गाड़ी चल पड़ी - पंकज त्रिपाठी
-अजय ब्रह्मात्मज गैंग्स ऑफ वासेपुर के बाद पंकज त्रिपाठी पहचान में आए। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी जगह और साख बना ली है। सीमित दृश्यों की छोटी भूमिकाओं से सीमित बजट की खास फिल्मों में अपनी मौजूदगी से वे दर्शकों को प्रभावित कर रहे हैं। उनकी कुछ फिल्में रिलीज के लिए तैयार हैं और कुछ की शूटिंग चल रही है। झंकार के पाठकों के लिए वे अजय ब्रह्मात्मज के साथ शेयर कर रहे हैं अपना सफर और अनुभव... 0 सिनेमा में आने का इरादा बिल्कुल नहीं था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह संभव होगा। सिनेमा के ग्लैमर का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं रहा। गांव में हमारे सिनेमा घऱ भी नहीं था। हम तो फिल्मों के बारे में जानते ही नहीं थे। हमारी शुरुआत रंगमंच से हुई। हमने इसे रोजगार बनाने का सोच लिया। रंगमंच की ट्रेनिंग के लिए हम एनएसडी पहुंच गए। एनएसडी के बाद मैंने सोचा नहीं था कि मुंबई जाऊंगा। हिंदी रंगमंच की जो दुर्दशा है कि रंगमंच पर अभिनेता गुजारा नहीं कर सकता। इसी वजह से मैं हिंदी सिनेमा की तरफ बढ़ा। एनएसडी से लौट कर मैं पटना गया। वहां पर मैंने सइया भए कोतवाल प्ले किया। वहां के पांच महीनों में मुझे अनुभव ह