जासूस जासूस है हाड़ मांस का बना एक आदमी - विमल चंद्र पाण्‍डेय

- विमल चंद्र पाण्‍डेय
दिबाकर बनर्जी निर्देशित डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी देख कर लौटा हूँ और सोच रहा हूँ कि इतना खूबसूरत और सुलझा हुआ क्लाइमेक्स हिंदी सिनेमा में इसके पहले कब देखा था. हर फ्रेम कुछ कहता हुआ, फिल्म की रगों में दौड़ता मानीखेज़ पार्श्व संगीत और दिबाकर का प्रिय कोलकाता जो इस फिल्म से गुज़रते हुए हमारा थोड़ा और प्रिय हो जाता है.
दिबाकर बनर्जी निर्देशित डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी देख कर लौटा हूँ और सोच रहा हूँ कि नीरज काबी तो सँजो कर रखे जाने वाले हीरे हैं, ऐसा अभिनय जो हर कदम किरदार को धीरे-धीरे खोलता हुआ हमारे सामने लाता है. दिबाकर और उर्वी की पटकथा सिखाती है कि कहानी को किस तरह बुना जाता है. दिबाकर डिटेलिंग के मास्टर हैं और इस फिल्म में वह अपने उरूज पर है. ब्योमकेश बहुत साधारण इंसान है, कौन सा निर्देशक अपने हीरो को इंट्रोडक्शन सीन में किसी चरित्र अभिनेता से थप्पड़ मरवाएगा. यह काम दिबाकर करते हैं और इस तरह करते हैं कि वह थप्पड़ लार्जर दैन लाइफ हीरो की हमारी अवधारणा पर पड़ता है. कौन सा निर्देशक होगा जो अपने नायक, वह भी जासूस, को क्लाइमेक्स में बेहोश कर देगा. वह जब उठेगा तो खून खराबा हो चुका होगा, क्लाइमेक्स निबट चुका होगा. यह संयोगवश नहीं है. दिबाकर वही बात कह रहे हैं जो उनके कई समकालीन निर्देशक अपनी फिल्मों से कह रहे हैं कि आने वाला वक़्त उन्ही कहानियों का है, उसी सिनेमा का है जो ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ लगेगा. जासूस जासूस है हाड़ मांस का बना एक आदमी, क्या हुआ जो वह जब होश में आया तो विलेन भाग चुका था, होता है ऐसा.
दिबाकर बनर्जी निर्देशित डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी देख कर लौटा हूँ और सोच रहा हूँ कि कौन हैं वे लोग जो कह रहे हैं कि फिल्म की स्पीड धीमी है या फिर कहानी उलझी हुई है. ये लोग कौन सा सिनेमा देखते हैं, कौन सा सिनेमा बनाते हैं. किन औज़ारों से बनाते हैं किसी सिनेमा के प्रति अपनी राय ? दिबाकर हर फिल्म से निखरते हुए अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पार करते जा रहे हैं, वह हमें सिनेमा का क ख ग सिखा रहे हैं जिए हम सीखने को तैयार नहीं, हम अभी फ़िल्में देखना नहीं सीख पाए हैं दिबाकर लेकिन आप और आपके समय के कुछ लोग जिस तरह की फ़िल्में लगातार बना रहे हैं, हम ज्यादा दिनों तक बेशउर नहीं रहेंगे. फिल्म में मुझे भी कुछ बातें अखरी हैं लेकिन हम दिबाकर से यह शिकायत तब करेंगे जब इस फिल्म के लिए उन्हें गले लगा कर बहुत सारा शुक्रिया कह चुके होंगे.
आप दिबाकर और ब्योमकेश नामों को कई बार दोहराने से घबराइए नहीं, लिखा सिर्फ ३-४ बार है, जब से देख कर आया हूँ, बोल तो सैकड़ों बार चुका हूँ.

Comments

Firoj khan said…
सच कहा विमल, हमें अच्छा सिनेमा देखने की समझ पैदा करनी होगी। ...और दिवाकर का पूरा सिनेमा यह आश्वासन देता है। तमाम पारंपरिक रिव्यू से हटकर एक अच्छा रिव्यू। शुक्रिया विमल...

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