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हिंदी टाकीज 2(10) : बचपन सिनमा और सनी देओल : राजा सहेब

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राजा साहेब मैंने फिल्ममेकिंग की पढाई की है डिजिटल अकेडमी सॆ ।पिछले 3 साल सॆ मुम्बई में हूँ ।डाइरेक्शन में काम ढूंढ़ता हूँ । कुछ छोटी फिल्मों में अस्सिस्टेंट डाइरेक्टर भी रहा ।खुद की एक शॉर्ट फ़िल्म भी बनाई है encounter नाम सॆ youtube पर है ।सिनेमा में गहरी रुचि है ।लेखन अच्छा लगता है । बचपन ,सिनेमा और सनी देओल   स्वेल्बेस्टर स्तेल्लोंन   और आर्नोल्ड स्च्वान्ज़ेगेर कौन है ? क्या करता है?   हमें पता   ना था | सालों बाद में , नाम सुनने को मिला | मगर पता लगाना उतना ही मुश्किल जितना की इनका नाम उच्चारण करना | हम गाँव के देशी लोग थे | गोरे चेहरे (विदेशी) तब   हमारे दिमाग में घुसते नहीं थे ,ना ही कोई   कोशिश भी करता था |   तब हमारे , हम लोग का अपना सुपर हीरो ,हीमैन इत्यादि सिर्फ़ सनी देओल था | हम इससे काफी खुश थे | सबसे ताक़तवर ,साहसी और ज़िगर वाला साथ में कभी कभी बेहद मज़ाकिया और मासूम | वो ज़माना वीडियो होम सिस्टम (वीएच्एस) का था |कुछ संपन्न घरों में ही वीसीआर   या वीसीपी (वीडियो केसेट प्लेयर/ रेकॉर्डर ) पाया जाता   वो भी जिनका घर बाज़ार में होता ,ज़ी टी .वी देखने का सौभाग्य भी इन

हिंदी टाकीज 2(9) :हम सब का हीरो बन गया भीखू म्‍हात्रे -डॉ. नवीन रमण

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हिंदी टाकीज2 का सिलसिला थम सा गया था। लंबे समय के बाद एक संस्‍मरण मिला तो लगा कि इसे हिंदी टाकीत सीरिज में पोस्‍ट किया जा सकता है। डाॅ. नवीन रमण ने सत्‍या और मल्‍टीप्‍लेक्‍स की पहली फिल्‍म की यादें यहां लिखी हैं। डॉ नवीन रमण समालखा, हरियाणा के मूल निवासी हैं। हिन्दी सिनेमा में पीएच.डी. का शोध कार्य किया है । हरियाणवी लोक साहित्य और पॉपुलर गीतों पर अध्ययन और स्वतंत्र लेखन करते हैं । सोशल मीडिया पर राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आंदोलन-कर्ता के तौर पर निरंतर सक्रियता रहती है । दिल्ली विश्वविद्यालय में अस्थायी अध्यापन में कार्यरत रहे हैं । वर्तमान समय में जनसंदेश वेब पत्रिका की संपादकीय टीम के सदस्य है। -डॉ. नवीन रमण साल 1998। हिंदी सिनेमा में यह साल जिस तरह एक खास अहमियत रखता है। कारण है रामगोपाल वर्मा की सत्या फिल्म, जिसने हिंदी सिनेमा को एक नया आयाम दिया।  ठीक उसी तरह यह साल मेरी जिंदगी में भी अहमियत रखता है। यह वह साल था जब मैंने गिर-पड़ कर बारहवीं की परीक्षा पास की थी और दिल्ली में एडमिशन लेने के लिए समालखा(हरियाणा) से विदआउट टिकट ट्रेन में आ गया था। इधर-उधर धक्के खा

हिंदी टाकीज 2(8) : यादों के गलियारों से... -वर्षा गोरछिया 'सत्‍या'

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इस बार वर्षा गोरछिया 'सत्‍या' अपनी यादों के गलियारों से सिनेमा के संस्‍मरण लेकर लौटी हैं। फतेहाबाद,हरियाणा में पैदा हुई वर्षा ने पर्यटन प्रबंधन में स्‍नातक किया है। बचपन से सिनेमा की शौकीन वर्षा ने अपनी यादों को पूरी अंतरंगता से संजोया है। फिलहाल वह गुड़गांव में रहती हैं। हरियाणा की वर्षा के सिनेमाई अनुभवों में स्‍थानीय रोचकता है। रविवार का दिन है, शाम के वक़्त बच्चे काफी शोर कर रहे हैं ।   कुछ बच्चे बबूल (कीकर) के पेड़ पर चढ़े हुए हैं ।   कुछ जड़ों को काटने के लिए खोदे गए गड्ढे में कुछ अजीब ढंग के लाल-पीले चश्मा लगाकर, गर्दन हिलाकर चिल्ला रहे हैं “दम मारो दम,मिट जाए गम, बोलो सुबहो शाम..”, तभी एक बच्चा बबूल के पेड़ के किसी ऊंची डाल पर से बोलता है “बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना..” ।   एक छोटी सी लड़की ने एक डंडा गिटार की तरह पकड़ रखा है और फ्लिम “यादों की बारात” का गाना “चुरा लिया है तुमने..” गा रही है ।   इसी तरह अलग-अलग बच्चे अपनी-अपनी पसंदीदा फिल्मों या कलाकारों की नक़ल करने में लगे हुए हैं ।   ये सब मैं कोई नाटक का दृश्य बयान नहीं कर रही बल्कि अपनी बचपन