सत्‍यमेव जयते-9 : जिंदगी को जोखिम में न डालें-आमिर खान

बेशकीमती हैं बच्चियां
आग हमें गर्मी देती है, किंतु जलाती भी है। इसे हम अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं, किंतु कभी इसके इतने करीब नहीं जाते कि जल जाएं। जैसे ही हम इसके करीब जाते हैं हमारी इंद्रियां हमें खतरे का बोध करा देती हैं। शराब भी इससे अलग नहीं है। वास्तव में, शराब में आग के गुण तो नहीं हैं, किंतु नुकसान सारे हैं। अगर अधिक नहीं तो शराब आग जितनी विनाशक जरूर है।
देश के सभी राज्यों में शराब ने हजारों-लाखों परिवारों को बर्बाद कर दिया है। यह एक रोग है, जिससे संक्रमित तो आम तौर पर परिवार का एक ही सदस्य होता है, किंतु गाज पूरे परिवार पर गिरती है। यह रोग घरेलू हिंसा को बढ़ाता है..बच्चों की शिक्षा को प्रभावित करती है..बेरोजगारी को बढ़ाता है। ये तो नुकसान के कुछ उदाहरण भर हैं। जब मैंने शराबखोरी के लिए रोग शब्द का इस्तेमाल किया तो मैं इसे हल्के में नहीं ले रहा था। आज अध्ययनों से पता चलता है कि शराबखोरी कोई बुरी आदत नहीं, बल्कि एक बीमारी है। हममें से कुछ के शराब की गिरफ्त में आने की संभावना रहती है और जब ऐसे लोग इसे पीना शुरू करते हैं तो धीरे-धीरे वे अधिकाधिक पीते चले जाते हैं और एक समय ऐसी नौबत आ जाती है कि वे चाहकर भी इसके चंगुल से बाहर नहीं निकल पाते। यह भंवर के समान है, जो आपको अपने अंदर खींच लेता है। दुर्भाग्य से कोई मेडिकल टेस्ट उपलब्ध नहीं है जो आपको इसकी चेतावनी दे सके।
चार संकेतकों से पता लगाया जा सकता कि कहीं आप शराब की गिरफ्त में तो नहीं आ रहे हैं। खुद से ये चार सवाल पूछें। केवल एक का जवाब हां में आने का मतलब होगा कि शराब आपके लिए खतरा बनने लगी है। एक से अधिक हां होने का अर्थ होगा कि आप गंभीर समस्या में फंस चुके हैं। पहला सवाल यह है कि क्या आपके निकटवर्ती आपसे शराब कम पीने को कहने लगे हैं? क्या शराब पीकर आपको गुस्सा आता है और इस कारण लोग आपसे शराब छोड़ने को कहते हैं? क्या आप खुद से वायदा करने लगे हैं कि आज एक निश्चित मात्र से अधिक नहीं पिएंगे और एक बार पीना शुरू करने के बाद आप खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाते। अगले दिन आप अपराधबोध से ग्रस्त होते हैं और अपने संकल्प पर न टिकने के कारण खुद पर नाराज भी होते हैं? क्या आप उस हालत में पहुंच गए हैं कि बिना शराब के आप दिन की शुरुआत ही नहीं कर पाते। आप सुबह उठते हैं और आपको महसूस होता है कि नशे के बिना आप काम ही नहीं कर पा रहे हैं? यानी पिए बिना आपकी आंखें ही नहीं खुलतीं।
दुर्भाग्य से ऐसी कोई दवा नहीं है जो शराबखोरी के इस रोग से पीछा छुड़ा सके, किंतु अगर हम शराब छोड़ना चाहते हैं तो एक संगठन इसमें महत्वपूर्ण सहायता प्रदान कर सकता है-एल्कोहलिक्स एनॉनिमस (एए)। यह विश्वव्यापी संगठन है। यह अब तक दुनिया भर में 30 करोड़ लोगों की सहायता कर चुका है। भारत में भी अलग-अलग स्थानों पर इसके अनेक केंद्र कार्यरत हैं। फोन और एसएमएस के जरिये इस संगठन से संपर्क किया जा सकता है।
शराब पीने वाले सभी लोगों को इसकी लत नहीं लगती। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में शराब पीने वाले समस्त व्यक्तियों में से बीस में से एक ही शराबी होता है, यानी शराब पीने वाले केवल पांच प्रतिशत लोगों को ही इसकी लत लगती है, किंतु एल्कोहल का सेवन करने वाले दो में से एक व्यक्ति यानी पचास फीसदी लोग अपनी सेहत और स्थिति को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। हो सकता है आप रोजाना न पीते हों और आपको शराब की लत न लगी हो, किंतु जब भी आप पीते हों तो इतनी अधिक पीते हों कि होश गंवा देते हो। इससे खुद को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ आप औरों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि आपने एक या दो पैग लिए हों और फिर भी आपका व्यवहार खतरनाक हो जाए, उदाहरण के लिए शराब पीकर गाड़ी चलाना। शराब पिए हुए लोगों को मैंने अक्सर कहते सुना है..मैंने नहीं पी है, मैं गाड़ी चला सकता हूं, मैं बिल्कुल ठीक-ठाक हूं..या छोड़ यार क्यों परेशान हो रहा है, मैंने बस दो ही पैग लिए हैं और पूरी तरह होशोहवास में हूं।
शराब के नशे में आ चुका कोई भी व्यक्ति खुद को महामानव समझने लगता है। यह कितनी बेकार बात है। कोई भी कार तब मौत की मशीन बन जाती है जब वह एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में जिसने तनिक भी एल्कोहल पी रखी हो। अगर आप थोड़ी भी शराब पीकर कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे हैं तो आपको उस शख्स के रूप में देखा जाना चाहिए जो कभी भी, कहीं भी किसी की हत्या कर सकता है। भारत के अस्पतालों के इमरजेंसी रूम में आने वाले सभी मामलों में 40-60 प्रतिशत एल्कोहल से संबंधित होते हैं। इनमें से 35 प्रतिशत मामले उन लोगों के होते हैं जिन्होंने खुद शराब पी रखी होती है और 65 प्रतिशत वे लोग होते हैं जिन्होंने खुद शराब नहीं पी होती है, लेकिन वे उन लोगों का शिकार बनते हैं जो इसके नशे में होते हैं। लिहाजा साफ है कि अगर हम शराब के बिना जी सकते हैं तो इससे अच्छा कुछ और नहीं, लेकिन हममें से यदि कुछ लोग शराब पीना चाहते हैं तो कम से कम उन्हें इस मामले में जिम्मेदारी का परिचय तो देना ही चाहिए।
जब मैं इस मसले पर शोध सामग्री का अध्ययन कर रहा था और लोगों के साक्षात्कार ले रहा था तो मैं समीर आनंद की कहानी सुनकर पूरी तरह सन्न रह गया। समीर आनंद और उनकी पत्नी गीतिका की दर्दनाक कहानी सुनकर किसी की भी आंखें भर आएंगी। उन्हें अपने 14 साल के बेटे करन को जिन परिस्थितियों में खोना पड़ा वह दिल तोड़ देने वाली दास्तान है। यह वह दुस्वप्न है जिससे कोई भी माता-पिता नहीं गुजरना चाहेगा। समीर आनंद के साक्षात्कार को देखने के बाद मैंने जो काम सबसे पहले किया था वह था अपने बच्चों-इरा और जुनैद को फोन करना। मैंने उनसे घर आने के लिए कहा और उन्हें समीर का इंटरव्यू दिखाया। मैंने उनसे यह वादा करने के लिए कहा कि वे अपने जीवन में न तो कभी शराब पिएंगे और न ही पीकर गाड़ी चलाएंगे। यह वह वायदा है जो मुङो लगता है कि सभी को खुद से और अपने परिवार वालों से करना चाहिए। कभी भी उस कार अथवा किसी दूसरी गाड़ी में नहीं बैठें जिसमें ड्राइविंग सीट पर बैठे व्यक्ति ने शराब की एक बूंद भी पी रखी हो। इसे जीवन का एक नियम बना लें।
जय हिंद। सत्यमेव जयते।

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