Posts

फ़िल्म समीक्षा:१३ बी,ढूंढते रह जाओगे,कर्मा और होली

Image
-अजय ब्रह्मात्मज ठहरता नहीं है डर 13 बी डरावनी फिल्मों के लिए जरूरी है कि वे दर्शकों को जिज्ञासु बना दें। अब क्या होगा? यह सवाल दर्शकों के दिमाग में मंडराने लगे तो रोमांच पैदा होता है। फिर जब अगला दृश्य आए तो वह अपने प्रभाव से सिहरन और डर पैदा करे। यह प्रभाव दृश्य विधान, पाश्‌र्र्व संगीत और अभिनय से पैदा किया जाता है। 13बी देखते हुए जिज्ञासा तो बढ़ती है, लेकिन डर नहीं लगता। फिल्म का नायक मनोहर (आर माधवन) कर्ज लेकर नया अपार्टमेंट खरीदता है और पूरे परिवार के साथ वहां शिफ्ट करता है। मनोहर का हंसता-खेलता परिवार है। इसमें उसकी बीवी के साथ बड़े भाई, भाभी, भतीजे और मां हैं। शिफ्ट होने के दिन से ही कुछ गड़बड़ शुरू हो जाती है। मनोहर पढ़ा-लिखा और तार्किक व्यक्ति है। वह संभावित दुर्घटना से परिवार को बचाने की युक्ति में ऐसे सच को छू लेता है, जो पारलौकिक शक्तियों से संचालित है। लेखक और निर्देशक विक्रम के कुमार ने हारर फिल्म में नए तत्व इस्तेमाल किए हैं। उन्होंने अनोखे ढंग से हैरतअंगेज घटनाओं को कहानी का रूप दिया है। आरंभ के कुछ मिनटों की शिथिलता के बाद फिल्म के नायक मनोहर की तरह यह जिज्ञासा बढ़ने

हिन्दी टाकीज:फिल्मी गानों की किताब ने खोली पोल-ममता श्रीवास्तव

हिन्दी टाकीज-२८ इस बार ममता श्रीवास्तव.ममता गोवा में रहती हैं और ममता टीवी नाम से ब्लॉग लिखती हैं.चवन्नी इनका नियमित पाठक है.ममता की आत्मीय शैली पाठकों से सहज रिश्ता बनती हैं और उनकी बातें किसी कहानी सी महसूस होती हैं.चवन्नी ने उनसे आग्रह किया था इस सीरिज के लिए.ममता ने लेख बहुत पहले भेज दिया था,लेकिन तकनीकी भूलों की वजह से यह लेख पहले पोस्ट नहीं हो सका.उम्मीद है ममता माफ़ करेंगीं और आगे भी अपने संस्मरणों को पढने का मौका देंगीं। चवन्नी ने कई महीनों पहले जब हिन्दी टाकीज नाम से ब्लॉग शुरू किया था तब उन्होंने हमसे भी इस ब्लॉग पर सिनेमा से जुड़े अपने अनुभव लिखने के लिए कहा था पर उसके बाद कुछ महीनों तक तो हमने ब्लॉग वगैरा लिखना-पढ़ना छोड़ दिया था इस वजह से हमने हिन्दी टाकीज पर भी कुछ नही लिखा ।इतने सारे अनुभव और यादें है कि समझ नही आ रहा है कहाँ से शुरू करुँ । पर खैर आज हम cinema से जुड़े अपने अनुभव आप लोगों से बाँटने जा रहे है । सिनेमा या फ़िल्म इस शब्द का ऐसा नशा था क्या अभी भी है कि कुछ पूछिए मत ।वैसे भी ६०-७० के दशक मे film देखने के अलावा मनोरंजन का कोई और ख़ास साधन भी तो नही था । बचप

बिट्टू के बंधन

Image
-अजय ब्रह्मात्मज राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म 'दिल्ली 6' में सपनों के पीछे भाग रही बिट्टू बहकावे में आकर घर छोड़ देती है। संयोग से रोशन उसे बचा लेता है। अगर बिट्टू चांदनी चौक के फोटोग्राफर के साथ भाग गयी होती हो कहानी कुछ और हो जाती। हम आए दिन ऐसी बिट्टुओं के किस्से पढ़ते रहते हैं। उजाले की तलाश में वर्तमान जिंदगी के अंधेरे से निकलते समय सही दिशा-निर्देश के अभाव में गांव, कस्बे, छोटे शहरों और महानगरों की बिट्टुएं अंतहीन सुरंगों में प्रवेश कर जाती हैं। उनके अपने छूट जाते हैं और सपने पूरे नहीं होते। घर-समाज में हमारे आस पास ऐसी बिट्टुओं की भरमार है। अगर समाज उन्हें बंधनों से मुक्त करे, उन्हें आजादी दे, उन्हें साधिकार निर्भीक ढंग से घूमने-फिरने और अपना कॅरियर चुनने की स्वतंत्रता दे, तो अपना देश विकास की राह पर छलांगें लगाता हुआ काफी आगे बढ़ सकता है। शर्म की बात है कि आजादी के साठ सालों के बाद भी देश की बिट्टुएं बंधन में हैं। शिक्षा और कथित स्वतंत्रता के बावजूद वे दिन-रात सहमी सी रहती हैं। बगैर बीमारी के उनकी सांसें घुटती रहती हैं। उत्तर भारत के किसी भी शहर के मध्यवर्गीय परिवार का

दरअसल:ऑस्कर अवार्ड से आगे का जहां..

Image
-अजय ब्रह्मात्मज हम सभी खुश हैं। एक साथ तीन ऑस्कर पाने की खुशी स्वाभाविक है। मौलिक गीत और संगीत के लिए रहमान को दो और ध्वनि मिश्रण के लिए रेसूल पुकुट्टी को मिले एक पुरस्कार से भारतीय प्रतिभाओं को नई प्रतिष्ठा और पहचान मिली है। इसके पहले भानु अथैया को रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी के लिए कास्ट्यूम डिजाइनर का ऑस्कर अवार्ड मिला था। सत्यजित राय के सिनेमाई योगदान के लिए ऑस्कर ने उन्हें विशेष रूप से सम्मानित किया था। इस तरह कुल पांच पुरस्कारों के साथ भारत ने अपनी मौजूदगी तो दर्ज कर दी है, लेकिन दरअसल, यहां एक प्रश्न यह उठता है कि क्या ऑस्कर पुरस्कार पाने के बाद भारतीय फिल्मों की तस्वीर बदलेगी? भारतीय फिल्में पिछले पचास सालों से इंटरनेशनल फेस्टिवल में पुरस्कार बटोरती रही हैं। हर साल दो-चार पुरस्कार किसी न किसी फिल्म के लिए मिल ही जाते हैं। अनेक फिल्मों को सराहना मिलती है और देश-विदेश में उनके प्रदर्शन भी किए जाते हैं, लेकिन एक सच यह भी है कि इन पुरस्कृत और सम्मानित फिल्मों में से अनेक फिल्में भारतीय सिनेमाघरों में प्रदर्शित ही नहीं हो पाती हैं! गौर करें, तो हम पाएंगे कि वितरकों और प्रदर्शकों

हिन्दी टाकीज: कोई भी फ़िल्म चुपचाप नहीं आती थी-विष्णु बैरागी

Image
हिन्दी टाकीज- २७ विष्णु बैरागी रतलाम में रहते हैं.विष्णु बैरागी हों गए हैं और ब्लॉग की दुनिया में सक्रिय हैं. उनके दो ब्लॉग हैं- एकोऽहम् और मित्र-धन ,इसके अलावा विष्णु एजेंट हैं जीवन बीमा निगम के.अपने बारे में वे लिखते हैं....कुछ भी तो उल्लेखनीय नही । एक औसत आदमी जिसे अपने जैसे सड़कछापों की भीड़ में बड़ा आनन्‍द आता है । मैं अपने घर का स्वामी हूं लेकिन यह कहने के लिए मुझे मेरी पत्नी की अनुमति की आवश्यकता होती है पूरी तरह अपनी पत्नी पर निर्भर । दो बच्चों का बाप । भारतीय जीवन बीमा निगम का पूर्णकालकि एजेण्ट । इस एजेन्सी के कारण धनपतियों की दुनिया में घूमने के बाद का निष्कर्ष कि पैसे से अधिक गरीब कोई नहीं । पैसा, जो खुद अकेले रहने को अभिशप्त तथा दूसरों को अकेला बनाने में माहिर । ईशान अभी ग्यारह वर्ष का नहीं हुआ है। छठवीं कक्षा में पढ़ रहा है। चुप बिलकुल ही नहीं बैठ पाता। 'बाल बिच्छू' की तरह सक्रिय बना रहता है। उसे पूरे शहर की खबर रहती है। मैं उसके ठीक पड़ौस में रहता हूँ-एक दीवाल की दूरी पर। आज सवेरे उससे कहा - 'स्लमडाग करोड़पति लगे तो मुझे कहना। देखने चलेंगे।' सुनकर उसने मुझे

दरअसल:बन रही हैं डरावनी फिल्में

-अजय ब्रह्मात्मज हालिया रिलीज भट्ट कैंप की मोहित सूरी निर्देशित फिल्म राज-द मिस्ट्री कंटीन्यूज को 2009 की पहली हिट फिल्म कही जा रही है। इस फिल्म ने इमरान हाशमी और कंगना रानावत के बाजार भाव बढ़ा दिए। भट्ट कैंप में खुशी की लहर है और सोनी बीएमजी भी मुनाफे में रही। उल्लेखनीय है कि सांवरिया और चांदनी चौक टू चाइना में विदेशी प्रोडक्शन कंपनियों को नुकसान हुआ था। ट्रेड पंडित राज-द मिस्ट्री कंटीन्यूज की सफलता का श्रेय पुरानी राज को देते हैं। इसके अलावा, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में यह धारणा काफी मजबूत हो रही है कि डरावनी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिजनेस करती हैं। सन 2008 में रामगोपाल वर्मा की फिल्म फूंक और विक्रम भट्ट की 1920 ने ठीकठाक कारोबार किया। इसके पहले रामू की भूत भी सफल रही, लेकिन उसकी कामयाबी से प्रेरित होकर बनी दूसरी डरावनी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर लुढ़क गई। पिछले साल फूंक को पसंद करने के बाद विक्रम भट्ट आशंकित थे कि शायद दर्शकों को 1920 पसंद न आए। दरअसल, उन्हें यह लग रहा था कि कुछ ही हफ्तों के अंतराल पर आ रही 1920 को दर्शक नहीं मिलेंगे, लेकिन उनकी आशंका निराधार निकली। रजनीश दुग्गल और अदा

एक तस्वीर:दिल्ली ६,अभिषेक बच्चन और...

Image
इस तस्वीर के बारे में आप की टिप्पणी,राय,विचार,प्रतिक्रिया का स्वागत है.यह तस्वीर पीवीआर,जुहू,मुंबई में २२ फरवरी को एक खास अवसर पर ली गई है.बीच में घड़ी के साथ मैं हूँ आप सभी का अजय ब्रह्मात्मज.

दरअसल: अभिनेत्रियों का राजनीति में आना

-अजय ब्रह्मात्मज लोकसभा चुनाव में अभी देर है, फिर भी सभी पार्टियों में उम्मीदवारों को लेकर बैठकें चल रही हैं। जीत और सीट निश्चित और सुरक्षित करने के लिए ऐसे उम्मीदवारों को तैयार किया जा रहा है, जो अधिकाधिक मतदाताओं की पसंद बन सकें। भोपाल का उदाहरण लें। बीच में खबर आई कि यहां से नगमा चुनाव लड़ सकती हैं। अभी पार्टी निश्चित नहीं है। नगमा के करीबी कहते हैं कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां उन्हें टिकट देने को राजी हैं। संभव है, यह मात्र शगूफा हो। दूसरी तरफ भोपाल से जया भादुड़ी को टिकट देने की बात भी चल रही है। वे सपा की उम्मीदवार होंगी। उन्हें भोपाल की बेटी के रूप में पेश किया जा सकता है। अगर नगमा और जया भादुड़ी की तुलना करें, तो जया ज्यादा मजबूत उम्मीदवार दिख रही हैं। अभिनेत्रियों को राजनीति में जगह दी जाती रही है। इसकी शुरुआत नरगिस से हो गई थी। वैसे देविका रानी भी राजनीतिक गलियारे में नजर आती थीं और जवाहरलाल नेहरू की प्रिय थीं, लेकिन उन्होंने राजनीति में खास रुचि नहीं ली। नरगिस ने अवश्य संसद की मानद सदस्यता स्वीकार की थी। वे भी नेहरू परिवार की करीबी थीं। नेहरू उन्हें बहुत पसंद करत

एक आगाज है आस्कर

Image
81वें अकादमी अवार्ड यानी आस्कर में स्लमडाग मिलिनेयर को नौ श्रेणियों में दस नामंाकन मिले थे। इस फिल्म ने आठ श्रेणियों में पुरस्कार हासिल कर इतिहास रच दिया। स्लमडाग मिलिनेयर को मिले आस्कर पुरस्कारों से कुछ लोग आह्लादित हैं तो एक समूह ऐसा भी है जो भारतीय खुशी को 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' समझ रहा है। उनका कहना है कि यह भारतीय फिल्म नहीं है, इसलिए हमारी खुशी निराधार है। तर्क के लिहाज से वे सही हैं, लेकिन प्रभाव, भावना और उत्साह की बात करें तो स्लमडाग मिलिनेयर की उपलब्धियों पर खुश होना किसी और के दरवाजे पर दीपक जलाना नहीं है। गीत, संगीत और ध्वनि मिश्रण के लिए भारतीयों को मिले पुरस्कारों से यह साबित होता है कि भारतीय प्रतिभाएं अंतरराष्ट्रीय मानदंड के समकक्ष हैं। जरूरत है कि विभिन्न प्रतियोगिताओं और समारोहों में उन्हें एंट्री मिले और उससे भी पहले जरूरी है कि देश में मौजूद प्रतिभाओं को नई चुनौतियां और अवसर मिलें ताकि वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें। स्लमडाग मिलिनेयर के माध्यम से भारतीय प्रतिभाओं को अंतरराष्ट्रीय पहचान और सम्मान का अवसर मिला। आस्कर पुरस्कार श्रेष्ठता का अके

हिन्दी टाकीज:जैसे चॉकलेट के लिए पानी, जैसे केक पर आइसिंग- आर अनुराधा

Image
हिन्दी टाकीज-२६ इस बार अनुराधा...जब चवन्नी ने अनुराधा से आग्रह किया तो विश्वास था की संस्मरण ज़रूर मिलेगा.क्यों होता है आस-विश्वास?मालूम नहीं...अनुराधा अपने बारे में लिखती हैं...मेरे बारे में कुछ खास कहने लायक नहीं है। बस, एक आत्मकथात्मक किताब - इंद्रधनुष के पीछे-पीछे: एक कैंसर विजेता की डायरी लिखी है जिसका रिस्पॉन्स काफी अच्छा रहा। किताब हिंदी के असाहित्यकारों की दुर्लभ बेस्टसेलर्स में गिनी जाती है। हां,मेरा जीवन लगातार सुखद संयोगों की श्रृंखला रहा है, ऐसा मुझे लगता है। कैंसर जैसी बीमारी ने यह किताब लिखवा दी, और मशहूरी दे दी। जब किताब बाजार में आई, उसी हफ्ते दोबारा कैंसर होने का पता चला और पूरे इलाज के दौरान किताब की समीक्षाएं, मीडिया में चर्चा, कमलेश्वर और राजेंद्र यादव और विष्णु नागर और.. जैसे साहित्यकारों द्वारा अपने कॉलमों में किताब का नोटिस लेना, किताब पर डॉक्युमेंटरी फिल्म की शूटिंग और उस फिल्म की सराहना, आउटलुक (अंग्रेजी) पत्रिका द्वारा 15 अगस्त के विशेषांक में वर्ष के 10 यंग हीरोज़ में शामिल किया जाना जैसे संयोग जुड़ते गए और मैं मुझे यह समझने का वक्त ही नहीं मिला कि उसे जीवन क