सांवरिया : रंग और रोमांस वास्तविक नहीं


-अजय ब्रह्मात्मज
खयालों की दुनिया और ख्वाबों के शहर में राज, सकीना, गुलाब और ईमान की कहानी में लॉजिक खोजना बेमानी है। इस सपनीली दुनिया का परिवेश भव्य और काल्पनिक है। नहर है, नदी है, पुल है, अंग्रेजों के जमाने के बार हैं और आज की अंग्रेजी मिश्रित भाषा है। सांवरिया का रंग और रोमांस वास्तविक नहीं है और यही इस फिल्म की खासियत है।
संजय लीला भंसाली के काल्पनिक शहर में राज (रणबीर कपूर) गायक है। उसे नयी नौकरी मिली है। बार में ही उसकी मुलाकात गुलाब ( रानी मुखर्जी) से होती है। दोनों के बीच दोस्ती होती है। दोस्तोवस्की की कहानी ह्वाइट नाइट्स पर आधारित इस फिल्म में दो प्रेमियों की दास्तान है। सिर्फ चार रातों की इस कहानी में संजय लीला भंसाली ने ऐसा समां बांधा है कि हम कभी राज के जोश तो कभी सकीना (सोनम कपूर) की शर्म के साथ हो लेते हैं। संजय लीला भंसाली ने एक स्वप्न संसार का सृजन किया है, जिसमें दुनियावी रंग नहीं के बराबर हैं।
रणबीर कपूर और सोनम कपूर के शो केस के रूप में बनी इस फिल्म में संजय लीला भंसाली ने खयाल रखा है कि हिंदी फिल्मों में नायक-नायिका के लिए जरूरी और प्रचलित सभी भावों का प्रदर्शन किया जा सके। साफ पता चलता है कि कॉमेडी, इमोशन, एक्शन, ड्रामा, सैड सिचुएशन, रोमांस, नाच-गाना और आक्रामक प्रेम के दृश्य तैयार किए गए हैं। फिल्म बड़ी बारीकी से राज कपूर और नरगिस की फिल्मों की याद दिलाती है। खासकर आक्रामक प्रेम और बारिश एवं छतरी के दृश्यों में हम आवारा और बरसात की झलक पाते हैं। रणबीर कपूर कभी ऋषि कपूर तो कभी राज कपूर की भावछवि चेहरे पर ले आते हैं। चूंकि ऋषि कपूर और राज कपूर की छवियां हमारे मानस में प्रचुरता से अंकित है और रणबीर कपूर उसी परिवार से आए हैं, इसलिए कई बार लगता है कि रणबीर कपूर उनकी नकल कर रहे हैं। इसके बावजूद कहा जा सकता है कि हिंदी फिल्मों को एक नया सितारा मिल गया है। इसी प्रकार सोनम कपूर में हम मीना कुमारी, वहीदा रहमान और रेखा की झलक पाते हैं।
फिल्म में सकीना का खुद को हम कहना भी उसे नॉस्टेलजिक अतीत से जोड़ देता है। सोनम में संभावनाएं हैं और उनके चेहरे में विभिन्न किरदारों को निभा सकने की खूबी है। सांवरिया में रानी मुखर्जी को कुछ नाटकीय और भावपूर्ण दृश्य मिले हैं। सलमान खान तो अपने खास रंग-ढंग में ही हैं। बेगम पारा और जोहरा सहगल की मौजूदगी सांवरिया को नया आयाम देती है। उनके बगैर यह फिल्म अधूरी रहती। संजय लीला भंसाली की सपनीली दुनिया यथार्थ से कोसों दूर है। अगर आप ऐसी दुनिया में रमना चाहते हैं तो सांवरिया देखना न भूलें।

Comments

bhuvnesh sharma said…
चलिए देख लेते हैं इसे भी.......
Pratik Pandey said…
अब ट्राई तो करनी ही पड़ेगी :)
संजय लीला भंसाली के आत्म-सम्मोहन का चरम है सांवरिया और उस आत्म-सम्मोहन में वे यह आशा करते हैं कि दर्शक कुछ भी देख लेंगे।
प्रेम कहानी में प्रेम भी नहीं मिलता और कहानी भी नहीं।
हाँ, बीच में एकाध दृश्य बहुत कलात्मक दिख जाता है।

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