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सिनेमा: अभिव्यक्ति का नहीं अन्वेषण का माध्यम: कमल स्वरुप

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कमल स्‍वरूप की ओम दर-ब-दर 17 जनवरी को रिलीज हो रही है। निर्माण के 25 सालों बाद यह फिल्‍म थिएटर में प्रदर्शित होगी।  यह इंटरव्‍यू हंस में छपा था। चवन्‍नी पर तिरछी स्‍पेलिंग से लिया गया है।  भारतीय सिनेमा के सौ होने के उपलक्ष्य में अपने तरह का एकदम अलहदा फिल्म-निर्देशक कमल स्वरुप से  ’हंस- फरवरी- 2013- हिन्दी सिनेमा के सौ साल’ के लिए   उदय शंकर द्वारा लिया गया एक साक्षात्कार (८० - ९० के दशक में सिनेमा की मुख्या धारा और सामानांतर सिनेमा से अलग भी एक धारा का एक अपना रसूख़ था . यह अलग बात है कि तब इसका बोलबाला अकादमिक दायरों में ज्यादा था . मणि कौल , कुमार साहनी के साथ - साथ कमल स्वरुप इस धारा के प्रतिनिधि फ़िल्मकार थे . वैकल्पिक और सामाजिकसंचार साधनों और डिजिटल के इस जमाने में ये निर्देशक फिर से प्रासंगिक हो उठे हैं। संघर्षशील युवाओं के बीच गजब की लोकप्रियता हासिल करने वाले इन फिल्मकारों की फिल्में ( दुविधा , माया दर्पण और ओम दर बदर जैसी ) इधर फिर से जी उठी हैं। आज व्यावसायीक और तथाकथिक सामानांतर फिल्मों का भेद जब अपनी समाप्ति के कगार पर पहुँच चुका है , तब इन निर्देशकों की विगत मह