अतीत को रचना है आनंद : आशुतोष गोवारीकर



मुझे अलग दुनिया क्रिएट करने में मजा आता है। हां यह मुश्किल काम है। पर इसमें अलग तरह की संतुष्टि है। इसके जरिए पहले मुझे रिसर्च औऱ बाकी तरीकों से उस दुनिया में जाने का मौका मिलता है। फिर उसे क्रिएट करना होता है। एक अलग समय की कहानी की तरफ मैं बहुत आकर्षित होता हूं। टाइमजोन क्रिएट करने में खुशी मिलती है। सवाल हो सकता है कि यही संस्कृति क्यों? क्योंकि हम सालों से रोम और मिश्र की सभ्यता देखते आ रहे हैं। यूरोप की फिल्मों में हम यह देख चुके हें। वे बहुत गर्व के साथ इसे प्रस्तुत करते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि हमने कभी अपनी सभ्यता के बारे में फिल्म नहीं बनाई। लगान के वक्त जब मैं रेकी के लिए कच्‍छ के आसपास धौलावीरा गया,तभी कहीं ना कहीं मेरे दिमाग में था कि इस पर फिल्म बनाऊंगा। इस संस्कृति पर फिल्म बनाना मेरे लिए दिलचस्प था। वे कौन लोग थे? क्या लोग थे? इनका समाज क्या था? धर्म था कि नहीं? इनके भगवान कौन थे? ऐसी बहुत सारी चीजों की कोई जानकारी हमारे पास नहीं है। इसकी वजह यही है कि प्रागैतिहासिक काल की इस सभ्‍यतो के बारे में कुछ भी लिखित  नहीं है। सारी कल्पना वहां मिली आर्टफेक्स से मिलती है। मैंने डाक्टर जोनाथन मार्क केनोयर से संपर्क किया। उन्होंने तकरीबन पैंतीस-चालीस साल मोहेंजो दारो औऱ हडप्पा पर काम किया है।
वसंत शिंदे पुणे विश्वविद्यालय से हैं। प्रभाकर जी  और अजीत कृष्णन बड़ोदा विश्वविद्यालय से हैं। इन सब धौलावीरा और लोथार पर काम किया है। मैंने स्क्रिप्ट लिख्‍ने के बाद उनसे मंजूरी ली। उन सब ने एक स्‍वर से कहा कि आपको फैक्ट्स बता सकते हैं। फिक्शन हमारा काम नहीं है। मैंने उनकी खोज और खुदाई में मिली चीजों पर सोचना शुरू किया। जैसे उस वक्त की ईट का जो आकार है। फिल्म में मैंने ईट का वही साइज रखा है। गलियां-नुक्कड़ सारे सब एक नक्‍शे के मुताबिक हैं। स्‍नानागार,बाजार-हाट और नगर द्वार वैसे ही बनाए।
किरदार मैंने गढ़े
सरमन और चानी मेरे सृजन हैं। खुदाई के एक मोहर में ड्रमर है, तो मैंने सरमन को ड्रमर बना दिया। मुझे क्ले की नर्तकी गुडिया मिली है तो मैंने उसे चानी बना दिया है। इस किस्म से जो चीजें मिली हैं, उनको मैंने स्क्रिप्ट में पिरोया है। बुनियादी तौर पर मैं यह देखने की कोशिश कर रहा हूं कि यह संस्कृति क्या थी? क्या कारण थे कि जिससे यह इतनी फली -फूली। बाद में इसका अस्त हुआ तो क्यों हुआ और कैसे हुआ? इस संस्कृति के सारे नगरों का क्या एक दूसरे से व्यवहार था। इनका इंटरनेशनल मार्केट क्या था। किस तरह से ट्रेड होता था। इन  सारी चीजों को हत वास्तविक रूप में दिखाएं देखें तो डॉक्यूमेंट्री  हो जाएगी। रोमांस और हीरो-हीरोईन के साथ विलेन का आना बहुत जरूरी था। यही पॉपुलर ढांचा है। आप का मन उसमें लगा रहता है। एक लव स्टोरी मैंने क्रिएट किया है। उसके अलावा मोहेंजो दारो नगर का चित्रण जरूरी है। इसमें प्रेम कहानी,संस्कृति, राजनीति , सामाजिक एंगल को लाना अवश्यक है। कबीर बेदी फिल्म के ड्रामा का हिस्सा हैं। इनके बारे में बताना कहानी बताने के समान हो जाएगा। मैं उसका खुलासा अभी नहीं कर सकता। हां,उस वक्त की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति फिल्‍म में मिलेगी। बाहरी दुनिया से हमारा कैसा संपर्क और ट्रेड था...उन सबकी भी झलक मिलेगी। किरदारों की प्रेरणा मुद्राओं से मिली है। वेशभूषा और ज्वैलरी भी उसी से आई है। उस समय की कुछ ज्वैलरी हमें मिली भी है। मिली हुई मूर्तियों के कपड़े और पहनावे फिल्‍म जैसे नहीं हैं। तब की मूर्तियां र्विस्‍त्र होती थीं। मुझे महिलाओं और पुरुषों के कपड़े इस तरह से सोचने पड़े ताकि लगें कि कुछ अलग है और वह प्रभावित करें।
जरूरी है प्रासंगिकता
हम जब भी कोई ऐतिहासिक फिल्म बनाते हैं तो उसका आज के समय से प्रासंगिक होना जरूरी है। मैंने इसमें समकालीन यथार्थ के कुछ प्रासंगिक पहलू खोजने की कवायद की है। ऐतिहासिक फिल्मों का आज के लिए प्रासंगिक होना जरूरी है। जोधा अकबर के समय में भी मैं यही तलाश कर रहा था। जोधा अकबर में दो सभ्यताओं और धर्मों को लेकर बात की,जो आज के समय से जुडा था। लगान में एकता की बात की थी। वह भी प्रासंगिक है। प्राचीन समय से आज के लिए कुछ तलाशना और तराशना आवश्यक है।
जब मैं कहानी लिखता हूं या मैं अपनी स्पेस में किसी एरा को चुनता हूं, तो मेरा बहुत सारा समय यही सोचने में जाता है कि क्या यह प्रासंगिक होगा। क्या मैं इसे कमर्शियल तरीके से पेश कर पाऊंगा। मतलब, अटपटा ना लगें।अचानक गाना तो नहीं आ गया। क्या इसमें रोमांटिक अहसास है? क्या इसमें ड्रामा मिल सकता है? क्योंकि ड्रामा के बिना कोई फिल्मकार कहानी नहीं कह सकता है। ड्रामा अहम है। इसी कारण मुझे स्क्रिप्‍ट लिखने में छह महीने से एक साल का वक्त लगता है। एक साथ मेरी दो-तीन स्क्रिप्ट चलती रहती है। सिंधु घाटी की सभ्‍यता पर फिल्म बनाने का इरादा था,लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी। खेलें हम जी जान और ह्वाट्स योर राशि के साथ मोहेंजो दारो की स्क्रिप्ट पर काम करना शुरू किया। इसे अधिक समय लगने वाला था, इस वजह से मैंने ह्वाट्स योर राशि पहले बनाई। मैं कितना भी गंभीर विषय लूं। मेरी दिलचस्पी इसमें रहती है कि क्या इसमें हीरो-हीरोईन और फार्मूला वाली चीजें फिट बैठती हैं? अगर यह नहीं है तो फिल्म कनेक्ट नहीं होगी। मेरी फिल्‍मों का बजट इतना अधिक होता है कि उसे पेश करने के लिए पॉपुलर तत्‍व होना जरूरी है। पॉपुलर स्टार भी चाहिए। बिजनेस साइड को देखना जरूरी है। तभी मुझे तीन साल लग जाते हैं।
नहीं बता सकते सब कुछ
अगर अभी कुछ बताऊं तो लगान में क्रिकेट के बारे में बताने समान हो जाएगा। अभी हमने दो गानें रिलीज किए। उन गानों और ट्रेलर को देखकर दर्शक अपने दिमाग प्रभाव क्रिएट कर रहा होगा। प्रागैतिहासिक काल की कहानी के बारे में कुछ पता नहीं है। उसे मैं शब्दों से बयान नहीं कर सकूंगा। यह आप फिल्म में ही देखें। कुछ पहले बताना दावा करने के समान होगा। मैं दावे से बचना चाहता हूं। जैसे जोधा अकबर में हमने कई सारे बाते की थी। लोगों के पास पढ़ने के लिए भी बहुत कुछ था। इस बार मैं थोड़ा बचके चलना चाहता हूं। दर्शकों रिएक्ट करें गाने  और ट्रेलर देख कर। औऱ अंत में फिल्म देख कर।
प्रेम के साथ इमोशन
बहुत मुश्किल था इमोशन तय करना। यह एक ऐसा पीरियड हैृजिसके बारे में सिवाय इमैजिनेशन के कुछ भी नहीं है। प्रेम,ईर्ष्‍या के भाव रहे होंगे। सामाजिक व्‍यवस्‍थ कैसी रही होगी? राजा-महाराजा उस समय नहीं थे। ना कोई युद्ध था। सब सोचना और कल्‍पना करना था। कोशिश है कि हम फिल्म देखें तो यह अलग भी लगे और आज की सोच के हिसाब से भी लगे। ऐसा क्या है जो उस वक्त हुआ और आज से जुड़ा हुआ है। इस वजह से मैंने जो साल चुना वह ईसा से दो हजार सोलह पहले का है।
किसान है सरमन
सरमन नील का किसान है। उसने मोहेंजो दारो का नाम सुना है। उसे जाने की इच्छा है। उसके कहा गया है कि नील के बदले इतने गेंहूं आयेंगे। वह कैसे नील को लेकर मोहेंजो दारो आता है। नील उस समय एक प्रमुख क्राप होगा। नील का इस्तेमाल कपड़ो और घरो की सजावट में होता था। अगर आपके पास नील है तो आपके पास मार्बल के समान है। नील की अहमियत थी।
गीत-संगीत
संगीत क्रिएट करना मुश्किल था,क्‍योंकि उस वक्त का कोई रिकार्ड नहीं है। हां,तब बांसुरी जैसा कुछ बज रहा होगा। ऐसा पाया गया है। लेकिन ढोल था कि नहीं? हम नहीं जानते। मैं सोचता हूं कि जब मिश्र से ट्रेड हुआ होगा तो कुछ चीजें वहां से भी आयी होगी। हम ने कुछ वाद्यों का इस्‍तेमाल किया है। रहमान के साथ बातचीत हुई. तो मैंने यह बात रखी कि धरती और गंगा नदी को मां कहते हैं। वैसे सिंधु नदी को मां और सिंधु देवी को मां कहते होंगे। सिंधु मां को ध्यान में रखते हुए मेरी रहमान से यही मांग थी कि ऐसा साउंड हो जो चर्च,मस्जिद या गुरुद्वारा का ना हो।किसी भी धर्म का साउंड ना हो। सुनने पर ऐसा लगे कि यह सिंधु मां का ही होगा । सिंधु मां को गौर से सुनें। अहसास होता रहे तब अलग भाषा रही होगी।
रितिक से रिश्‍ता
हम दोनों के रिश्ते में फर्क आ गया है। इस बार बहुत ज्यादा मजा आया। एक सहजता आ गई थी। एक समझ आ गई थी। एक दूसरे के बारे में। सीन करते समय हम जोधा बकबर के इमोशन के दोहराव से बचते रहे। रितिक हर फिल्म के साथ अपने अनुभव से सीखतें हैं। उसे काम में डालते हैं। वह एक्टर के तौर पर और इवॉल्व हो गए हैं। इमोशन एक्सप्रेस करने में एक ठहराव आ गया है। बहुत अच्छा लगा उनमें यह देख कर। जोधा अकबर में ख्वाजा के वक्त का इमोशन इस बार भी देखने को मिलेंगे। और एक अलग किस्म का मजा है इस फिल्म में। फिल्म में खुद के विचारों को कैसे आकते हैं।

शीर्षक मोहेंजो दारो ही क्‍यों?
मैाने एक्‍सपर्ट से इस बारे में पूछा। उन्‍होंने मोहेंजो दारो शीर्ष रखने पर जोर किया। मोहेंजो दारो का मतलब है माउंट ऑफ डेड यानी मुर्दो का टीला। यह आज का नाम है। उस जमाने में यह नाम नहीं रहा होगा नहीं। मैंने सलाह ली कि अलग नाम रखता हूं। उन्होंने मुझे मना कर दिया। वे स्‍पष्‍ट थे कि अलग नाम नहीं रख सकते हैं। अलग नाम में और विवाद होगा। ऐसा लगेगा कि आपने कोई एक काल्पनिक दुनिया क्रिएट की है। उनके हिसाब से मुझे मोहेंजो दारो ही रखना चाहिए। मुझे भी अहसास हुआ कि वे सही कह रहे हैं। मेरा बुनियादी इरादा तो हमारी सभ्यता को पेश करना है।
झंकार टीम

Comments

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-08-2016) को "तूफ़ान से कश्ती निकाल के" (चर्चा अंक-2430) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उत्सुकता रहेगी यह देखने की ,कि उस युग को कैसे रूपायित किया गया है ,उस संस्कृति के निरूपण से उस परंपरा से आनेवाली बहुत सी चीज़ों का जुड़ाव देख पाना रुचिकर अनुभव होगा .

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