फ‍िल्‍म समीक्षा : डॉन2

नाम बड़े और दर्शन छोटे-अजय ब्रह्मात्‍मज

एशिया में अंडरव‌र्ल्ड साम्राज्य कायम करने के बाद डॉन की नजर अब यूरोप पर है। इसकी भनक योरोप के ड्रग सौदागरों को मिल चुकी है। वे डॉन को खत्म करने की साजिश रचते हैं। हमारा हिंदी फिल्मों का डॉन भी शातिर दिमाग है। अपनी सुरक्षा के लिए वह जेल चला जाता है। वहां से अपने पुराने दुश्मन वरधान को साथ लेता है। मारने आए व्यक्ति जब्बार को अपनी टीम में शामिल करता है और जर्मनी के एक बैंक से यूरो छापने की प्लेट की चोरी की योजना बनाता है।

हंसिए नहीं,एशिया का किंग बन चुका डॉन इस चोरी को अंजाम देने के लिए खुद ही जाता है। मालूम नहीं उसके गुर्गे छुट्टी पर हैं या? हमारा डॉन अकेला ही घूमता है। जरूरत पड़ने पर उसके पास हथियार,गाड़ी और लश्कर चले जाते हैं। जैसे हिंदी फिल्मों का हीरो जब गाता है तो दर्जनों व्यक्ति उसके आगे-पीछे नाचने लगते हैं।

अनगिनत फिल्मों में देखे जा चुके दृश्यों से अटी पड़ी यह फिल्म शाहरुख के अभिनय और अंदाज के दोहराव से भरी हुई है। उनका मुस्कराना,खी-खी कर हंसना,लचकते हुए चलना,भींचे चेहरे और टेढ़ी नजर से तकना उनके प्रशंसकों को भा सकता है,लेकिन कब तक? अफसोस है कि दिल चाहता है से क्रिएटिव शुरुआत कर चुके निर्देशक फरहान लेखन और निर्देशन में निरंतर बेअसर और कमजोर होते जा रहे हैं।

मूलत: अंग्रेजी में सोचे लिखे गए डायलॉग जब हिंदी में अनूदित होते हैं तो उनमें व्याकरण और प्रयोग की गलतियां होती हैं। फरहान को ऐसी गलतियों से बचना चाहिए। बड़े नामों से जुड़ी यह फिल्म रूप-रंगत में इंटरनेशनल फील देने के बावजूद बांधे रखने में असफल रहती है। इंटरवल के पहले धीमी गति की वजह से ऊब पैदा करती है। शाहरुख खान अपनी लोकप्रिय छवि और स्टाइल को रिपीट करते हुए कई द़श्यों में ठीक नहीं लगते हैं। उन पर उम्र का बोझ हावी है, जो क्लोजअप में जाहिर होता है।

एमआई 4 के ठीक एक हफ्ते बाद रिलीज हो रही डॉन 2 के दृश्यों और मेकिंग को लेकर हम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की स्थिति पर रो ही सकते हैं। हालीवुड की फिल्मों से चोरी की गई दृश्य संरचना को सालों बाद डॉन 2 में देखकर हमें अपने डायरेक्टर और स्टार पर खीझ ही सकते हैं। कलाकारों की बात करें तो ऐसा लगता है कि ओम पुरी को अब अभिनय में आनंद नहीं आता। वे थक चुके हैं। इस बार बोमन ईरानी भी थके और किरदार में मिसफिट नजर आए। निगेटिव होने और दिखने में वे असफल रहे। प्रियंका चोपड़ा के किरदार का कंफ्यूजन उनके परफारमेंस में भी दिखता है। हां,लारा दत्ता अपनी संक्षिप्त मौजूदगी में जिम्मेदारी निभाती हैं। एक सिक्वेंस में आए रितिक रोशन के हिस्से में ज्यादा दृश्य ही नहीं थे।

फरहान अख्तर की डॉन 2 शाहरुख खान की लोकप्रियता को भुनाने में कामयाब नहीं हो पाई है। स्वयं शाहरुख खान अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद दर्शकों को रिझाने में असफल रहते हैं। फिल्म के अंत में आया जंगली बिल्ली गीत तो रोमा और डॉन के संबंधों के समीकरण का घालमेल कर देता है। क्या निर्देशक फरहान अख्तर को इस गीत की कल्पना के समय ख्याल नहीं था कि वे दो घंटे तक रोमा और डॉन को कैसे चित्रित कर रहे थे? फरहान अख्तर डॉन 3 के बारे में न सोचें तो बेहतर...

-अजय बह्मात्मज * 1/2 डेढ़ स्टार

Comments

रंजना said…
मेरी धारणा को पुष्ट करती समीक्षा है...

फिल्म देखने तो यूँ भी नहीं जाती, पर जान लिया तो तसल्ली और मजबूत हुई..
पैसे बचाने के लिये शुक्रिया। :)
aravind said…
..शुक्र है मै ये समीक्षा फिल्म देखने के बाद पढ़ रहा हूँ !!!
..पता नहीं क्यों.. ये लोग हिंदी फिल्मो को हालीवुड का चश्मा लगा कर देखते है !!
amit said…
Don ko samazna mushkil hi nahi na mum kin hai...."
amit said…
Don ko samazna mushkil hi nahi na mum kin hai...."
Somesh said…
I think d views of sir are biased.
Don2 is not a bad movie at all.

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम