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सिनेमालोक : अब फैसलों का इंतजार

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सिनेमालोक अब फैसलों का इंतजार  -अजय ब्रह्मात्मज   21 वी सदी का तीसरा दशक आरंभ हो चुका है. दो दशक बीत गए. इन दो दशकों में हिंदी फिल्मों ने कुछ नए संकेत दिए. साथ में यह भी जाहिर किया कि दिख रहे बदलावों के स्थाई होने में वक्त लगेगा. मसलन ऐसा लगता रहा कि अब लोकप्रिय खानत्रयी(आमिर, सलमान और शाह रुख) का दबदबा खत्म हुआ. नए सितारे उभरे और चमके लेकिन दो दशकों के इस कयास के बावजूद हम देख रहे हैं कि लोकप्रियता का उनका रुतबा कायम है. उनकी फ्लॉप फिल्में भी 100 करोड़ से अधिक का कारोबार करती हैं. पिछले साल को ही नजर में रखें तो आमिर खान और शाह रुख खान की कोई फिल्म नहीं आई. सलमान खान की दो फिल्में आईं, लेकिन उन फिल्मों का कारोबार अपेक्षा के मुताबिक नहीं हुआ. उनकी आखिरी फिल्म ‘दबंग 3’ का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. बावजूद इसके तीनों खान खबरों में छाए रहते हैं. उनकी फिल्मों का इंतजार रहता है और निर्माता और प्रोडक्शन हाउस उनकी फिल्मों में निवेश करने के लिए तैयार रहते हैं, हां, वे खुद संभल और ठहर गए हैं. उनका संभलना और ठहरना ही संकेत दे रहा है कि कुछ नया हो सकता है. गौर करें तो इसमें नएपन के प्

संडे नवजीवन : हिंदी फिल्मों का ‘नया हिंदुस्तान’

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संडे नवजीवन हिंदी फिल्मों का ‘नया हिंदुस्तान’ -अजय ब्रह्मात्मज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘न्यू इंडिया’ शब्द बार-बार दोहराते हैं. हिंदी फिल्मों में इसे ‘नया हिंदुस्तान’ कहा जाता है. इन दिनों हिंदी फिल्मों के संवादों में इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है. गणतंत्र दिवस के मौके पर हिंदी फिल्मों में चित्रित इस नए हिंदुस्तान की झलक,भावना, आकांक्षा और समस्याओं को देखना रोचक होगा. यहां हम सिर्फ 2019 के जनवरी से अभी तक प्रदर्शित हिंदी फिल्मों के संदर्भ में इसकी चर्चा करेंगे. सभी जानते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है. सिनेमा के अविष्कार के बाद हम देख रहे हैं कि सिनेमा भी समाज का दर्पण हो गया है. साहित्य और सिनेमा में एक फर्क आ गया है कि तकनीकी सुविधाओं के बाद इस दर्पण में समाज का प्रतिबिंब वास्तविक से छोटा-बड़ा, आड़ा-टेढ़ा और कई बार धुंधला भी होता है. बारीक नजर से ठहराव के साथ देखें तो हम सभी प्रतिबिंबित आकृतियों में मूल तक पहुंच सकते हैं. पिछले साल के अनेक लेखों में मैंने ‘राष्ट्रवाद के नवाचार’ की बात की थी. फिल्मों की समीक्षा और प्रवृत्ति के संदर्भ में इस ‘नवाचार’ की व

सिनेमालोक : पोस्टर पर नहीं होती हिंदी

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सिनेमालोक पोस्टर पर नहीं होती हिंदी - अजय ब्रह्मात्मज आजकल किसी भी फिल्म की घोषणा के साथ उसका फर्स्ट लुक आता है. फिल्म के निर्माता प्रोडक्शन हाउस और कलाकार फिल्म का फर्स्ट लुक सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं. मीडिया(अखबार) में विज्ञापन छपते हैं.आपने शायद गौर नहीं किया होगा कि हिंदी फिल्मों के अधिकांश फर्स्ट लुक के पोस्टर पर फिल्मों के नाम रोमन में लिखे होते हैं. यह एक किस्म की लापरवाही है , जो दशकों से चली आ रही है. हिंदी समाज और हिंदी दर्शक भी बेपरवाह रहते हैं. उन्हें ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. याद करें या इंटरनेट सर्च करें तो पुरानी फिल्मों के पोस्टर पर फिल्मों के नाम हिंदी में मिल जाएंगे. हिंदी फिल्मों की शुरुआत से लेकर आजादी के बाद के कुछ दशकों तक यह सिलसिला चलता रहा. तब पोस्टर पर हिंदी फिल्मों के नाम हिंदी , उर्दू और रोमन में लिखे जाते थे. हिंदी का फोंट सबसे बड़ा होता था. साथ में छोटे फोंट में रोमन और उर्दू में भी नाम लिखे रहते थे. फिल्म में शीर्षक , कलाकार और तकनीशियनों की सूची भी हिंदी में लिखी जाती थी. धीरे धीरे अंग्रेजी के प्रमुखता बड़ी और फिर हिंदी लगभग गायब हो गई. कैस

सिनेमालोक : छपाक बनाम तान्हाजी

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सिनेमालोक छपाक बनाम तान्हाजी -अजय ब्रह्मात्मज एक ही दिन रिलीज हुई फिल्मों की तुलना पहले भी होती रही है. खासकर पहले उनकी टकराहट के असर की चर्चा होती है और उसके बाद बताया जाता है कि किसे कितना नुकसान हुआ? उनके कलेक्शन के आधार पर ये चर्चाएं और तुलनाएं होती है. देश में सिनेमाघरों और स्क्रीन की सीमित संख्या की वजह से साल के अनेक शुक्रवारों को ऐसी हलचल और टकराहट हो जाती है. पिछले हफ्ते 10 जनवरी को रिलीज हुई ‘छपाक’ और ‘तान्हाजी’ को लेकर भी तुलना चल रही है. अनेक स्वयंभू विश्लेषक,पंडित और टीकाकार निकल आए हैं. वे अपने हिसाब से समझा रहे हैं. व्याख्या कर रहे हैं. इस बार की तुलना में सिर्फ कलेक्शन के प्रमुख मुद्दा नहीं है. कुछ और भी बातें हो रही है. दो धड़े बन गए हैं. एक धड़ा ‘छपाक’ के विरोध में सक्रिय है और दूसरा धड़ा ‘तान्हाजी’ के समर्थन में है. विरोध का धड़ा नए किस्म का है. इस धड़े ने तय कर लिया है कि उन्हें न सिर्फ ‘छपाक’ का बहिष्कार करना है, बल्कि तमाम तर्क जुटा कर उसे फ्लॉप भी साबित करना है. यह धड़ा वास्तव में दीपिका पादुकोण को सबक सिखाना चाहता है और इसी बहाने तमाम फिल्म कलाकारों

सिनेमालोक : भाए न रंग सांवला

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सिनेमालोक भाए न रंग सांवला -अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सांवले रंग के प्रति गहरी अरुचि और एलर्जी   है .शुरू से ही फिल्म के हीरो-हीरोइन और अन्य चरित्रों के लिए गौर वर्ण के कलाकारों की मांग रही है. हिंदी सिनेमा के विकास के साथ राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित आकृतियां और रूपाकार ही फिल्मों के किरदारों के आदर्श बने. राजा रवि वर्मा ने जब देवी-देवताओं के काल्पनिक पोर्ट्रेट तैयार तो उनके रंग, कद, काठी और एपीयरेंस पर खास ध्यान दिया. गौर वर्ण, सुतवां नाक,उन्नत ललाट,नीली-भूरी आंखें, घनी-टेढ़ी भौहें में और सीधे लहराते बाल... बाद में फिल्मों में भी उन्हें अपनाया गया. धीरे-धीरे अघोषित रुढ़ि बन गयी. खास कर हीरो-हीरोइन के लिए गौर वर्ण अनिवार्य हो गया. हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय कलाकारों में शायद ही कोई श्याम वर्ण का मिले. दो-चार अपवाद हो सकते हैं. मनोरंजन की दुनिया में गौर वर्ण के दबाव का सबसे बड़ा उदाहरण माइकल जैक्सन हैं. लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचने के बाद उन्हें गोरे होने की धुन चढ़ी. अमेरिका में ‘अश्वेत’ होने का खास राजनीतिक निहितार्थ है/ तमाम मुश्किलों और अवरोधों को पार क

सिनेमालोक : विदा 2019

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सिनेमालोक विदा 2019 अजय ब्रह्मात्मज 2019 का आखिरी दिन है आज. पिछले हफ्ते रिलीज हुई राज मेहता की फिल्म ‘गुड न्यूज़’ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को कामयाबी का शुभ समाचार दे गई. अक्षय कुमार. करीना कपूर खान. दिलजीत दोसांझ और कियारा आडवाणी की यह फिल्म पहले वीकेंड में 60 करोड़ से अधिक का कलेक्शन कर चुकी है. जाहिर सी बात है कि अक्षय कुमार की फिल्म 100 करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगी.’केसरी’, ‘मिशन मंगल’. ‘हाउसफुल 4’ और ‘गुड न्यूज़’ की भरपूर कमाई से अक्षय कुमार सफल सितारों की अगली कतार में सबसे आगे खड़े हैं. उन्हें रितिक रोशन की वाजिब मुकाबला दे रहे हैं. ‘सुपर 30’ और ‘वॉर’ की कामयाबी ने उन्हें अगली कतार में ला दिया है. कुछ और सितारे भी जगमगाते रहे कुछ की चमक बढ़ी और कुछ की धीमी पड़ी. बकामयाबी के दूसरे छोर पर आयुष्मान खुराना भी तीन फिल्मों की सफलता के साथ मुस्कुरा रहे हैं. इन दोनों छोरों के बीच कार्तिक आर्यन हैं, जो धीमे से अपनी धमक बढ़ाने में आगे रहे. कामयाब रणवीर सिंह भी रहे. अभिनेत्रियों की बात करें तो तापसी पन्नू और भूमि पेडणेकर के लिए 2019 विविधता लेकर आया. दोनों अभिनेत्रियों ने बढ़त हास

सिनेमालोक : फाल्के पुरस्कार और अमिताभ बच्चन

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सिनेमालोक फाल्के पुरस्कार और अमिताभ बच्चन -अजय ब्रह्मात्मज कल दिल्ली में 2018 के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार वितरित किए गए. विभिन्न श्रेणियों में देश की सभी भाषाओं की प्रतिभाओं को सम्मानित करने का यह समारोह पुरस्कार प्रतिष्ठा और प्रभाव के लिहाज से देश में सर्वश्रेष्ठ है. इन दिनों अनेक मीडिया घरानों और संस्थानों द्वारा हिंदी समेत तमाम भाषाओं में फिल्म पुरस्कार दिए जा रहे हैं. इन पुरस्कारों की भीड़ में यह अकेला अखिल भारतीय फिल्म पुरस्कार है, जिसमें देश की सभी भाषाओं के बीच से प्रतिभाएं चुनी जाती हैं. निश्चित ही इस पुरस्कार का विशेष महत्व है. फीचरफिल्म, गैरफीचर फिल्म और फिल्म लेखन की तीन मुख्य श्रेणियों में ये पुरस्कार दिए जाते हैं. राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के साथ ही दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भी दिया जाता है. यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा के विकास और संवर्धन में अप्रतिम योगदान के लिए किसी एक फिल्मी व्यक्तित्व को सौंपा जाता है. इस साल यह पुरस्कार अमिताभ बच्चन को दिया गया है पुरस्कार की पूर्व संध्या को अमिताभ बच्चन ने ट्वीट कर अपने प्रशंसकों को सूचना दी... वह बुखार में हैं. उन्हें यात्

सिनेमालोक : कार्तिक आर्यन की बढ़ी लोकप्रियता

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सिनेमालोक कार्तिक आर्यन की बढ़ी लोकप्रियता -अजय ब्रह्मात्मज मुदस्सर अजीज की ‘पति पत्नी और वो’ अभी तक सिनेमाघरों में चल रही है। इस फिल्म की कामयाबी से कार्तिक आर्यन की लोकप्रियता में बढ़ोतरी हुई है। ट्रेड पंडितों की राय में कार्तिक आर्यन भरोसेमंद युवा स्टार के तौर पर उभरे हैं। उनकी लोकप्रियता नई पीढ़ी के दूसरे अभिनेताओं से अलग और विशेष है। पिछले दो-तीन सालों में कार्तिक आर्यन, राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना और विकी कौशल ने अपनी फिल्मों से दमदार दस्तक दी है। इन चारों में कार्तिक आर्यन को शेष तीन की तरह विषय प्रधान फिल्में नहीं मिलीं। बतौर एक्टर उन्हें बड़ी सराहना भी नहीं मिली, बल्कि कुछ समीक्षकों की राय में कार्तिक आर्यन को अभी समर्थ अभिनेता की पहचान बनाने में थोड़ा वक्त और लगेगा। समीक्षकों की उपेक्षा और आलोचना के बीच कार्तिक आर्यन ने दर्शकों के बीच लोकप्रियता हासिल की। फिल्म दर फिल्म उनकी स्थिति मजबूत होती गई है। इम्तियाज अली की उनकी फिल्म पूरी हो चुकी है, जो अगले साल फरवरी में रिलीज होगी। कार्तिक आर्यन 2011 शुरुआत की। ‘प्यार का पंचनामा’ उनकी पहली फिल्म थी। इस फिल्म के बाद उ

सिनेमालोक : हिंदी फिल्मों में पंजाबी गाने

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सिनेमालोक हिंदी फिल्मों में पंजाबी गाने -अजय ब्रह्मात्मज फिल्मों की कहानियां हिंदी प्रदेशों में जा रही हैं. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड और बिहार के साथ ही उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की कहानियां हिंदी फिल्मों में आने लगी हैं. हिंदी फिल्मों का यह शिफ्ट नया और सराहनीय है. लंबे समय तक हिंदी फिल्मों ने पंजाब की सैर की. पंजाब आज भी हिंदी फिल्मों में आ रहा है, लेकिन अब वह यश चोपड़ा वाला पंजाब नहीं रह गया है. युवा फिल्मकार किसी फिल्म में उनसे आगे तो किसी फिल्म में उनसे पीछे दिखाई पड़ते हैं. सच्ची और सामाजिक कहानियां भी बीच-बीच में आ जाती हैं. गौर करें तो हिंदी फिल्मों में पंजाब का प्रभाव रच-बस गया है. फिल्म कलाकार पंजाब से आते हैं. फिल्मों के किरदारों के सरनेम पंजाबी होते हैं. पंजाबी रीति-रिवाज और संगीत भी हिंदी फिल्मों में पसर चुका है. किसी समय यह नवीनता बड़ा आकर्षण थी. अब इसकी अधिकता विकर्षण पैदा कर रही है. हिंदी प्रदेशों की कहानियों में जब अचानक पंजाबी बोल के गाने सुनाई पड़ते हैं तो खटका लगता है. कई फिल्मों में खांटी पटना, लखनऊ, कानपुर, भोपाल और इलाहाबाद के किरदार पंजाबी

सिनेमालोक : सेंसर नहीं होगी वेब सीरीज

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                                                                                                            सिनेमालोक सेंसर नहीं होगी वेब सीरीज -अजय ब्रह्मात्मज ऑनलाइन स्ट्रीमिंग की तकनीक के प्रसार और ओटीटी प्लेटफॉर्म के पॉपुलर होने के साथ नैतिकता, राष्ट्रीयता और शुद्धता के पहरुए जाग गए हैं. लगातार सरकार पर दबाव डाला जा रहा है कि वेब सीरीज और दूसरे मनोरंजक स्ट्रीमिंग कंटेंट की निगरानी की जाए. उनका आग्रह है कि वेब सीरीज में गाली-गलौज और अश्लीलता बढ़ती जा रही है. राष्ट्रीय हितों का ख्याल नहीं रखा जा रहा है. दक्षिणपंथी सोच के स्तंभकार और लेखक-पत्रकार चाहते हैं कि वेब सीरीज को भी सेंसरशिप के घेरे में लाया जाए. उनकी आपत्ति है कि कई बार इन वेब सीरीज में राष्ट्र विरोधी बातें होती है. उनकी बातों का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि वे सत्ताधारी पार्टी की सोच की विरोधी टिप्पणी और विचार पर पाबंदी चाहते हैं. वे नहीं चाहते कि सरकार विरोधी बातों पर आधारित संवाद हो. मामला कोर्ट में भी गया है. कोर्ट ने भी पाबंदी या सेंसरशिप से   सहमति नहीं दिखाई. पिछले दिनों चल रहे विचार-विमर्श में इस मुद्दे