फिल्‍म समीक्षा : बदमाश कंपनी

-अजय ब्रह्मात्‍मज

सन 1994.. मुंबई की गलियों में पले तीन लुक्खे  कुछ नया करने की सोचते हैं। उनमें से करण तेज दिमाग का लड़का है। मध्यवर्गीय परिवेश और परिवार में उसका दम घुटता है। जल्दी से अमीर बनने के लिए वह पहले विदेशों से सामान लेकर आनेवाला कुरियर ब्वॉय बनता है और फिर अपनी चालाकी से एक दांव खेलता  है।

कामयाब होने के बाद उसकी ख्वाहिशें  और मंजिलें बढ़ती हैं। अब वह अमेरिका जाने का सपना देखता  है। वहां भी  वह अपनी जालसाजी में कामयाब रहता है, लेकिन बाद में उसके इगो  और जिद से त्रस्त होकर उसके दोस्त अलग हो जाते हैं। जालसाजी के एक मामले में वह फंसता है। जेल जाता है। जेल से निकलने के बाद उसमें बड़ा बदलाव आता है। वह मेहनत से इज्जत कमाने की कोशिश करता है। इस बार सारे दोस्त मिल जाते हैं और गर्लफ्रेंड भ् ाी  बीवी के तौर पर आ जाती है।

परमीत सेठी की बदमाश कंपनी पिछली सदी के अंतिम दशक में अमीर बनने का ख्वाब  देख  रहे शहरी युवकों के फरेब को जाहिर करती है। पिछले सालों में इस विषय पर कई फिल्में आई हैं। परमीत  सेठी उसी कहानी को रोचक तरीके और नए पेंच के साथ कहते हैं। बदमाश कंपनी में शाहिद कपूर नए लुक में हैं। उनके साथ वीर दास और मेइयांग  चैंग  जैसे नए सपोर्टिग  एक्टर और रब ने बना दी जोड़ी की अनुष्का  हैं। नए चेहरों की यह फिल्म बासी विषय में भी ताजगी का एहसास देती है। क्लाइमेक्स के सीन में परमीत  सेठी लड़खड़ा गए हैं। इन दिनों ज्यादातर निर्देशकों की यह दिक्कत है कि वे अपनी कहानी समेट नहीं पाते हैं। परमीत  सेठी भी फिल्म से जगी उम्मीद को अंत तक नहीं निभा पाते हैं। फिल्म का क्लाइमेक्स उलझा हुआ है।

परमीत की यह पहली फिल्म है। उस लिहाज से उनका नैरेटिव  इंटरेस्टिंग  है। उन्होंने बेपरवाह और बेफिक्र युवकों की कहानी में इमोशन  और वैल्यूज  अच्छी तरह पिरोए हैं। बदमाश कंपनी दोस्ती और परिवार के महत्व को रेखांकित  करती है। हालांकि पिता की भूमिका  बहुत लंबी नहीं है, लेकिन उनका चरित्र आदमकद है। नायक अपने पिता के सच्चरित्र से प्रभावित  होता है और अंत में बदलता है। कहानी में चरित्रों का ऐसा समीकरण पिछली सदी के सातवें और आठवें दशक में प्रचलित था। बिगड़े और भटके  युवक और नायक फिल्म  के अंत में सही राह पर लौट आते थे। बदमाश कंपनी नए कलेवर में उसी शैली की फिल्म  है।

कमीने के बाद शाहिद कपूर की पर्सनैलिटी में बदलाव आया है। उनकी लुक और इमेज  में फर्क आया है। पहले उनके चेहरे की मासूमियत कई बार उनके अभिनय  में बाधा बन जाती थी। अब वे मैच्योर  दिखते  हैं। उन्होंने बदमाश कंपनी में सधा अभिनय किया है। केवल उत्तेजक दृश्यों में उनकी ऊंची आवाज खटकती है। वीर दास और मेइयांग  चैंग  सहज रहे हैं। उन्होंने  मुख्य किरदार को उचित सपोर्ट दिया है। नायिका की भूमिका अच्छी तरह से परिभाषित नहीं है। इस कारण अनुष्का  शर्मा अपनी प्रतिभा  की सिर्फ झलक भर  दे पाती हैं। सीमित मौजूदगी के बावजूद उनकी बातें और अदाएं याद रहती हैं।

** 1/2  ढाई स्टार

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