होश उड़ा देगी शैतान-अनुराग कश्‍यप

-अजय ब्रह्मात्‍मज

अनुराग कश्यप की 'उड़ान' कांस तक पहुंची थी। उनकी दूसरी फिल्म 'दैट गर्ल इन येलो बूट्स' विभिन्न फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई जा चुकी है। भारत में उसकी रिलीज के पहले ही शैतान आ रही है।श्‍ैतान आज के शहरी युवकों पर केंद्रित थ्रिलर फिल्‍म है।अनुराग से बातें करना हमेशा रोचक रहता है। उनके जवाबों में हिंदी सिनेमा के भविष्‍य की झलकियां मिलती हैं।:-

'शैतान' बनाने का विचार कहां से आया?

'शैतान' के निर्देशक विजय कल्कि से मिलने मेरे घर आया करते थे। कल्कि ने मुझे इस फिल्म के बारे में बताया था।मैं भी इंटरेस्‍टेड था कि ऐसी फिल्‍म बननी चाहिए। फिर एक दिन पता चला कि निर्देशक विजय नांबियार के प्रोड्यूसर ने हाथ खड़े कर दिए। मुझे फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत अच्छी लगी थी, इसलिए मैं पैसे लगाने को तैयार हो गया। मैंने विजय को पहले ही बता दिया था कि मेरी फिल्म बड़े पैमाने की नहीं होगी। मैं बिग बजट फिल्म बनाने की स्थिति में नहीं हूं।

आपके इर्द-गिर्द ढेर सारे युवा फिल्मकार दिखाई पड़ते हैं। क्या सभी को ऐसे ही मौके देंगे?

उनसे मुझे एनर्जी मिलती है। उनकी फिल्में देख कर और उनकी स्क्रिप्ट पढ़ कर मैं नई चीजें सीखता हूं। मेरी कोशिश रहती है कि युवा टैलेंट को सही मौके मिलें। अफसोस है कि इंडस्ट्री उन्हें समय पर तवज्जो नहीं देती। मेरी अपनी सीमाएं हैं। अगर मेरे पास पैसे हों तो मैं सभी की फिल्में प्रोड्यूस कर दूं। वैसे अब सभी बड़े बैनर यूथ फिल्में प्रोड्यूस कर रहे हैं।यशरा फिल्‍म्‍स को भी सूथ फिल्‍मों के प्रोडक्‍शन में आना पड़ा। यह अलग बात है कि यूथ की उनकी समझ कैसी है।

क्या वजह है कि आप को डार्क या इटेंस थ्रिलर ही पसंद हैं?

हमारे आसपास कितना अंधेरा है। हम इस अंधेरे से मुंह चुराते हैं। हमारा मेनस्ट्रीम सिनेमा सपने और आकांक्षाओं के दम पर चलता है। उससे मुझे कोई गुरेज नहीं है। मैं अपने ढंग के सिनेमा के लिए थोड़ी सी जगह चाहता हूं। वैसे आप जिसे डार्क और इंटेंस कह रहे हैं, उन फिल्मों को भी विदेशी क्रिटिक हल्की-फुल्की फिल्म कहते हैं।आप बाहर की फिल्‍में देखेंगे तो पता चलेगा कि सिनेमा में क्‍या-क्‍या हो रहा है। मैं ऐसी फिल्में पसंद करता हूं, क्योंकि इनमें सच नुकीला और धारदार होता है। ट्रेडिशनल दर्शकों को यह सच चुभता है तो मैं क्या करूं?

आपने अभी यूपी, बिहार और झारखंड में एक फिल्म की शूटिंग की?

एक नहीं, दो फिल्मों की शूटिंग की। हमारी फिल्मों से देश गायब हो गया है। मैं 'शैतान' में शहरी युवकों को दिखा रहा हूं, तो मेरी 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में आप धुर देहात देखेंगे। मेरी फिल्मों के लिए विदेशी लोकेशन और चमक-दमक की जरूरत नहीं पड़ती। कहानी कहने का ढंग रोचक होना चाहिए। अच्छी कहानी को विजुअल की बैसाखी की जरूरत नहंी पड़ती।अपने यहां दिक्‍कत यह है कि निर्माता-निर्देशक कहानी से अधिक ताम'झाम पर ध्‍यान देते हैं।

अंत में शैतान के बारे में क्‍या कहेंगे?

यह फिल्‍म दर्शकों के होश उड़ा देगी।आदमी के अंदर बैडे शैतान के बारे में फिल्‍म बताती है।विजय नांबियार के नैरेशन में रोमांच है। वे बहुत ही उम्‍दा और कुशल फिल्‍मकार हैं।

Comments

खैर 'शैतान' तो कल आ ही जायेगी पर अनुराग सर मैं आपकी "दैट गर्ल इन येलो बूट्स" का कई महीनों से बेसब्री से इन्तेज़ार कर रहा हूँ | 'शागिर्द' मस्त थी | असल में अनुराग जी, आपकी कोई ऐसी फिल्म नहीं है जो मुझे नापसंद हो |
Swapnil said…
Shaitan nahi uda payi hosh | mera nahi | mere kisi bhi dost ka nahi | Anurag se nirash ho kar laute...

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