फिल्म समीक्षा : फुकरे

- अजय ब्रह्मात्मज
एक पंकज त्रिपाठी और दूसरी रिचा चड्ढा के अलावा इस फिल्म के बाकी कलाकार बहुत सक्रिय नहीं हैं।उन्हें फिल्में नहीं मिल रही हैं। वरुण शर्मा ने जरूर 12 फिल्में की, लेकिन वह अपनी ख़ास पहचान और अदाकारी में ही सिमट कर रह गए हैं। मनजोत सिंह अली फजल और पुलकित सम्राट के करियर में खास हलचल नहीं है। बाकी कलाकारों की निष्क्रियता का संदर्भ इस फिल्म के निर्माण से जुड़ा हुआ है। रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर की कंपनी एक्सेल ने किफायत में एक फिल्म बनाकर पिछली सफलता को दोहराने की असफल कोशिश की है। इस कोशिश में ताजगी नहीं है। फुकरे फोकराइन हो गई है। फटे दूध दूध से आ रही गंध को फोकराइन कहते हैं।
मूल फिल्म में चार निठल्लों की कहानी रोचक तरीके से कही गई थी उस फिल्म में दिख रही दिल्ली भी थोड़ी रियल और रफ थी। चारों किरदार जिंदगी के करीब थे। उनके साथ आई भोली पंजाबन अति नाटकीय होने के बावजूद अच्छी लगी थी। इस बार भी भोली पंजाबन अच्छी लगी है लेकिन चारों किरदार पुराने रंग और ढंग में नहीं है। हल्के और खोखले होने की वजह से वे जानदार नहीं लगते हैं। इस बार घटनाओं के अभाव में कहानी की कमी खलती है। लेखक-निर्देशक नए कलाकारों की पिछली छवि खासकर चूचा की लोकप्रियता का इस्तेमाल किया है। अफसोस कि वे यहां भी विफल रहे हैं।
दिक्कत तो एक फ्रेम मैं चार-छह कलाकारों को साथ खड़ा करने और उन से काम लेने में भी रही है कई दृश्य में यूं लगता है कि वे नुक्कड़ नाटकों के कलाकारों की तरह आपस में संगति बिठा रहे हैं निर्देशक ने उन्हें एक विषय दे दिया है और वे खुद इंप्रोवाइज कर रहे हैं। कलाकार सक्षम होते तो शायद कुछ चमत्कार कर देते। जिस फ्रेम में रिचा चड्ढा और पंकज त्रिपाठी हैं वहां तो फिर भी बात बनती है दोनों अपनी अदाकारी और हिंदी भाषा की वाकपटुता सदस्यों को संभाल लेते हैं। यह हुनर बाकी चार कलाकारों के पास नहीं है। माफ करें चूचा यानी वरुण शर्मा सीमित एक्सप्रेशन के कलाकार हैं। यह केवल चेहरे बनाते रहते हैं और समझते हैं कि अदाकारी हो गई। संभवत: यह उनका दोष नहीं है। तुमसे यही कहा गया होगा और वे इसे अपने तई इमानदारी से निभाते हैं।
यह फिल्म रिचा चड्ढा और पंकज त्रिपाठी के लिए देखी जा सकती है। इन दोनों के अलावा नेता के रुप में आए राजीव गुप्ता ने प्रभावित किया है। उन्होंने अपने किरदार को साधा है।
फिल्म में एक जगह कहीं 2014 ईसवी का उल्लेख होता है। उस उल्लेख को विस्तार नहीं मिला है, इसलिए फिल्म अपने समय में आते-आते फिसल जाती है। एक्सेल की यह किफायती कोशिश निराश करती है।
*1/2 डेढ़ स्टार

Comments

Unknown said…
धन्यवाद।फ़िल्म समीक्षक के कार्य को न रोकियेगा।
Anonymous said…
माफ कीजियेगा लेकिन आपकी यह समीक्षा मूल कहीं से भी नही लगी। पढ़ कर ऐसा लगा कि 2-4 अन्य समीक्षको की राय डाल दी है। पंकज त्रिपाठी व रिचा आपके प्रिय थे तो आपने पूरी मूवी इन दोनों को समर्पण कर दी।

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