संग-संग : ठहराव देती है शादी : सलीम आरिफ-लुबना सलीम

ठहराव देती है शादी सलीम-लुबना-अजय ब्रह्मात्‍मज सलीम आरिफ और लुबना सलीम दोनों थिएटर की दुनिया में हैं। लखनऊ के सलीम ने दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय का प्रशिक्षण लेने के बाद श्याम बेनेगल और डॉ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी के साथ कॉस्टयूम और सेट डिजाइन पर काम किया। लुबना ने इप्टा के नाटकों से शुरुआत की और धारावाहिकों में भी मुख्य भूमिकाएं निभाई।

संपर्क, पहचान और रिश्ता

सलीम आरिफ: मैं श्याम बेनेगल का धारावाहिक भारत एक खोज कर रहा था तो लुबना की मम्मी मेरी को-डिजाइनर थीं। मैं इनके घर आता-जाता था। तब लुबना इप्टा के नाटक अंधे चूहे का रिहर्सल कर रही थीं। मेरे अम्मी-अब्बा से भी उनकी मुलाकात हुई।

लुबना: मम्मी के कलीग थे सलीम। वह अकेले रहते थे। अकसर पापा उन्हें खाने को रोक लेते। मुझे अजीब लगता कि पापा एक यंग लडके से इतनी बात कैसे करते हैं। सलीम के अम्मी-अब्बा आए तो तय हुआ कि दावत होनी चाहिए। यह 1989 की बात है। तब मैं सेकंड ईयर में थी। एक महीने के बाद अम्मी का खत मेरे मम्मी-पापा के पास आया कि बिटिया हमें पसंद है। मेरे घर में सब चौंक गए।

सलीम: अम्मी को लुबना व इनका परिवार काफी पसंद आया। मेरी शादी को लेकर वे सोच भी रहे थे, इसलिए उन्होंने खत लिखा।

लुबना: हर लडकी के लिए उसका पिता आदर्श होता है। मुझे लगता था कि जिस लडके से पापा इतनी बातचीत करते हैं, वह अच्छा ही होगा। जब रिश्ता आया तो मैंने गंभीरता से सोचना शुरू किया।

सलीम: हालांकि हमारे बीच औपचारिक रिश्ता था। कुछ कॉमन बातें ही होती थीं।

लुबना: हम थिएटर, ऐक्टिंग, कॉस्ट्यूम को लेकर बातें करते थे। मेरे मन में कभी यह बात नहीं आई थी कि ये मेरे पति हो जाएंगे।

सलीम: अम्मी-अब्बा के अलावा अबरार अल्वी (मेरे मामू) की बडी भूमिका रही हमें मिलाने में। मामू के कारण ज्यादा पूछताछ नहीं हुई। घर, खानदान जैसी जानकारियां मामू ने दे दीं। घर वालों को लगा कि मुंबई की लडकी है, ठीक रहेगा। लडके के काम के बारे में भी नहीं बताना पडेगा, क्योंकि मेरे काम के बारे में लुबना के माता-पिता अच्छी तरह जानते थे। इससे अम्मी-अब्बा को भी राहत मिली। एक फ्रीलांसर लडके को अच्छी लडकी मिल गई।

लुबना: अगर मुस्लिम परिवारों के लिहाज से देखें तो हमारे लिए भी अच्छी बात थी। वर्ना लोग पूछते कि लडकी थिएटर करती है? शादी के बाद भी करेगी? ऐसे कई हजार सवालों के जवाब हमें देने पडते। अच्छा हुआ कि इनकी अम्मी को मैं पसंद आ गई और सब कुछ ठीक हो गया।

सलीम: अब मुझे लगता है कि मैं शादी करने ही मुंबई आया था। अपने काम के लिहाज से तो दिल्ली मेरे लिए ज्यादा मुफीद जगह थी। दोनों परिवारों को राहत मिली।

शादी और आरंभिक दिन

लुबना: 20-21 की उम्र में शादी हो गई। जल्दी ही बडा बेटा फराज जिंदगी में आ गया।

सलीम: हम फराज को साथ लेकर काम पर जाते थे। इसके बाद छोटा बेटा हुआ। काफी मुश्किलें हुई, लेकिन धीरे-धीरे वह वक्त भी निकल गया। जिम्मेदारियां जल्दी पूरी हो गई।

लुबना: मेरी फ्रेंड्स कहती थीं कि मैं जल्दी शादी क्यों कर रही हूं? करियर का क्या होगा?

सलीम: लेकिन अब हम मजे से काम कर रहे हैं। दस सालों से पूरी तरह थिएटर में हैं।

लुबना: दोनों बच्चे पढ रहे हैं। एक हॉस्टल में है, एक हमारे साथ। अब हमें उनकी फिक्र नहीं है। जिम्मेदारियां पूरी हो गई।

सलीम: अब शादी को लेकर एटीट्यूड बदल गया है। हम लोग ओल्ड स्कूल के थे, इसलिए अभिभावकों की बात मान कर शादी कर ली। हमने पारिवारिक मूल्यों को माना।

लुबना: हम जिस परिवार, परिवेश, संस्कृति में पले-बढे, उसी हिसाब से करियर बनाया और शादी की। हमारे फैसले ठीक रहे। मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे सलीम जैसे पति मिले।

करियर और समझदारी

लुबना: अच्छी बात यह थी कि एक-दूसरे के काम के बारे में हमें जानकारी थी। शूटिंग में देर-सबेर हो जाती है, यह पता था। इस तरह एक पारस्परिक समझदारी विकसित हुई।

सलीम: हमने एक-दूसरे के काम की जरूरत को समझा, लिहाजा दिक्कत नहीं हुई।

लुबना: सलीम ने न कभी मुझसे सवाल पूछे और न मांग की। मुझ पर इनका अटूट भरोसा रहा। मैं शादी में भी आजाद रही। सलीम के कारण ही मुझे खुद को समझने में मदद मिली। आज ये मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं। शादी के बाद हमने भी कई स्तरों पर सामंजस्य बिठाया। असुरक्षा हुई, मगर डरे नहीं।

सलीम: इनके कारण मैं मनपसंद जिंदगी जी सका। इन्हें कभी कुछ समझाने की जरूरत नहीं पडी। इसलिए हमारी शादी टिकी है। हमारे करियर में अनिश्चितता व रोमांच दोनों हैं। हमने कम खर्च में घर चलाया, जरूरतें सीमित रखीं, बच्चों पर ज्यादा खर्च नहीं किया।

बीवी-शौहर का रिश्ता

लुबना: मैं अच्छी बीवी हूं। इनसे कभी सोने के कंगन नहीं मांगे। हमारे बीच कभी लडाई नहीं हुई। वैसे हमारी जिंदगी बोहेमियन रही है।

सलीम: मैं डायरेक्शन में हूं और लुबना ऐक्टिंग में। करियर को लेकर हमारे रास्ते कभी क्रॉस नहीं हुए। हमने तय किया कि टीवी या फिल्म नहीं करनी है तो नहीं किया। देर से सही, हमें सफलता मिली। हम तो मानते हैं कि हमारी तीसरी औलाद थिएटर है।

लुबना: बीवी को ऐक्टिंग करनी है, इसलिए शौहर ने ग्रुप बना लिया, ऐसी कोई बात नहीं रही। मैंने खुद को साबित किया, बाहर निकल कर काम किया, तब सलीम ने मुझे काम दिया। हम अलग-अलग व्यक्तित्व वाले हैं। मुझे पता है कि कभी-कभी इन्हें एकांत चाहिए, लिहाजा मैंने इसका ध्यान रखा।

सलीम: हमें एक-दूसरे की आदत हो गई है।

घर-परिवार और फैसले

सलीम: घर के जरूरी फैसले लुबना लेती हैं।

लुबना: सलीम ने हर कदम पर मेरा साथ दिया। शादी के बाद मेरे हाथ का बुरा खाना भी खाया। बाद में मैंने खाना बनाना सीखा। घरेलू जरूरतों के लिए मैंने इन्हें परेशान नहीं किया। सलीम हर महीने निश्चित खर्च मुझे देते हैं, उसी में घर चलाती हूं।

सलीम: कई दफा मैं कुछ न करके कंट्रीब्यूट करता हूं। लुबना अतिरिक्त खर्च नहीं मांगतीं। इस मामले में बहस नहीं है, हां घर की मरम्मत करानी पडे तो बहसें हो जाती हैं।

लुबना: शुरू में मैं थोडा अधीर थी। धीरे-धीरे हम एक राह पर चल पडे।

बच्चों को आजादी

सलीम: हमने अपने फैसले ख्ुाद लिए, इसलिए बच्चों को भी ये आजादी है।

लुबना: सलीम बेहद उदार पिता हैं।

सलीम: मेरा बस एक ही कंसर्न है कि बच्चे कभी विफल न हों। उन्हें केवल यही कहता हूं कि इतना ज्ञान अवश्य होना चाहिए कि किसी के सामने बैठने पर हीन भावना न महसूस हो।

लुबना: आजकल बच्चों को मालूम है कि उन्हें क्या चाहिए। वे जल्दी समझदार हो रहे हैं। हमने कभी उन पर दबाव नहीं डाला। मैं भाई-बहनों में सबसे बडी हूं। मुझ पर कोई पाबंदी नहीं रही। बचपन से इप्टा के नाटक करती थी। इसलिए हमने बच्चों को भी वैसे ही पाला।

मनमुटाव और सुलह

लुबना: झगडे थिएटर को ही लेकर होते हैं। कई बार तो बात इतनी बढती है कि सोचते हैं कि साथ काम नहीं करेंगे। मगर घर की सीढियां चढते हुए झगडा खत्म हो जाता है।

सलीम: काम के तनाव को घर नहीं लाते।

लुबना: कोई भी बात हो, उसे आपस में ही निपटा लेते हैं। मैं पहले ही सॉरी बोल देती हूं। सलीम से बात किए बिना मैं रह नहीं सकती।

सलीम: मैं कभी सॉरी नहीं बोलता। हालांकि यह भी नहीं कह सकता कि मैं कम गलत होता हूं। वैसे मैं मन में कोई बात नहीं रखता।

लुबना: ये झगडते नहीं, खामोशी से मुद्दे से बाहर निकल जाते हैं। ज्यादातर ये सही होते हैं। इनमें गजब का धैर्य है। यकीन करेंगे, मैं शादी के बाद कभी एक दिन के लिए भी मायके नहीं रुकी। घर, बच्चे, सलीम याद आने लगते हैं। मैं इन लोगों के बिना रह ही नहीं पाती।



Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम