हूं, जिन्होंने मुंबई और दिल्ली में तो ठीक व्यवसाय किया, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में फ्लॉप रहीं। गौर करने पर पाएंगे कि उन फिल्मों को लेकर दर्शकों के बीच जागरूकता नहीं थी। निर्माताओं ने उन इलाकों के दर्शकों को अपनी फिल्म के जानकारी ही नहीं दी। स्टार अपने व्यस्त रुटीन से इन शहरों के लिए समय नहीं निकालते। उन्हें वहां जाना गैरजरूरी लगता है। एक दिक्कत मुंबई से आने-जाने की भी है। मुंबई से दिल्ली या अहमदाबाद या यहां तक कि इंदौर को भी एक दिन में कवर किया जा सकता है, लेकिन पटना और रांची में इवेंट करने पर वहां रुकना पड़ता है। ऐसी स्थिति में फिल्म स्टार वहां जाने से हिचकते हैं। वे इन शहरों की यात्रा टाल जाते हैं। अपनी इस लापरवाही में वे अनजाने ही उन दर्शकों को भी टाल जाते हैं, जो उनकी फिल्मों के संभावित दर्शक हो सकते थे। पूरे प्रसंग को स्पष्ट करने के लिए दम मारो दम का उदाहरण उचित होगा। इस फिल्म के प्रचार के लिए पहली बार अभिषेक बच्चन पटना गए। वहां के दर्शकों और मीडिया ने उनका जोरदार स्वागत किया। बिहार और झारखंड के दर्शकों में दम मारो दम को लेकर उत्सुकता बढ़ी। उनकी इस उत्सुकता की वजह से वितरकों ने बिहार और झारखंड में फिल्म के प्रिंट की संख्या बढ़ा दी। रिलीज के पहले 50 और प्रिंट मंगवाए गए। निश्चित ही इस प्रक्रिया में फिल्म के दर्शक बढ़ेंगे। दम मारो दम की टीम दिल्ली, अहमदाबाद, और चंडीगढ़ की यात्रा से संतुष्ट हो सकती थी, लेकिन तब उसे ये दर्शक नहीं मिलते। दर्शक हैं, लेकिन वे रूठे हुए हैं। उन्हें लगता है कि निर्माता-निर्देशक और स्टार उन्हें अपनी फिल्मों के लिए आमंत्रित ही नहीं करते, तो फिर वे क्यों घर से सिनेमाघर जाने की जहमत उठाएं। इस बार अभिषेक ने राह दिखाई है। उम्मीद है कि दूसरे निर्माता-निर्देशक भी दम मारो दम का अनुसरण करेंगे।

Comments

Markand Dave said…
आदरणीय श्रीअजयजी,


बहुत बढ़िया आलेख है,बहुत बधाई। वैसे आपने सही फरमाया कि,स्टार दर्शकों के लिए समय नहीं निकालते, अगर यही हाल रहा तो सिनेमाघर तोड़कर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बन जाएंगे,प्रोपर्टी के भाव तो आसमान को छू ही रहे हैं..!!

मार्कंण्ड दवे।

मौत की आहट (गज़लनुमा गीत)
मेरा ब्लॉग-
http://mktvfilms.blogspot.com/2011/05/blog-post_9627.html
श्रीमान जी, मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
Anonymous said…
Wo ka hai na boss k public ab itni sasti nahi rahi ki kisi k liye v CITI bajati chali jaye,
ab to gar bajwani hai to publicity stunt se jyada stunt karna padega matbal KAAM karne ki taraf jyada dhayan dena hoga, hai na baat pate ki
oh by d way mera pata hai.
ALLU MATAR CHANAPURI WAALE
AANKH MARTA SHAHER
LINE MARO MUHALLA
NAIN MATTAKKA GALI
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koi shikayat ho to kehne k liye
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sachin jhakjhakiya
आजकल तो 3 डी के कारण आ रहे हैं. हांटेड, पायरेस्ट, पांडा सब बढ़िया और हाउसफुल चल रहे हैं. हांटेड तो महीने भर से हाउसफुल चल रही है!

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