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फिल्‍म समीक्षा : आर...राजकुमार

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-अजय ब्रह्मात्‍मज प्रभु देवा निर्देशित 'वांटेड' से ऐसी फिल्मों की शुरुआत हुई थी। ढेर सारे हवाई एक्शन, हवा में लहराते कलाकार, टूटी-फूटी चीजों का स्लो मोशन में बिखरना और उड़ना, बदतमीज हीरो, बेजरूरत के नाच-गाने और इन सब में प्रेम का छौंक, प्रेमिका के प्रति नरम दिल नायक ..दक्षिण के प्रभाव में बन रही ऐसी फिल्मों की लोकप्रियता और कमाई ने हिंदी की पॉपुलर फिल्मों का फार्मूला तय कर दिया है। प्रभुदेवा निर्देशित 'आर ..राजकुमार' इसी कड़ी की ताजा फिल्म है। इस बार शाहिद कपूर को उन्होंने एक्शन हीरो की छवि दी है। मासूम, रोमांटिक और भोले दिखने वाले शाहिद कपूर को खूंटी दाढ़ी देकर रफ-टफ बनाया गया है। एक्शन के साथ डांस का भड़कदार तड़का है। शाहिद कपूर निश्चित ही सिद्ध डांसर हैं। श्यामक डावर के स्कूल के डांसर शाहिद कपूर को प्रभु देवा ने अपनी स्टाइल में मरोड़ दिया है। एक्शन और डांस दोनों में शाहिद कपूर की जी तोड़ मेहनत दिखती है। ऐसी फिल्मों के प्रशंसक दर्शकों को 'आर .. राजकुमार' मनोरंजक लग सकती है, लेकिन लोकप्रियता की संभावना के बावजूद इस फिल्म की सराहना नहीं की जा सकती। फि

फिल्‍म समीक्षा : क्‍लब 60

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  संजय त्रिपाठी की 'क्लब 60' मुख्य किरदार तारीक के दृष्टिकोण से चलती है। तारीक और सायरा (फारुख शेख और सारिका) के जीवन में एक बड़ा वैक्यूम आ गया है। समय के साथ सायरा संभल जाती हैं, लेकिन तारीक लंबे समय तक अपने गम से उबर नहीं पाते। ऐसे में उनकी मुलाकात मस्तमौला मनुभाई से हो जाती है। 'मान न मान, मैं तेरा मेहमान' मुहावरे को चरितार्थ करते मनुभाई की आत्मीयता से उन्हें पहले खीझ होती है। तारीक और सायरा सी एकांत जिंदगी में न केवल मनुभाई प्रवेश करते हैं, बल्कि उन्हें अपने साथ 'क्लब 60' तक ले जाते हैं। 'क्लब 60' साठ की उम्र पार कर चुके नागरिकों का एक क्लब है, जहां वे अपने खाली समय को खेल और मेलजोल में बिताते हैं। मनसुख भाई के साथ हम 'क्लब 60' के सदस्यों से मिलते हैं। इन सदस्यों में मनसुखानी, सिन्हा, ढिल्लन, और जफर भी हैं। इनकी दोस्ती की धुरी है मनसुख भाई। उनके पहुंचते ही क्लब में रवानी आ जाती है। धीरे-धीरे पता चलता है कि सभी की जिंदगी में गम हैं। वे अपने-अपने गमों को धकेल कर खुश रहने की कोशिश करते हैं। सबकी अपनी आदतें हैं

रणदीप हुडा : उलझे किरदारों का एक्‍टर

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-अजय ब्रह्मात्मज     रणदीप हुडा इम्तियाज अली की ‘हाईवे’ में रफ गूजर युवक महावीर भाटी की भूमिका निभा रहे हैं। ‘हाईवे’ रोड जर्नी फिल्म है। उनके साथ आलिया भट्ट हैं। इस फिल्म की शुटिंग 6 राज्यों में अनछुए लोकेशन पर हुई है।     दिल्ली से हमारी यात्रा शुरू हुई थी और दिल्ली में ही खत्म हुई। इस बीच हमने छह राज्यों को पार किया। अपनी जिंदगी में मैंने देश का इतना हिस्सा पहले नहीं देखा था। हम ऐसी सूनी और एकांत जगहों पर गए हैं,जहां कभी पर्यटक नहीं जाते। फिल्म में हमारा उद्देश्य लोगों से दूर रहने का है। इम्तियाज ने इसी उद्देश्य के लिए हमें इतना भ्रमण करवाया है। लोकेशन पर पहुंचने में ही काफी समय निकल जाते थे। शूटिंग कुछ ही दृश्यों की हो पाती थी।     यह पिक्चर जर्नी की है। इसमें किरदारों की बाहरी (फिजिकल) जर्नी के साथ-साथ भीतरी (इटरनल) जर्नी है। फिल्म के शुरू से अंत तक का सफर जमीन पर थोड़ा कम है। अंदरुनी यात्रा बहुत लंबी है। इस फिल्म में मैं दिल्ली के आस-पास का गूजर हूं, जो मेरे अन्य किरदारों के तरह ही परेशान हाल है। शायद निर्देशकों को लगता है कि मैं उलझे हुए किरदारों की आंतरिक कशमकश को अच्छी तरह

दरअसल : थिएटर शिष्टाचार

-अजय ब्रह्मात्मज     भारत में सिनेमा के 100 साल हो गए। तमाम सेमिनारों, बहस-मुबाहिसों और चर्चाओं में भारतीय सिनेमा के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया। थिएटर पर चर्चा नहीं हुई। फिल्मों के रसास्वादन में थिएटर की बड़ी भूमिका होती है। भारत में रसास्वादन की प्रक्रिया में थिएटर के योगदान और अवदान पर कभी गंभीर विमर्श नहीं हुआ। इधर मल्टीप्लेक्स आने के बाद इस पर तो चर्चा होती है कि इसके प्रभाव में सिनेमा बदल रहा है, लेकिन कभी किसी ने थिएटर शिष्टाचार पर कुछ नहीं लिखा। विदेशों में अवश्य शिष्टाचार का अभियान चला है। हाल ही में प्रख्यात पॉप सिंगर मडोना एक फिल्म शो में सिर्फ टेक्स्ट मैसेज भेज रही थीं। साथ के दर्शक की आपत्ति के बावजूद उन्होंने ऐसा किया तो उस थिएटर चेन के मालिक ने अपने सभी थिएटरों में उनके माफी मांगने तक प्रवेश निषिद्ध कर दिया। मडोना ने माफी मांगी या नहीं? या ऐसे फैसले से वह अप्रभावित रहीं? इसकी जानकारी तो नहीं मिली, लेकिन यह खबर स्वयं ही रोचक, महत्वपूर्ण और अनुकरणीय है।     इधर सोशल मीडिया नेटवर्क पर अच्छी फिल्में देख कर लौटे कई दर्शकों ने पड़ोसी दर्शकों के बेजा व्यवहार का उल्लेख कि

बहुपयोगी संवाद माध्यम है सोशल मीडिया

-अजय ब्रह्मात्मज संचार माध्यमों के विकास , प्रसार और बढ़ती भूमिकाओं को स्वीकार और अंगीकार करने के बावजूद सात साल पहले तक किसी ने कल्पना नहीं की थी कि सोशल मीडिया का अंतर्जाल हमारी सोच , समझ , दृष्टिकोण , विचार और राजनीति को इस कदर प्रभावित करेगा। सोशल मीडिया नेटवर्क ने सभी यूजर्स को अभिव्यक्ति का सशक्त उपकरण दे दिया है। इसकी विशेषता पारस्परिकता है। इसमें स्वतंत्रता अंतर्निहित है। अगर आप मोबाइल और कंप्यूटर के जरिए इंटरनेट से जुड़े हुए हैं तो अपनी सुविधा और रुचि से सारे संसार से संपर्क बनाए रख सकते हैं अर्द्धशिक्षित भारतीय समाज में सोशल मीडिया की महत्व और भूमिका के संबंध में फिलहाल सर्व सहमति नहीं है। कभी यह अत्यंत उपयोगी और आवश्यक माध्यम प्रतीत होता है तो कभी हर तरफ शोर मचने लगता है कि इस से समाज का नुकसान हो रहा है। हर नए माध्यम और आविष्कार की तरह सोशल मीडिया अभी परीक्षण और परिणाम के दौर से ही गुजर रहा है। अंतरराष्ट्रीय मापदंड और आंकड़ों की तुलना में अभी भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या आबादी के अनुपात में कम है , लेकिन सिर्फ संख्या की बात करें तो यह कई देशों की जनसंख्या से

links for 29 scripts

Update: Award season screenplay downloads (29 scripts!) / Scott / 10 days ago It’s that time of year again when studios make available PDFs of movie scripts for award season. As in years past, we will be tracking them and posting links as they become available. Current total of scripts for download: 29 . Newly added scripts from Warner Bros. [42, Gravity, The Great Gatsby, Prisoners] in bold below: 12 Years a Slave (Fox Searchlight) 42 (Warner Bros.) The Armstrong Lie (Sony Classics – documentary transcript) Before Midnight (Sony Classics) The Bling Ring (A24) The Croods (DreamWorks Animation) Despicable Me 2 (Universal – Click on “Screenplay”) Enough Said (Fox Searchlight) The Fifth Estate (IMG) Frozen (Disney) Fruitvale Station (TWC) Gravity (Warner Bros.) The Great Gatsby (Warner Bros.) The Invisible Woman (Sony Classics) Kill Your Darlings (Sony Classics) Lee Daniels’ The Butler (TWC) Lone Survivor (Univer

बलराज साहनी और हजारी प्रसाद द्विवेदी के पत्राचार

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तिरछी स्‍पेलिंग से संरक्षित  बलराज साहनी और पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी प्रस्तुति : उदयशंकर हिन्दी साहित्य का इतिहास अगर 150 साल पुराना है, तो सिनेमा का इतिहास भी 100 साल पुराना है। हिन्दी साहित्य की प्रस्तावना में इस बात पर ज़ोर रहा कि वह सामाजिक कर्तव्यबोध को अंगीकार करे, और उस समय का कर्तव्यबोध राष्ट्रवादी आंदोलन के स्वर देना था। हिन्दी सिनेमा भी कमोवेश इसी कर्र्तव्यबोध से परिचालित हुआ, और यही कर्तव्यबोध सिनेमा और साहित्य में आवाजाही की तात्कालिक वजह थी। दादा साहेब फाल्के खुद स्वदेशी आंदोलन के प्रभाव में थे। बलराज साहनी के पारिवारिक संस्कार आर्यसमाजी रहे हैं और हिन्दू धर्म-व्यवस्था के भीतर आर्यसमाजी खुद को ‘पहला आधुनिक’ मानता है। 1 मई 1913 को  जन्में बलराज साहनी का जन्मशती वर्ष पिछले महीनों ही समाप्त हुआ है और यह संयोग ही है कि भारतीय सिनेमा का जन्मशती वर्ष 3 मई 2013 को समाप्त हुआ। इस संयोग के बड़े निहितार्थ हैं। कुछ तो बात थी, कि फिल्मों से ‘व्यवसायिक जुड़ाव’ को प्रेमचंद से लेकर हजारी प्रसाद जी तक ‘उज्जवल पेशा’ नहीं मानते थे। फिल्मों से बलराज साहनी ज

पीरियड फिल्‍म : डॉ.चंद्रप्रकाश द्विवेदी

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डॉ.चंद्रप्रकाश द्विवेदी का एक महत्‍वपूर्ण आलेख। उनका यह आलेख हिंदी फिल्‍मों में पीरियड फिल्‍मों की पड़ताल करता है। अपने धारावाहिक और फिल्‍म से उन्‍होंने साबित किया है कि पीरियड को पर्दे पर मूर्त्‍त रूप देने मेंवे माहिर हैं। इतिहास,संस्‍कृति और कला परंपरा की समुचित समझ के कारण वे समकालीन पीढ़ी के विशेष निर्देशक हैं। यह आलेख भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित भारतीय सिनेमा का सफरनामा में संकलित है।  -डॉ.चंद्रप्रकाश द्विेवेदी   भारतीय सिनेमा ने अपने इतिहास का प्रारंभ राजा हरिश्चन्द्र से किया था. कारण था दादा साहेब फालके का भारत के मिथकीय, पौराणिक और ऐतिहासिक आख्यानों में विश्वास.साथ ही यह विश्वास की भारत को पौराणिक आख्यानों से प्रेरणा मिल सकती है। उन्होंने अपनी और भारत की पहली फिल्म के लिए पौराणिक आख्यान चुना और उसके पश्चात भी अपनी रचना की यात्रा में भी उन्होंने कई फिल्मों के लिए पौराणिक एवं ऐतिहासिक आख्यानों को अपने चल चित्र की कथा के केंद्र में रखा। कभी कभी मैं सोचता हूँ कि क्या भारतीय फिल्मों के पितामह दादा साहेब फाल्के क