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फिल्‍म समीक्षा : तनु वेड्स मनु रिटर्न्‍स

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-अजय ब्रह्मात्म्ज ‘एक बार जो मैंने कमिटमेंट कर दी,फिर मैं अपने आप की भी नहीं सुनता’... पर्दे पर सलमान खान के बोले इस पॉपुलर संवाद को ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स ’(तवेमरि) में मनोज शर्मा उर्फ मनु अपने अंदाज में फेरबदल के साथ बोलते हैं तो पप्पू टोकता है कि तुम क्या सलमान खान हो? सिनेमा और उनके स्टार और गाने हमारी जिंदगी में प्रवेश कर चुके हैं। ‘तवेमरि’ में शाहरुख खान का भी जिक्र आता है। सुनसान सड़कों पर अकेली भटकती तनु के लिए एक पुराना गाना भी गूंजता है ‘जा जा रे बेवफा’। ‘तवेमरि’ में पॉपुलर कल्चर के प्रभाव सिनेमा से ही नहीं लिए गए हैं। उत्तर भारत में प्रचलित ठेठ शब्दों के साथ ‘बहुत हुआ सम्मा न तेरी...’ जैसे मुहावरा बन चुकी पंक्तियों का भी सार्थक इस्तेूमाल हुआ है। याद करें ‘तेलहंडा’ और ‘झंड’ जैसे शब्द आप ने फिल्मों में सुना था क्या ? नहीं न ? ‘तवेमरि’ हमारे समय की ऐसी फिल्मे है,जो उत्तर भारत की तहजीब और तरीके को बगैर संकोच के पेश करती है। इस फिल्म को देखते हुए उत्तर भारत के दर्शक थोड़ा सा हंसेंगे, क्योंकि शब्दक,संवाद और मुहावरे उनकी रोजमर्रा जिंदगी के हैं। शहरी दर्शकों का आन

शादी में प्रेम तो होना ही चाहिए-कंगना रनोट

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-अजय ब्रह्मात्‍मज -पहला सवाल तो यही बनता है कि आप ने हरियाणवी कहां और कैसे सीखी ? ट्रेलर में आप की हरियाणवी सुन कर सभी दंग हैं। 0 आप आए तो थे शूट पर। आप ने देखा था। अपने आप तो कुछ भी नहीं आता। अच्‍छी ट्रेनिंग लेनी पड़ी। मैंने सुनीता जी से सीखी। वह हरियाणा की हैं। अभी मुंबई में रहती हैं। उन्‍होंने ट्यूशन दिया। रिजल्‍ट बहुत अच्‍छा आया। हरियाणवी लोग तक कह रहे हैं कि हिंदी सिनेमा में इतनी साफ हरियाणवी पहले नहीं सुनाई पड़ी। -दत्‍तो किस रूप में तनु से अलग है ? 0 दोनों बिल्‍कुल अलग हैं। दत्‍तो मुंहफट है। तनु केवल अपने बारे में सोचती है। मैनिपुलेट कर लेती है। उसकी शादी में नहीं निभा पाने की एक वजह वह खुद है। तनु का लगता है कि वह दुखी है तो सब खुश क्‍यों हैं ? वह सेल्फिश है। दत्‍तो मैच्‍योर है,जबकि वह तनु से 10 साल छोटी है। उसमें कुछ छिपे गुण हैं। -दत्‍तो के लुक का श्रेय किसे देंगी ? 0 सभी को कलेक्टिव श्रेय देना चाहिए। हिमांशु शर्मा और आनंद राय ने उसे गढ़ा। उन्‍हें छोटे बालों की हरियाणा की टिपिकल एथलीट लड़की चाहिए थी। वह बाहर से सख्‍त अंदर से नर्म लड़की हो। हमारे डि

राज शेखर रिटर्न्स

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-अजय ब्रह्मात्मज     चार साल पहले तनु वेड्स मनु आई थी। इस फिल्म की अनेक खूबियों में एक खूबी इसके गीत थे। इन गीतों को राज शेखर ने लिखा था। संयोग ऐसा ही कि अभी सक्रिय ज्यादातर गीतकार गीत लिखने के उद्देश्य से फिल्मों में नहीं आए हैं। स्वानंद किरकिरे,अमिताभ भट्टाचार्य,वरूण ग्रोवर और राज शेखर के बारे में यह बात सत्य है। इसी वजह से इनके गीतों में हिंदी फिल्मी गीतों की प्रचलित शब्दावली नहीं मिलती। एक अमिताभ भट्टाचार्य को छोड़ दे तो ये गीतकार कम फिल्में करते हैं। राज शेखर को ही लें। तनु वेड्स मनु के बाद अब वे कायदे से रिटर्न हो रहे हैं। बीच में उनके छिटपुट गान कुछ फिल्मों में आए,लेकिन वे याद नहीं रहे। तनु वेड्स मनु रिटर्न्स के गाने फिर से गूंज रहे हैं। राज शेखर इस रिटर्न की वजह तो बताते हैं,लेकिन वे खुद भी नहीं समझ पा रहे हैं कि उन्होंने बीच में दूसरी फिल्में क्यों नहीं की?     राज शेखर बताते हैं,‘मैं निष्क्रिय नहीं रहा। दरमियानी दौर में मैं दो-तीन फिल्मों में गाने लिखे,लेकिन वे नोटिस नहीं हो सके। इस बीच एक स्क्रिप्ट पर काम कर रहा हूं। उसमें काफी रिसर्च है। वह पालिटिकल फिल्म है। इसके अलावा

पीड़ा भी रंग है प्यार का : आनंद राय

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पीड़ा भी प्यार का रंग है : आनंद राय -अजय ब्रह्मात्मज आनंद राय अपने ही शब्दों में खुशमिजाज व्यक्ति हैं। उन्हें लोग पसंद हैं। वे अपने रिश्तों में सुरक्षित महसूस करते हैं। इस मुलाकात के लिए जाते समय मैंने उनके प्रशंसकों से सवाल मांगे थे। एक सवाल बड़ा रोचक आया था। उनके नायक प्रेम में पीड़ित क्यों रहते हैं। इस सवाल के जवाब में आनंद राय ने कहते हैं,‘एक बार खुद को किसी परीक्षा में डाल कर देखने पर ही प्यार का पता चलता है। शायद अचेतन रूप से मैं प्रमुख चरित्रों में से किसी एक को पीड़ा में ले जाता हूं। मुझे जरूरी लगता है। मेरी फिल्मों में नायक ही पीड़ित रहता है। पीड़ा भी प्यार का एक रंग है।’ आनंद राय के संदर्भ में यह बात नहीं लिखी जा सकती कि निर्देशक अपने स्वभाव के मुताबिक ही चरित्र चुनता है। आनंद राय का जवाब होता है,‘मेरे मामले में ऐसा नहीं है। मैं अपने अंदर से चरित्रों को नहीं निकालता। मैं चरिषें को अपने अंदर ले जाता हूं। फिर सोचता हूं कि अगर मैं खुद उनकी स्थितियों में पाता तो क्या करता? आखिरकार एक कहानी है। मैं खुद को सारे चरित्रों में बांट देता हूं। हा किरदार मेरे अंदर जीता है।’     आनंद राय इस

तनु वेड्स मनु रिटर्न्‍स

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-हालत देख रहे हैं ? अदरख हो गया है यह आदमी। कहीं से भी बढ़ रहा है। -शादी से पहले मैं रितिक रोशन था क्‍या ? ( यो रितिक रोशन का भी तलाक हो ताता है, है ना ?) >>>>>>>> >>>>>> >> थारे लागाई लागै तो म्‍हारै जैसी ही है। पर मैं थारै लगााई ना हूं। म्‍हारै नाम है कुमारी कुसुम सांगवान। कुमारी कुसुम संगवान और मनोहर शर्मा के बीच क्‍या होगा ? आनंद राय लेकर आ गए हैं तनु वेड्स मनु की अगली कड़ी। चार सालों के बाद आ रहे इस सीक्‍वल में सभी चार साल बड़े हो गए हैं। हालांकि कहानी ने सात साल का जंप लिया है। कुछ नए किरदार भी आ गए हैं। अपने पप्‍पी भैया तो हैं हीत्र कुमारी कुसुम सांगवान भी गजब ढा रही है। यह एथलीट खेलने के समान बोलने में भी तेज है और बेलाग बातें करती है। आखिर मेंशरमा भी जाती है अपना नाम लेते हुए।

यार मेरी जिंदगी... आनंद एल राय-हिमांशु शर्मा

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तनु वेड्स मनु के बाद रांझणा के रूप में दूसरी खूबसूरत फिल्म देने के बाद यह जोड़ी चर्चा में है. फिल्मकार आनंद एल राय और लेखक हिमांशु शर्मा की दोस्ती के बारे में बता रहे हैं रघुवेन्द्र सिंह वो बड़े भाग्यशाली होते हैं, जिनके हिस्से सच्ची दोस्ती आती है. और बात जब फिल्म इंडस्ट्री जैसी एक अति व्यावहारिक और घोर व्यावसायिक जगह की हो, तो फिर इसका महत्व शिव की जटा से निकली गंगा सा हो जाता है. हिमांशु शर्मा 2004 में मुंबई पहुंचे, लखनऊ से वाया दिल्ली होते हुए. दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से ग्रेजुएशन के बाद वह एनडीटीवी में आठ महीने नौकरी कर चुके थे. चैनल में वह बतौर लेखक कार्यरत थे. सच्चाई उनकी जुबान पर रहती थी. हकीकत को वह बेलाग-लपेट मुंह पर ही बोल देते थे. उसका खामियाजा भी उन्हें उठाना पड़ता था. ''मुझे कई प्रोड्यूसर्स ने यह कहकर निकाल दिया गया कि मैं बदतमीज और डिस्ट्रैक्टिव हूं. हिमांशु बताते हैं. लेकिन उनकी यही खूबी आनंद एल राय को भा गई. ''इससे पहली मुलाकात में ही मुझे समझ में आ गया था कि इसके दिल में जो है, वही जुबान पर है." आनंद बताते हैं.  आनंद और हिमांशु

दरअसल... धनुष की टंकार

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-अजय ब्रह्मात्मज     आनंद राय की ‘रांझणा’ प्रदर्शित होने के पहले से साउथ के स्टार धनुष के आने की टंकार सुनाई पड़ रही थी। एक तो ‘कोलावरी डी’ ने उन्हें अप्रत्याशित लोकप्रियता दे द थी और दूसरे वे दक्षिण के सुपरस्टार रजनीकांत के दामाद हैं। हिंदी फिल्मों के दर्शकों को यह तो एहसास हो गया था कि धनुष दक्षिण के पापुलर स्टार हैं, लेकिन रजनीकांत और कमल हासन के बरक्श वे उनका स्टारडम आज भी नहीं समझते। हम बताते चलें कि धनुष को अपने छोटे से करिअर में एक्टिंग के लिए नेशनल अवार्ड और फिल्मफेअर अवार्ड मिल चुके हैं। आनंद राय की ‘रांझणा’ हिंदी में उनकी पहली फिल्म है, लेकिन तमिल में वे पहले से एक सिद्धहस्त कलाकार की जिंदगी जी रहे हैं।     ‘रांझणा’ आई और धनुष की टंकार एक बार फिर हिंदी दर्शकों ने अपने कानों से सुनी। उन्होंने बड़े पर्दे पर धनुष को तमिल लहजे में हिंदी बोलते सुना और प्यार किया। उन्हें ‘रांझणा’ का कुंदन भा गया। अंग्रेजी प्रेस में शहरी लेखक कुंदन के चरित्र को लेकर ‘रांझणा’ का छीछालेदर कर रहे हैं। सचमुच, हम अपने ही देश की सच्चाइयों और स्थितियों से कितने अनजान हो गए हैं। 21वीं सदी के 2012 से ह

पढ़ लें धनुष के बारे में

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धनुष को आप सभी ने देख लिया। अब उन्‍हें पढ़ भी लीजिए।  तमिल सिनेमा के प्रिंस धनुष हिंदी फिल्मों में रांझणा से एक नई पारी का आगाज कर रहे हैं. रघुवेन्द्र सिंह इस सुपस्टार की विनम्रता से प्रभावित हैं आजकल तमिल सिनेमा के इंटरनेशनल सुपस्टार धनुष का नाम मुंबई में सबकी जुबान पर है. आनंद एल राय की फिल्म रांझणा में इस तीस वर्षीय युवक ने स्कूल बॉय की भूमिका जीवंत करके सबको चौंका दिया है. सोनम कपूर के साथ उनकी जोड़ी को अपरंपरागत माना जा रहा है, लेकिन यही इस अभिनेता की विशेषता है. उनका चेहरा भी हिंदी फिल्मों के आदर्श हीरो जैसा नहीं है, लेकिन उनके व्यक्तित्व में ऐसा आकर्षण है, जो सबको उनका दिवाना बना देता है. अपने अतुलनीय अभिनय के लिए उन्होंने सबसे कम उम्र (29 वर्ष) में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल करने का कीर्तिमान अपने नाम किया है. अडुकलम (2011) के लिए ही सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी उन्होंने जीता था. तमिल सिनेमा में 12 वर्षों से राज कर रहे धनुष ने दो वर्ष पहले कोलावरी डी गीत से विश्वस्तरीय लोकप्रियता हासिल करके सबको अचंभित कर दिया था. वह

फिल्‍म समीक्षा : रांझणा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  अगर आप छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में नहीं रहे हैं तो 'रांझणा' का कुंदन बेवकूफ और बच्चा लगेगा। उसके प्रेम से आप अभिभूत नहीं होंगे। 21वीं सदी में ऐसे प्रेमी की कल्पना आनंद राय ही कर सकते थे। उसके लिए उन्होंने बनारस शहर चुना। मुंबई और दिल्ली के गली-कूचों में भी ऐसे प्रेमी मिल सकते हैं, लेकिन वे ऊिलहाल सिनेमा की नजर के बाहर हैं। बनारस को अलग-अलग रंग-ढंग में फिल्मकार दिखाते रहे हैं। 'रांझणा' का बनारस अपनी बेफिक्री, मस्ती और जोश के साथ मौजूद है। कुंदन, जोया, बिंदिया, मुरारी, कुंदन के माता-पिता, जोया के माता-पिता और बाकी बनारस भी गलियों, मंदिरों, घाट और गंगा के साथ फिल्म में प्रवहमान है। 'रांझणा' के चरित्र और प्रसंग के बनारस के मंद जीवन की गतिमान अंतर्धारा को उसकी चपलता के साथ चित्रित करते हैं। सिनेमा में शहर को किरदार के तौर पर समझने और देखने में रुचि रखने वाले दर्शकों के लिए 'रांझणा' एक पाठ है। फिल्म में आई बनारस की झलक सम्मोहक है। 'रांझणा' कुंदन और जोया की अनोखी असमाप्त प्रेम कहानी है। बचपन में ही कुंदन की द

ऑन द सेट्स: रांझणा

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सोनम कपूर और धनुष के साथ आनंद एल राय फिल्म रांझणा के कुछ गंभीर दृश्यों की शूटिंग फिल्मसिटी में कर रहे थे. उनके सेट से कुछ खूबसूरत यादें लेकर लौटे हैं रघुवेन्द्र सिंह कहानी कुंदन (धनुष) और जोया (सोनम कपूर) की प्रेम कहानी है रांझणा. यह बनारस की गलियों में रची-बसी है. कुंदन का बचपन का प्यार है जोया, लेकिन वह उससे अपने प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. जोया पढ़ाई के लिए दिल्ली चली जाती है. जेएनयू में उसकी मुलाकात अकरम (अभय देओल) से होती है और फिर वह राजनीति में उतर जाती है. इस त्रिकोणीय प्रेम कहानी में दोस्ती और राजनीति का हल्का रंग भी है.  फिल्मसिटी में बसी दिल्ली रांझणा यूं तो बनारस के शुद्ध वातावरण में बसी एक प्रेम कहानी है, लेकिन इस प्रेम कहानी का एक बहुत गंभीर पहलू भी है. जिसके तार दिल्ली की राजनीति से जुड़ते हैं. इस राजनीति में उतरकर जोया कुछ खोती है, तो कुछ पाती है. उसने क्या खोया है और क्या पाया है, यह तो आपको यह फिल्म देखने के बाद पता चलेगा, लेकिन मुंबई की फिल्मसिटी में आनंद एल राय कुछ ऐसे दृश्यों की शूटिंग कर रहे हैं, जिनमें सोनम कपूर और

छोटे शहरों में ही मेरे किरदारों को सांस मिलती है-आनंद राय

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छोटे शहरों में ही मेरे किरदारों को सांस मिलती है-आनंद राय -अजय ब्रह्मात्मज     आनंद राय की अगली फिल्म ‘रांझणा’ में ए आर रहमान का संगीत है। गीत इरशाद कामिल ने लिखे हैं। अभी तक जारी हुए तीन गानों में श्रोताओं को बनारस की लय,्र मधुरता और गेयता दिख रही है। आनंद राय ने इस फिल्म की प्लानिंग के समय ही गीत और संगीत के बारे में सोच लिया था। फिल्म की जरूरत को ध्यान में रखते हुए उन्होंने ‘तनु वेडस मनु’ की म्यूजिकल टीम को नहीं दोहराया। आनंद राय एआर रहमान के साथ काम का हतप्रभ और खुश हैं। आरंभ में फिल्म में छह गानों की बात सोची गई थी, लेकिन आनंद राय कहते हैं, ‘रहमान सर के साथ काम करते हुए मैंने पाया कि आप गिन कर गाने नहीं रख सकते। मैं उनके साथ थीम की बात करता हूं तो वह भी गाने का रूप ले लेता है। फिल्म में वैसे छह गाने दिखाई पड़ेंगे, लेकिन अलबम में आठ गाने और दो थीम हैं। रहमान सर के आने के साथ हर फिल्म म्यूजिकल हो जाती है।’      ‘रांझणा’ के प्रोमो के आने के साथ ‘मोहल्ला अस्सी’ के निर्देशक डॉ . चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा था, ‘अब मेरी फिल्म की नवीनता खत्म हो गई। बनारस के रंग और ढंग को ‘रांझणा’ ने