रिएलिस्टिक स्पाई थ्रिलर है एजेंट विनोद

interview : shriram raghwan-अजय ब्रह्मात्‍मज

श्रीराम राघवन की तीसरी फिल्म है एजेंट विनोद। उनकी पहली फिल्म एक हसीना थी के हीरो सैफ अली खान थे। तभी से दोनों एक स्पाई थ्रिलर के लिए प्रयासरत थे। एजेंट विनोद के निर्माण में ढाई साल लग गए,लेकिन श्रीराम राघवन मानते हैं कि ऐसी फिल्मों में इतना समय लग जाना स्वाभाविक है।

एजेंट विनोद किस जोनर की फिल्म है? कुछ लोग इसे थ्रिलर कह रहे हैं तो कुछ मान रहे हैं हैं कि यह हिंदी में जेम्स बांड टाइप की फिल्म है?

यह स्पाई फिल्म है। हिंदी या किसी भी भाषा में आप स्पाई फिल्म बनाएंगे, तो लोग उसे जेम्स बांड टाइप ही कहेंगे। जेम्स बांड की फिल्मों की तरह एजेंट विनोद में भी कई लोकेशन हैं, ढेर सारे वन लाइनर हैं, रहस्यात्मक कहानी है। फिर भी हमने जेम्स बांड की कॉपी नहीं की है। बांड का प्रभाव जरूर है। उसे मैं स्पिरिट ऑफ बांड कहूंगा।

हमारे पास बांड का बजट नहीं है। जेम्स बांड की फिल्में 1000 करोड़ में बनती हैं। मैंने हिंदी फिल्मों की परंपरा से प्रभाव लिया है। आंखें, यकीन, चरस, ब्लैकमेल जैसी फिल्में आपको याद होंगी। मेरी कोशिश है कि दर्शकों को भरपूर मनोरंजन मिले। यह आज की कहानी है। रियल समय में चलती है। इसमें एक स्टाइल है। यह मेरी तीसरी फिल्म है और मुझे लगता है कि मैं मेनस्ट्रीम के ज्यादा करीब आ गया हूं। इसमें एक्शन भी है, गीत भी है, एक्टिंग भी है, डांस भी है।

जेम्स बांड तो कोल्ड वार का प्रोडक्ट था। एजेंट विनोद क्या आज के ग्लोबल टेररिज्म का प्रोडक्ट है?

इसमें टेररिज्म के तत्व हैं, लेकिन मेरा फोकस एजेंट विनोद पर है। यह ट्रेजर हंट की तरह है। फिल्म के शुरू में एक एजेंट की हत्या होती है। मरने के पहले वह एक नंबर बोलता है। उस नंबर को समझने के लिए एजेंट विनोद अपनी खोज आरंभ करता है। दर्शक एजेंट विनोद के साथ चलते हैं। उसी के नजरिए से कहानी अनफोल्ड होती है। इस खोज में दर्शकों को एडवेंचर का आनंद मिलेगा।

एजेंट विनोद पहले रूस जाता है। रूस के बाद वह मोरक्को जाता है। मोरक्को में उसे करीना कपूर मिलती है। वह एक रहस्यमयी लड़की है। वह उस पर भरोसा करता है, पर आशंकित भी रहता है। वहां से फिर एक गुप्त जगह पर जाता है। आखिरकार उसकी खोज पूरी होती है। आतंकवादी गतिविधियों की जो खबरें हम पढ़ और देख रहे हैं, वह सब इस फिल्म में आता है।

इस फिल्म का नाम एजेंट विनोद ही क्यों? मेरा सवाल विनोद को लेकर है। यह आठवें-नौंवे दशक का नाम लगता है?

चार साल पहले सैफ के साथ हम यूं ही बात कर रहे थे। हमदोनों अपनी-अपनी पसंद की फिल्में शेयर कर रहे थे। बांड की फिल्मों की भी बातें हुई। हिंदी फिल्मों में हम दोनों की कॉमन पसंद एजेंट विनोद निकली। महेंद्र संधू की यह फिल्म सालों पहले आई थी। मैंने यह फिल्म स्कूल के दिनों में देखी थी। आज यह फिल्म पुरानी लग सकती है, लेकिन उसमें भरपूर मस्ती है। हमने तभी तय किया कि इसी नाम से हम फिल्म बनाएंगे। यह रीमेक नहीं है। हमने सिर्फ टाइटिल दिया है। आपने सच कहा कि यह पुराना नाम लगता है, लेकिन इस नाम में एक आकर्षण भी है। यह टाइटिल ध्यान खींचता है। चूंकि इस नाम की एक फिल्म बनी हुई थी,इसलिए यह नाम हमारे दिमाग में आया। अन्यथा हम कोई और नाम भी रख सकते थे।

अभी के एक्शन और मौज-मस्ती के दौर में क्या स्पाई फिल्म को दर्शक मिलेंगे?

हमें याद है कि विजय आनंद और राज खोसला ने कई सारी सफल थ्रिलर फिल्में बनाई, लेकिन पिछले दो दशकों में प्रेम कहानियां और एक्शन प्रधान फिल्में ही बन रही हैं। सचमुच, मिथुन चक्रवर्ती की सुरक्षा के बाद थ्रिलर फिल्में आनी बंद हो गई थी। अब्बास-मस्तान के थ्रिलर में रोमांस ज्यादा रहता है। बीच में अनिल शर्मा की हीरो आई थी, लेकिन इस स्पाई स्टोरी में भी लव स्टोरी घुस गई थी। मुझे भी आश्चर्य होता है कि पिछले 10-15 सालों में कोई स्पाई स्टोरी या थ्रिलर फिल्म क्यों नहीं आई? अभी मैंने सुना है कि विद्या बालन की कहानी लोगों को पसंद आई है।

एजेंट विनोद के साथ एक रहस्य जुड़ा हुआ है कि इस फिल्म को पर्दे पर आने में इतना समय क्यों लगा?

न जाने कैसे एजेंट विनोद शुरू होने से डेढ़ साल पहले खबरों में आ गई थी। जॉनी गद्दार खत्म करने के बाद ही इसकी चर्चा होने लगी थी। सही बात बताऊं तो इसमें कुल ढ़ाई साल लगे। स्क्रिप्ट मैं खुद लिखता हूं। इसलिए उसमें समय लगा। दूसरे लिखने के बाद, जब मैं लोकेशन पर गया, तो वहां के नक्शे के हिसाब से फिर से कहानी में बदलाव किया। अब जैसे कि एम्सटर्डम में शूट करना चाहता था, लेकिन यह मुमकिन नहीं हो पाया। लिखते समय हमने कल्पना की उड़ानें भरीं। उन्हें पर्दे पर लाने में अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

एजेंट विनोद में सौ से ज्यादा लोकेशन है और किसी भी लोकेशन का दुहराव नहीं है। यह फिल्म लगातार चलती रहती है। इंटीरियर ड्रामा बहुत कम है। फिल्म देखते समय आप महसूस करेंगे कि हमने इतना समय क्यों लिया? यह कोई एक्सक्यूज नहीं है। आमतौर पर इतना समय नहीं लगना चाहिए। यही फिल्म हॉलीवुड में रहती, तो प्री-प्रोडक्शन में ज्यादा समय लेकर छह महीने में शूटिंग कर लेते। हमलोग दोनों काम एक साथ करते रहते हैं।पहले की दोनों फिल्में एक हसीना थी और जॉनी गद्दार आप ने अनेक सीमाओं और बंधनों के बीच की थी। सुना है इस बार आप को फ्री हैंड मिला था?

पहले की फिल्मों में थोड़ी सीमाएं थीं। एजेंट विनोद अलग तरह की लो बजट फिल्म है। यहां लो का मतलब कम नहीं, लेना है। मैंने जो भी मांगा, वह मिलता रहा। इस फिल्म और फिल्म के कैरेक्टर के साथ सैफ का जुड़ाव ज्यादा था। उन्होंने ठान ली थी कि यह फिल्म करनी है। शायद उनके बचपन का सपना था कि एक स्पाई फिल्म करेंगे। बचपन में चोर-सिपाही खेलते हैं। मुझे लगता है वहीं से इसका वायरस उनके दिमाग में घुसा होगा। सैफ लव स्टोरी और रोमांटिक फिल्मों में भी अच्छे लगते हैं, लेकिन उनमें पूरा मन नहीं लगता। सैफ ने बजट की कोई सीमा नहीं रखी। फिल्म महंगी जरूर हो गई है। दर्शकों को अच्छी लगी, तो सब कुछ वसूल हो जाएगा।

हीरो अगर निर्माता हो, तो फायदा होता है?

जरूर। उसे मालूम रहता है कि फिल्म की जरूरतें क्या-क्या हैं? इस फिल्म में दो दिनों की शूटिंग के लिए हमलोग रूस गए थे। छोटा यूनिट लेकर गए। फिर भी पैसे तो खर्च हुए। कोई और निर्माता होता, तो किसी कम खर्चीली जगह पर शूट करने के लिए दवाब डालता। हमारी कोशिश थी कि रूस का फ्लेवर आए। स्पाई फिल्म में रूस दिखे, तो कहानी का रहस्य बढ़ जाता है। निर्माता के तौर पर सैफ ने मेरी बात मानी। होम प्रोडक्शन होने के कारण उन्हें खुद को फीस नहीं देनी पड़ी।

सैफ से आप की दोस्ती कब हुई?

एक हसीना थी की शूटिंग के समय ही हुई थी। तब तक सैफ का नाम तो हो गया था, लेकिन एक्टर के तौर पर पहचान नहीं बनी थी। रामगोपाल वर्मा ने हम दोनों पर भरोसा करते हुए एक हसीना थी सौंप दी थी। एक हसीना थी ज्यादा नहीं चल सकी थी, फिर भी हम दोनों को सराहना मिली। मेरे लिए तो वह पहली फिल्म थी। सैफ के कॅरियर में वह टर्निग प्वाइंट साबित हुई। उसके बाद इंडस्ट्री ने उन पर ध्यान दिया। अलग-अलग तरह के रोल दिए। हमारे बीच एक कंफर्ट लेवल है। हमारे झगड़े भी होते हैं। हम लोग नाराज भी हो जाते हैं। यह सब फिल्म के लिए होता है।

इस फिल्म में करीना कपूर का चुनाव कैसे हुआ?

जब मैं फिल्म लिख रहा था, तभी सैफ बार-बार पूछते थे कि हीरोइन का कैरेक्टर कैसा बन रहा है। उनके दिमाग में अवश्य करीना रही होंगी। मैंने भी कहा कि करीना अच्छी एक्ट्रेस हैं। उन्हें फिल्म के लिए चुना जा सकता है। मेरे दोस्तों ने जरूर चिंता जताई कि रीयल लाइफ कपल पर्दे पर नहीं जमते। उनकी कुर्बान भी नहीं चली थी। इन बातों से मैं परेशान नहीं था। रोल और कैरेक्टर में वे फिट बैठती थी। इस फिल्म में दोनों कुछ इस ढंग से आते हैं कि दर्शककेमिस्ट्री वगैरह की चिंता नहीं करेंगे। शुरू में ही सब कुछ सेट हो जाता है।

बाकी कौन से एक्टर हैं?

लंबे समय के बाद प्रेम चोपड़ा दिखाई देंगे। वे खलनायक के तौर पर आए हैं। राम कपूर, आदिल हुसैन, धृतिमान चटर्जी, रविकिशन और गुलशन “्रोवर हैं। दिल्ली का एक नया लड़का अंशुमान सिंह भी फिल्म में है। दर्शक उसे नोटिस करेंगे। सेकेंड हाफ में वह एक खास किरदार में आता है।

फिल्म में गाने और मुजरा तक हैं। ये आपकी पसंद है या बाजार का दबाव?

मुजरा का एक सिचुएशन है। उस सिचुएशन के हिसाब से मुजरा बनाया गया है। हमारी दिक्कत है कि उस सीन में हम पूरा मुजरा नहीं दिखा सकते। अगर थोड़ा दिखाएंगे, तो दर्शक मानेंगे कि हमने धोखा दिया। हमने तय किया है कि उसे फिल्म के अंत में दिखाएंगे और टीवी प्रमोशन में इस्तेमाल करते रहेंगे। वह हिट गाना हो गया है। फिल्म देखते समय दर्शक रियलाइज कर लेंगे कि मुजरा कहां पर होता।

सैफ के बारे में क्या कहेंगे?

मुझे खुद नहीं कहना चाहिए, लेकिन उन्होंने शानदार काम किया है। इस कैरेक्टर को निभाने का वह पूरा आनंद उठा रहे थे। पर्दे पर उसे आप महसूस करेंगे। एजेंट विनोद में सिर्फ एक्शन नहीं है। इमोशन भी है। सैफ इवॉल्व्ड एक्टर हैं।

एजेंट विनोद का आइडिया कब और कैसे पैदा हुआ?

सैफ के साथ तय हो जाने पर कि स्पाई फिल्म बनानी है, मैंने कुछ लेखकों को अप्रोच किया। लेखकों से मुझे अपनी स्क्रिप्ट नहीं मिल पा रही थी। मैं दिखाना चाहता हूं कि आज का रॉ एजेंट कैसा होगा। मैंने ढेर सारे स्पाई नॉवेल पढ़े हैं। फिल्में तो सारी देखी हैं। उन सभी का निचोड़ लेकर मैंने अपनी कहानी लिखी है। ऐसी फिल्मों में कोई कहानी नहीं होती। एक उद्देश्य होता है, जिसे फिल्म का हीरो पूरा करता है। मैंने अभिजीत विश्वास की मदद ली है।

पूरी फिल्म सीक्वेंस बाई सीक्वेंस खुलती जाती है और दर्शकों की जिज्ञासा बढ़ती जाएगी। इस फिल्म को देखते समय टिनटिन कॉमिक्स का मजा आएगा। ट्विस्ट और टर्न ढेर सारे हैं। एंटरटेनिंग स्पाई फिल्म है। जब मैं इसे लिख रहा था, तभी 26/11 की घटना हुई थी। मैं कल्पना करता था और टीवी देखता रहता था। दोनों में एक क्लैश चलता रहता था। रीयल घटनाएं मेरी कल्पना से ज्यादा जानदार थीं। मैं उनसे भी प्रभावित हुआ। फिल्म में मैंने एक संतुलन बनाने की कोशिश की है। यह फिल्म फिक्शन है, लेकिन देशों और शहरों के नाम रीयल हैं। एजेंट विनोद जैसी घटनाएं या कहानी हो सकती हैं। अभी तक ऐसा कुछ हुआ नहीं है।

इसका मतलब भविष्य में फिल्म से प्रेरित होकर कुछ हुआ तो सारा दोष आप पर आएगा?

ऐसा होना तो नहीं चाहिए। अगर हो ही गया, तो एजेंट विनोद भी रहेगा उसमें। वह सब को बचा लेगा। दरअसल मैं एक रियलिस्टिक स्पाई थ्रिलर फिल्म लेकर आ रहा हूं। इसमें मस्ती, एक्शन, रोमांस और मजा है। इस फिल्म को देखते समय पूरा ध्यान पर्दे पर रखना होगा। अगर आप कुछ मिस करेंगे, तो फिल्म समझने में दिक्कत हो सकती है।


Comments

रोचक लग रही है, देखते हैं।

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