धूम 3 में है बेइंतहा इमोशन : आमिर खान


-अजय ब्रह्मात्मज/अमित कर्ण
आमिर खान अपनी फिल्मों से मैसेज व मनोरंजन का परफेक्ट मिश्रण लोगों को देते हैं। आमिर अब साल के आखिर में लोगों को बहुप्रतीक्षित सौगात ‘धूम 3’ दे रहे हैं। इसे संयोग ही कहें कि फिल्म का स्केल यशराज और आमिर खान के अद्वितीय कॉम्बिनेंशन से आसमानी हो गया है। उन्हें खुद के कद का मुकम्मल एहसास है। वे फिल्म दर फिल्म नए अनुभवों से अमीर(इनलाइटेन) होने की कोशिश कर रहे हैं।
     हिंदी फिल्मों के संदर्भ में आमिर ‘धूम’ सीरिज और ‘धूम 3’ की खास बात बताते हैं, ‘धूम’ सीरिज परफेक्ट मनोरंजन की श्योर-शॉट गारंटी देती है। लार्जर दैन लाइफ किरदार पेश करती है। जबरदस्त थ्रिल, खूबसूरत कैमरा वर्क और उम्दा गाने सुनने को मिलेंगे। ‘धूम 3’ ने पिछली दोनों किश्तों से अलग काम किया है। इसमें बेइंतहा इमोशन है। इसकी कहानी बहुत जज्बाती है। इस बात ने मुझे भी स्क्रिप्ट की तरफ अट्रैक्ट किया। मुझे लगता है कि यह फिल्म सभी उम्र वर्ग और सोच के लोगों के लिए है। यह हर किसी को अपील करेगा। इसकी क्षमता बहुत ज्यादा है। वह दर्शकों की उम्मीदों पर कितना खड़ा उतर पाती है, वह देखने वाली बात होगी। यह मेरे 25 साल के करियर में सबसे कठिन फिल्म है।
    मानसिक रूप से या शारीरिक रूप से? आमिर सवाल का जवाब देते हैं, प्रदर्शन के लिहाज से। ‘धूम 3’ में मैं एक जिमनास्ट साहिर का रोल प्ले कर रहा हूं। तो शारीरिक तौर पर तो फिल्म मेरे लिए चैलेंजिंग थी ही। बहुत ही स्ट्रिक्ट मेरा डाइट था। जिन्होंने मुझे कलाबाजियां सिखाईं वे अब वैसी कलाबाजियां नहीं करते। प्रैक्टिस के दिनों में मैंने उनसे पूछा कि आप कितने दिनों से वे करतब करते हैं तो उन्होंने कहा कि अब नहीं करता। 25 साल का था, तब करता था। मैं चौंक गया। उनसे पूछा कि अब आप की कितनी उम्र है तो उन्होंने कहा 45 साल। मैंने उनसे हंसते हुए कहा, भई मैं तो 48 का हूं। आप खुद नहीं करते, पर मुझसे करवा रहे हैं। लब्बोलुआब यह कि बहुत अनुशासित मेरा वर्कआउट रिजीमे थे, पर मैं उस संदर्भ में नहीं कह रहा। उस लिहाज से तो ‘गजनी’ भी काफी चैलेंजिंग था।
    तीनों सीरिज में अभिषेक और उदय के किरदार कॉमन हैं। आमिर खुद और उनका किरदार जय और अली को कैसे देखते हैं? आमिर कहते हैं, ‘धूम 2’ मैंने नहीं देखी थी। ‘धूम ’ देखी थी मैंने। वह काफी सफल और चर्चित फिल्म थी। उसका टाइटिल ट्रैक काफी कमाल का था। उस ट्रैक को इस फिल्म में भी कॉमन रखा गया है। जेम्स बॉन्ड की फिल्मों की तरह वह ‘धूम’ सीरिज की फिल्मों का सिग्नेचर ट्यून है। खैर एक दिन मैं और किरण घर पर थे। रात का समय था और टीवी पर ‘धूम’ आ रही थी। मैं बैठ गया देखने के लिए। मुझे इतनी वह फिल्म इतनी अच्छी लगी कि उसे पूरा देखकर ही उठा। मंै एकदम बच्चे की तरह उसे एन्ज्वॉय कर रहा था। किरण बीच-बीच में कहती भी कि कूद क्यों रहे हो, बच्चे की तरह? मैंने कहा कि मुझे बहुत अच्छी लग रही है। मुझे वाकई फिल्म देख बहुत मजा आया। जय थोड़ा सीरियस है। टफ कॉप है। अली जो हैं, वे ह्यूमर लाते हैं। मुझे उन दोनों की जोड़ी बहुत पसंद है। ‘धूम 2’ मैंने देखी नहीं। ‘धूम 3’ का मैं कह सकता हूं कि मुझे उसकी कहानी सुनकर उतना ही मजा आया, जितना ‘धूम’ देखकर। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जय और अली एक बार फिर इस किश्त में भी आप का भरपूर मनोरंजन करेंगे।
    अगर उस फिल्म को लोगों की बेपनाह मोहब्बत मिलती है तो उसके लिए फिल्म के लेखक-निर्देशक विक्टर(विजय कृष्ण आचार्य) जिम्मेदार होंगे न कि मैं। मैं आप और बाकी मीडिया बिरादारी से भी आग्रह करना चाहूंगा कि मेरी हर फिल्म की सफलता के लिए मुझे ही क्रेडिट न दें। वैसा कर आप फिल्म के लेखक और उससे जुड़े क्रिएटिव के साथ अन्याय करते हैं। मेरे बारे में यह राय बना दी गई है कि मैं हर प्रोजेक्ट में क्रिएटिव इंटरफेयर करता हूं। ऐसा कर आप लोग मेरे साथ ज्यादती कर रहे हैं। मैंने ‘धूम 3’ की कहानी नहीं लिखी। संवाद नहीं लिखे। पटकथा तक में मेरा कोई इंटरफेयरेंस नहीं था। लिहाजा फिल्म की सफलता का क्रेडिट मुझे न दें। मुझे बस इतनी शाबासी दें कि मुझमें उतनी समझ थी कि मैंने उस स्क्रिप्ट को चुना। काम तो उसका है और मैं अपने निर्देशकों को पूरी सावधानी से चुनता हूं। अगर मुझे लगता है कि फलां निर्देशक कहीं मुझे लेट डाउन कर दे तो मैं उनकी फिल्म नहीं करता। नतीजतन अब तक आप लोगों को यह तसल्ली हो जानी चाहिए कि मैं किसी के साथ जुड़ा हूं तो वह डायरेक्टर जरूर अच्छा होगा। विक्टर के काम से मैं इतना प्रभावित हुआ कि मैंने उन्हें टेक्स्ट कर उनका आभार प्रकट किया। स्क्रिप्ट दरअसल होती है, जेहन में, पर जब वह हू-ब-हू पर्दे पर उतर जाए तो दिल बाग-बाग हो जाता है। काम उसने किया है तो शुक्रिया उनका अदा किया जाना चाहिए, मेरा नहीं।
    मेरे किरदार का नाम साहिर है। वह जिम्नास्ट है तो वैसी कद-काठी हासिल करने के लिए मुझे महीनों वर्कआउट करने पड़े। ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के ट्रेनर से हवा में लूप के सहारे करतब करने की महीनों ट्रेनिंग हुई। हैट साहिर के गेटअप का अनिवार्य हिस्सा है तो उस छोटे से अंश का भी ख्याल रखते हुए मैंने खासतौर से लंदन की एक दुकान से हैट खरीदी। उसे रोजाना पहने लगा ताकि शूट के दौरान किसी प्रकार की समस्या न हो। फिल्म के ज्यादातर स्टंट मैंने खुद किए हैं। जमीन से 80 फुट ऊपर लूप पर मुझे स्पिन करना था। वैसा करते वक्त किसी को भी चक्कर आ सकते हैं। उससे बचने के लिए मैं मेडिकेशन पर भी रहा।
    एक रोचक वाकया शेयर करना चाहूंगा। शूट के दिनों में मेरा बेटा आजाद मेरे साथ शिकागो में था। वह भी मेरी तरह सुबह छह बजे उठ जाता था। सौभाग्य से सुबह के आधे घंटे मैं उसके साथ बिताता था। आज भी सुबह के आधे घंटे मैं उसके साथ बिताता हूं। अब तो खैर उनका प्ले स्कूल शुरू हो गया है, पर उससे पहले मैं जैसे ही बाहर निकलता था, वे मेरे पीछे-पीछे आते और जिद करते थे कि उन्हें भी मेरे साथ आना है। आलम यह हुआ कि मैं यशराज आता था या फिर ‘पीके’ की शूटिंग फिल्मसिटी में होती थी तो वे सुबह के समय मेरे साथ होते थे। सुबह 11 बजे उन्हें नींद आती तो उन्हें घर ले जाया जाता था। आप को हंसी आएगी, फिल्म में टैप डांस का एक  बड़ा सीक्वेंस है। मैं उसकी रोजाना प्रैक्टिस किया करता था। उसके खास मैं ऑस्ट्रेलिया गया। एक महीने ट्रेनिंग की वहां पर, सिडनी के ट्रेनर को मुंबई बुला लिया था। मैं घर पर टैप शूज पहन कर प्रैक्टिस किया करता था। तो आजाद मुझे ध्यान से देखा करता था और मेरी तरह स्टेप किया करता था। मैंने दो दिन बाद उस पर ध्यान दिया और सोचा कि यह क्या कर रहा है? मैंने बाकयदा उसका वीडियो निकाला है।
     मैं नहीं मानता कि फिल्मों को स्टार ड्राइव करते हैं। मसलन, ‘थ्री इडियट्स’ ने 200 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस किया तो उसमें मेरा नहीं फिल्म की कहानी और निर्देशक का हाथ था। मेरी वजह से फिल्म को बस ओपनिंग मिली। मैं बस रिलीज के पहले तीन दिन की ओपनिंग दे सका या दे सकता हूं। उसके अगले हफ्तों में भी फिल्म सिनेमाघरों में रहती है तो आप को स्टार नहीं क्रिएटिव को क्रेडिट देना चाहिए। ‘कहानी’ का वीकेंड देख लीजिए और उसका टोटल बिजनेस देख लीजिए। वह असल मायनों में सुपरहिट फिल्म थी। मेरा मानना है कि हिट फिल्म वह है, जो वीकेंड मल्टिप्लाइड बाय फाइव का काम करे। कम से कम हमने 1,000 से कुछ ही ज्यादा स्क्रीन में फिल्म रिलीज की थी, अब 3300 से लेकर 4500 स्क्रीन में फिल्में रिलीज होती हैं। ‘थ्री इडियट्स’ ने सीमित स्क्रीन तादाद में रिलीज होने के बावजूद अच्छा काम किया।
    एक सवाल के जवाब में वे कहते हैं, मैं अब ‘खंभे जैसे खड़ी है, शोला है कि लड़ी है’, जैसे गाने या उस किस्म के किरदार नहीं कर सकता। मेरा अपना मिजाज है। मुझसे लोग कुछ अलग और एररप्रूफ अपेक्षाएं रखते हैं। मैं उनकी भावनाओं का पूरा ख्याल रखता हूं। मुझे याद है, जब ‘जाने तू या जाने ना’ में एक सीन में इमरान एक लडक़ी को अरबाज और सोहैल के किरदारों से बचाने के लिए लडक़ी एड्स पीडि़त बता देते हैं। लडक़ी से इमरान का किरदार कहता है कि अरे तुमने बताया नहीं कि तुम्हें एड्स है। वह सुनते ही अरबाज और सोहैल के किरदार लडक़ी से बिना बदतमीजी किए पतली गली से निकल जाते हैं। वह सीन बेहद लाइट मूड में बनाया गया था, पर एक अर्से बाद मुझे एक लडक़ी की चिट्ठी आई। उसमें उसने लिखा था कि आमिर आपने हमें बेहद निराश किया। मेरी बहन एड्स पीडि़त है। आप की फिल्म में एड्स पीडि़ता को ऐसे पोट्रे किया गया कि वह समाज और परिवार से दूर रखने की चीज है। मैं सन्न रह गया। मैंने उन्हें माफी मांगते हुए खत लिखा कि आगे से मेरी फिल्मों में ऐसा कुछ नहीं दिखाया जाएगा, जो जाने-अनजाने में किसी को हर्ट करे।

Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम