अभिनेता राजकुमार राव और निर्देशक हंसल मेहता की बातचीत




अजय ब्रह्मात्‍मज

( हंसल मेहता और राजकुमार राव की पहली मुलाकात शाहिद की कास्टिंग के समय ही हुई थी। दोनों एक-दूसरे के बारे में जान चुके थे,लेकिन कभी मिलने का अवसर नहीं मिला। राजकुमार राव बनारस में गैंग्‍स ऑफ वासेपुर की शूटिंग कर रहे थे तब कास्टिंग डायरेक्‍टर मुकेश छाबड़ा ने उन्‍हें बताया था कि हंसल मेहता शाहिद की प्‍लानिंग कर रहे हैं। राजकुमार खुश हुएफ उन्‍हें यह पता चला कि लीड और ऑयोपिक है तो खुशी और ज्‍यादा बढ़ गई। इधर हंसल मेहता को उनके बेटे जय मेहता ने राजकुमार राव के बारे में बताया। वे तब अनुराग कश्‍यप के सहायक थे। एक दिन मुकेश ने राजकुमार से कहा कि जाकर हंसल मेहता से मिल लो। मुकेश ने हंसल को बताया कि राजकुमार मिलने आ रहा है। तब तक राजकुमार उनके दफ्तर की सीढि़यां चढ़ रहे थे। हंसल मेहता के पास मिलने के सिवा कोई चारा नहीं था। दोनों मानते हैं कि पहली मुलाकात में ही दोनों के बीच रिश्‍ते की बिजली कौंधी। अब तो हंसल मेहता को राजकुमार राव की आदत हो गई है और राजकुमार राव के लिए हंसल मेहता डायरेक्‍टर के साथ और भी बहुत कुछ हैं।)
राजकुमार राव और हंसल मेहता की तीसरी फिल्‍म है अलीगढ़। दोनों के बीच खास समझदारी और अंतरंगता है। स्थिति यह है कि हंसल अपनी फिल्‍म उनके बगैर नहीं सोच पाते और राजकुमार राव उन पर खुद से ज्‍यादा यकीन करते हैं। झंकार के लिए यह खास बातचीत...यहां राजकुमार राव के सवाल हैं और जवाब दे रहे हैं हंसल मेहता।
-सिटीलाइट्स के बाद जब ईशानी ने आप का यह कहानी भेजी तो ऐसा क्‍यों लगा कि इसी पर फिल्‍म बनानी चाहिए? उन दिनों तो आप ढेर सारी कहानियां पढ़ रहे थे?
0 मैं कहानी के इंतजार में था। कई विचारों पर काम कर रहा था। सच कहूं तो मैं कहानियां ,खोजता नहीं। कहानियां ख्‍ुद ही मेरे पास आ जाती हैं। उस वक्‍त उनका मेल आ गया।वह भी जंक मेल में चला गया था। पढ़ते ही वह विचार मुझे प्रभावित कर गया। फिर भी उन्‍हें फोन करने के पहले मैंने तीन-चार घंटे का समय लिया।
-क्‍श्या लिखा था उन्‍होंने मेल में ?
0 उन्‍होंने प्रोफेसर सिरस के बारे में लिखा था कि एएमयू में ऐसे एक प्रोफेसर थे,जिनका इंतकाल हो गया था। उन्‍हें सेक्‍सुअलिटी के मुद्दे पर सस्‍पेंड कर दिया गया था। बेसिक थॉट था। प्रोफेसर सिरस से संबंणित कुछ आर्टिकल थे। मैंने उसी शाम ईशानी को बुलाया। ईशानी स्क्रिप्‍ट लिखने के लिए तैयार नहीं थी। तभी हमलोग सिटीलाइट्स की एडीटिंग कर रहे थे। मैंने अपने एडीटर अपूर्वा असरानी से पूछा कि क्‍या तुम लिखोगे? अपूर्वा कूद पड़ा। वह पहले से जानता था मुद्दे के बारे में। मैंने शैलेष सिंह को निर्माता के तौर पर जोडा। फिल्‍म पर काम शुरू हो गया। लिखने के दौरान ही तुम्‍हारे कैरेक्‍टर दीपू सैबेस्टियन का जन्‍म हुआ। हमें अकेली जिंदगी जी रहे प्रोफेसर सिरस की कहानी कहने के लिए कोई चाहिए था। फिर यह सिरस और दीपू की कहानी बन गई।
- शाहिद पर काम करते समय हम ने कहां सोचा था कि उसे नेशनल अवार्ड मिल जाएगा। अभी अजीगढ़ चर्चा में है। क्‍या निर्माण के दौरान यह अहसास था कि समलैंगिक अधिकारों की यह फिल्‍म ऐसी प्रासंगिक हो जाएगी? व्‍यक्ति सिरस से बढ़ कर अब यह एक सामाजिक विषय की फिल्‍म हो गई है।
0 हमेशा मेरी कोशिश रहती है कि मानव अधिकारों की कहानी पूरी जिम्‍मेदारी के साथ कहें। हम उन पर फिल्‍में क्‍यों बनाते हैं,क्‍योंकि वे समाज के बहुसंख्‍यकों से अलग हैं। हम उन्‍हें अल्‍पसंख्‍यक कहते हैं। चाहे वे मुसलमान हों या माइग्रैंट हों या होमोसेक्‍सुअल हों। मेरी कोशिश रहती है कि मैं उन्‍हें इंसान की तरह पेश करूं और उनके अधिकारों की बात करूं। समाज में उनकी मौजूदगी को रेखांकित करना ही ऐसी फिल्‍मों का ध्‍येय हो जाता है। जब हम लिख रहे थे तो सेक्‍शन 377 पर कोई बात करने को तैयार नहीं था। संसद ने चुप्‍पी साध ली थी। संसद यों भी निष्क्रिय ही रहता है। सड़क और संसद में बड़ा अंतर आ गया है। सभी चाहते हैं कि यह लॉ हटे। अब सुप्रीम कोर्ट लोगों की इच्‍छाओं पर ध्‍यान दे रहा है। अलीगढ़ अब उस लड़ाई का हिस्‍सा बन गई है।
- इस फिल्‍म का मकसद क्‍या है ?
0 सीधी सी बात है कि एक व्‍यक्ति अपने बंद कमरे में क्‍या कर रहा है,यह उसका निजी मामला है। दो व्‍यक्ति राजीखुशी क्‍या कर रहे हैं,उससे स्‍टेट का क्‍या लेनादेना है अगर वे समाज को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं। हम फिल्‍म में यही दिखा रहे हैं। एक व्‍यक्ति की जिंदगी  कुछ लोगों ने तबाह कर दी।
-अगर आ से पूछूं कि बीच के दौर के हंसल मेहता और आज के हंसल मेहता में क्‍या अंतर दिखता है?
0 हर फिल्‍म में सेंसर से लड़ाई। फिल्‍म की रिलीज का संघर्ष... इसके बावजूद मैं थकता नहीं। बीच की फिल्‍मों में मैं थक जाता था। उनमें कहने के लिए कुछ नहीं रहता था। इन फिल्‍मों से मुझे ऊर्जा मिलती है। एक मकसद मिल गया है मुझे। उस दौर में मैं फिल्‍मों से अपने खाली समय भर रहा था। उन फिल्‍मों की एक भूमिका रही। मुझे असफलता मिली। उसकी वजह से मैंने अंदर झांका। और ऐसी फिल्‍मों की तरफ लौटा।

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