सिनेमालोक : धारावी का ‘गली बॉय’


सिनेमालोक
धारावी का ‘गली बॉय’
-अजय ब्रह्मात्मज
जोया अख्तर की फिल्म ‘गली बॉय’ की खूब चर्चा हो रही है.जावेद अख्तर और हनी ईरानी की बेटी और फरहान अख्तर की बहन जोया अख्तर अपनी फिल्मों से दर्शकों को लुभाती रही हैं.उनकी फ़िल्में मुख्य रूप से अमीर तबके की दास्तान सुनाती हैं.इस पसंद और प्राथमिकता के लिए उनकी आलोचना भी होती रही है.अभि ‘गली बॉय’ आई तो उनके समर्थकों ने कहना शुरू किया कि जोया ने इस बार आलोचकों का मुंह बंद कर दिया. जोया ने अपनी फिल्म से जवाब दिया कि वह निम्न तबके की कहानी भी कह सकती हैं.’गली बॉय’ देख चुके दर्शक जानते हैं कि यह फिल्म धारावी के मुराद के किरदार को लेकर चलती है.गली के सामान्य छोकरे से उसके रैप स्टार बनने की संगीतमय यात्रा है यह फिल्म.
इस फिल्म की खूबसूरती है कि जोया अख्तर मुंबई के स्लम धारावी की गलियों से बहार नहीं निकलतीं.मुंबई के मशहूर और परिचित लोकेशन से वह बसची हैं.इन दिनों मुंबई की पृष्ठभूमि की हर फिल्म(अमीर या गरीब किरदार) में सी लिंक दिखाई पड़ता है.इस फिल्म में सीएसटी रेलवे स्टेशन की एक झलक मात्र आती है.फिल्म के मुख्य किरदार मुराद और सफीना के मिलने की खास जगह गटर के ऊपर बना पुल है.इस गटर में कचरा जलकुंभी की तरह पसरा हुआ है.आप को याद होगा कि डैनी बॉयल ने 2008 में ‘स्लमडॉग मिलियेनर’ नमक फिल्म में में धारावी के किरदारों को दिखाया था.इंटरनेशनल ख्याति की इस फिल्म से धारावी की तरफ पर्यटकों का ध्यान गे.’गली बॉय’ में एक दृश्य है,जहाँ कुछ पर्यटक मुराद का घर देखने आते हैं तो उसकी दादी 500 रुपए की मांग करती है. इस फिल्म को बारीकी से देखें तो जोया भी पर्यटक निर्देशक के तौर पर ही कैमरे के साथ धारावी में घुसती हैं.धारावी की ज़िन्दगी और सपनों को कभी सुधीर मिश्र ने ‘धारावी’ नाम की फिल्म बहुत संजीदगी से चित्रित किया था.दूसरी हिंदी फिल्मों में भी धारावी की छटा झलकती रही है.ज्यादातर फिल्म निर्देशक यहाँ की गंदगी,गंदे आचरण और गंदे धंधे ही कैमरे में क़ैद करते रहे हैं.जोया ने यहाँ के पॉजीटिव किरदार लिए हैं.
जोया अख्तर की ‘गली बॉय’ सच्चाई और सपने को करीब लेन की कोशिश में जुटे मुराद की कहानी है.मुराद बुरी सांगत में होने बावजूद अच्छे ख्याल रखता है.वह अपनी नाराज़गी को गीतों में अभिव्यक्त करता है.उसकी मुलाक़ात एमसी शेर से होती और फिर उसके जीवन की दिशा बदल जाती है.वह रैप करने लगता है.तय होता है कि एक वीडियो बनाया जाये और उसे यौतुबे पर डाला जाये.वीडियो तैयार करने के बाद उसे एक्सपोर्ट करने के पहले रैपर का नाम रखने की बात आती है तो मुराद कहता है कि मेरा क्या नाम? मैं तो गली का छोकरा....यही गली बॉय नाम पड़ता है.वीडियो आते ही उसकी यात्रा आरम्भ हो जाती है.वह सपनों को जीने लगता है.वह अपने मामा की इस धारणा और सोच को झुठलाता है कि नौकर का बेटा नौकर ही हो सकता है.
जोया ने ‘गली बॉय’ की प्रेरणा ज़रूर रियल रैपर नेज़ी और डिवाइन से ली है,लेकिन उन्होंने उनकी ज़िन्दगी के कडवे और सच्चे प्रसंग कम लिए हैं.रीमा कागती के साथ उन्होंने गली के छोकरे के रैपर बनाने की कहने को हिंदी फिल्मों के घिसे-पिटे ढांचे में फिट किया है.’गली बॉय’ की यही सीमा उसे देश के दर्शकों से नहीं जोड़ पति.पहले दिन यह फिल्म संगीत और नेज़ी व डिवाइन के किस्सों की वजह से शहरी दर्शकों को खींचती है,लेकिन दर्शक जा फिल्म से कूनेक्तिओन फील नहीं करते तो वे छंट जाते हैं.दूसरे दिन ही घटे दर्शकों ने जाहिर कर दिया है कि जोया अख्तर की फिल्म उन्हें अधिक पसंद नहीं आई है.निर्देशक जोया अख्तर और मुख्य कलाकार रणवीर सिंह मुराद का करैक्टर ग्राफ नहीं रच पाते.फिल्म के पहले फ्रेम से ही रणवीर सिंह का रवैया और व्यवहार रैप स्टार का है,इसलिए किरदार की यात्रा छू नहीं पाती.
जोया अख्तर और करण जौहर कोशिश तो कर रहे हैं कि वे आम दर्शकों की ज़िन्दगी की कहानी कहें,लेकिन अनुभव,समझदारी और शोध की कमी से उनके प्रयास में छेद हो जाते हैं.


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