फिल्‍म समीक्षा : भेजा फ्राय 2

भेजा फ्राय 2: पिछली से कमजोरपिछली से कमजोर

-अजय ब्रह्मात्‍मज

सिक्वल की महामारी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में फैल चुकी है। भेजा फ्राय 2 उसी से ग्रस्त है। पिछली फिल्म की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश में नई फिल्म विफल रहती है। सीधी वजह है कि मुख्य किरदार भारत भूषण पिछली फिल्म की तरह सहयोगी किरदार को चिढ़ाने और खिझाने में कमजोर पड़ गए हैं। दोनों के बीच का निगेटिव समीकरण इतना स्ट्रांग नहीं है कि दर्शक हंसें।

पिछली फिल्म में विनय पाठक को रजत कपूर और रणवीर शौरी का सहयोग मिला था। इस बार विनय पाठक के कंधों पर अकेली जिम्मेदारी आ गई है। उन्होंने अभिनेता के तौर पर हर तरह से उसे रोचक और जीवंत बनाने की कोशिश की है लेकिन उन्हें लेखक का सपोर्ट नहीं मिल पाया है। के के मेनन को भी लेखक ठीक से गढ़ नहीं पाए है। फिल्म भी कमरे से बाहर निकल गई है,इसलिए किरदारों को अधिक मेहनत करनी पड़ी है। बीच में बर्मन दा के फैन के रूप में जिस किरदार को जोड़ा गया है, वह चिप्पी बन कर रह गया है। फिल्म में और भी कमजोरियां हैं। क्रूज के सारे सीन जबरदस्ती रचे गए लगते हैं। संक्षेप में पिछली फिल्म जितनी नैचुरल लगी थी, यह उतनी ही बनावटी लगी है।

इस फिल्म को देखते हुए हिंदी प्रेमी दुखी हो सकते हैं कि शुद्ध और धाराप्रवाह हिंदी बोलना भी मजाक का विषय बन सकता है। ईमानदार होने का मतलब जोकर होना है। आधुनिक जीवन शैली से अपरिचित व्यक्ति बौड़म होता है। बेचारा भला आदमी रचने के लिए वास्तव में हरिशंकर परसाई की समझ और संवेदनशीलता चाहिए। माफ करें नेक इरादे और कोशिश के बावजूद भेजा फ्राय 2 अपने समय और समाज से पूरी तरह कटी हुई है। ब्लैक कामेडी तो अपने समय का परिहास करे तभी अपील करती है।

* 1/2 डेढ़ स्टार

Comments

संतुलित समीक्षा।
देखी मैंने भी फ़िल्म। अकेले विनय क्या-क्या करें। मज़ा नहीं आता। हां, बीच-बीच में लगता है-हंसना चाहिए, पर ये भाव स्थायी या ज्यादा देर तक नहीं रहता।

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