सिनेमालोक : फिल्म प्रभाग का खज़ाना


सिनेमालोक
फिल्म प्रभाग का खज़ाना
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले दिनों कुछ नया देखने की कोशिश में ‘फिल्म प्रभाग’ के साइट पर जाने का मौका मिला. हिंदी नाम से अधिक पाठक वाकिफ नहीं होंगे. हम सभी इसे ’फिल्म्स डिवीज़न’ के नाम से ज्यादा जानते हैं. किसी जमाने में यह अत्यंत सक्रिय संस्था थी. अब यह हर दूसरे साल शार्ट और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का फेस्टिवल करती है. इसके अलावा इसके प्रांगण में ‘भारतीय फिल्मों का राष्ट्रीय संग्रहालय’ भी मौजूद है, जिसका उद्घाटन पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था.
इस साइट के मुताबिक... ‘भारत के फिल्म्स डिवीजन की स्थापना 1948 में एक नए स्वतंत्र राष्ट्र की ऊर्जा को स्पष्ट रूप से क्रियाशील करने के लिए की गई थी. छह दशकों से अधिक समय से संगठन ने फिल्म पर देश की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कल्पना और वास्तविकताओं का रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए अथक प्रयास किया है. इसने भारत में फिल्म निर्माण की संस्कृति को प्रोत्साहित करने, बढ़ावा देने में सक्रिय रूप से काम किया है जो व्यक्तिगत दृष्टि और सामाजिक प्रतिबद्धता का सम्मान करता है.’
.देश के आम नागरिक और फिल्म निर्माण-निर्देशन में रुचि रखने वालों के लिए भी उपयोगी जानकारी यहां दी गई है. सरकारी संस्थाओं के प्रति उदासीनता और नौकरशाही के डंक की आशंका में हम इन संस्थाओं से मिल रही या मिल सकने वाली सुविधाओं पर ध्यान नहीं देते. ऐसे युवा और महत्वाकांक्षी फिल्मकारों की जानकारी के लिए... ‘यह भारत सरकार का मुख्य फिल्म माध्यम संगठन है और यह प्रशिक्षित फिल्मकर्मियों, कैमरा, रिकॉर्डिंग और संपादन सुविधाओं से सुसज्जित है. इस बुनियादी ढांचे का उपयोग करने के लिए घर के साथ-साथ स्वतंत्र फिल्म निर्माण कर्ताओं निर्माताओं का उपयोग करने के लिए रखा गया है. इसके अभिलेखागार में भारतीय फिल्म प्रभाग ने अमूल्य INS(भारतीय समाचार समीक्षा) लघु फिल्म, एनिमेशन सहित 8000 से अधिक खिताब रखे हैं.’ पिछली पंक्तियों की सरकारी भाषा की गूढता पर ध्यान ना दें. आशय यह है कि स्वतंत्र फिल्मकार यहां से तकनीकी सुविधाएं और आर्थिक मदद हासिल कर सकते हैं.
फिल्म प्रभाग का स्वर्ण काल 1948 से 1975 के बीच रहा. तब यह प्रभाव देश के महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों को रिकॉर्ड करता था. दूरदर्शन आने के पहले फिल्म प्रभाग की फिल्में सिनेमाघरों में देखी जाती थीं. इसमें प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों से लेकर राजपथ की परेड और अन्य घटनाओं की जानकारियां भी मिल जाती थीं. बहुत पहले दर्शक फिल्म खत्म होने के बाद इन समाचारों को देखने के लिए रुकते थे. बाद में उनकी रुचि समाचारों में कम हुई और वे फिल्म खत्म होते ही निकलने लगे तो फिल्म प्रभाग ने फिल्म के आरंभ या मध्यांतर में इन फिल्मों का प्रदर्शन आरंभ किया. प्रभावशाली वॉइस ओवर के साथ इन खबरों को देखते हुए रोमांच होता था. तब हफ्ते-दो हफ्तों के बाद पहुंची ये फिल्में भी ताजा, रोचक और जानकारीपूर्ण लगती थीं. सूचना तंत्र के विस्फोट ने न्यूज़ रील की उपयोगिता और प्रासंगिता समाप्त कर दी.
फिल्म प्रभाग के लिए देश के नामी फिल्मकारों ने डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट फिल्में और एनिमेशन का निर्माण किया है. देश में डॉक्यूमेंट्री के इतिहास को समझने के लिए भी यह साइट उपयोगी है. 21वीं सदी में तकनीकी सुविधाओं और सामाजिक-आर्थिक समृद्धि के बाद फिल्मों के निर्माण में बहुस्तरीय तरक्की हुई है. बीसवीं सदी में तो फिल्म्स डिवीजन ही एकमात्र प्लेटफार्म था. तब फिल्म प्रभाग के अधिकारी व्यस्त निर्माता, निर्देशकों को बायोग्राफी और डॉक्यूमेंट्री निर्माण के लिए आमंत्रित करते थे. श्याम बेनेगल,जब्बर पटेल और गुलजार सरीखे फिल्मकारों ने भी फिल्म प्रभाग के लिए काम किया है.
मुझे देश के फिल्मकारों, संगीतकारों, संगीतज्ञों और नृत्य परंपरा पर कई फिल्में मिलीं. उन पर 15 मिनट से लेकर सवा घंटे तक की फिल्में बनाई गई हैं. इन फिल्मों को देखना एक प्रकार से समय की पुरानी गलियों मे चीजों को निहारना है. यहां हर दर्शक की पसंद और रुचि की कोई न कोई फिल्म जरूर मिल जाएगी.
आज भी फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों को अगर पुरानी फुटेज की जरूरत पड़ती है तो वे फिल्म प्रभाग से संपर्क करते हैं. इस साइट पर फिल्म प्रभाग का आर्काइव और कैटलॉग उपलब्ध है. अपनी जरूरत के मुताबिक सामग्री और फिल्मों की तलाश की जा सकती है. ना जाने क्यों सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का यह विभाग निष्क्रिय पड़ा है. इसे सक्रिय और सुचारू करने की जरूरत है.


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