फिल्‍म समीक्षा : तूतक तूतक तूतिया




न डर,न हंसी
-अजय ब्रह्मात्‍मज
फिल्‍म के लिए एक कहानी लिखी गई। उस कहानी के एक किरदार के लिए सोनू सूद से बात हुई। सोनू सूद को कहानी इतनी पसंद आई कि उन्‍होंने निर्माता बनने का फैसला कर लिया। उन्‍होंने फिल्‍म को अपने हिसाब से संजोया। लेखक और निर्देशक ने भी उनकी सोच का खयाल रखा। प्रभुदेवा हीरो बन गए। साथ में तमन्‍ना आ गईं। फिल्‍म तैयार हो गई। तूतक तूतक तूतिया कुछ दोस्‍तों के सामूहिक प्रयास से एक प्रोपोजल को फिल्‍म में ढालने का नमूना है। दक्षिण के निर्देशक ए एल विजय की पहली हिंदी फिल्‍म है।
कृष्‍णा मुंबई में रहता है। वह तमिल है। उसे तलाश है अंग्रेजी बोलने में माहिर मॉडर्न लड़की की,जिसका ग्रामर ठीक हो। वह 27 लड़कियों को प्रोपोज कर तीस बार रिजेक्‍ट हो चुका है। संयोग कुछ ऐसा बनता है कि उसे पैतृक गांव जाना पड़ता है। वहां आनन-फानन में उसकी शादी देवी से कर दी जाती है। मुंबई लौटने पर वह देहाती बीवी से दुखी रहता है। एक परालौकिक घटना घटती है। उसमें रुबी की आत्‍मा प्रवेश कर जाती है। रुबी हिंदी फिल्‍मों की हीरोइन बनने में असफल रहने पर हताशा में आत्‍महत्‍या कर चुकी है। रुबी की आत्‍मा किसी को तंग नहीं करती। वह हीरोइन बनने की ख्‍वाहिश देवी के जरिए पूरी करती है। ‍देवी और रुबी दो आत्‍माएं एक ही शरीर में रहती हैं,इससे उसके पति कृष्‍णा की मुश्किले बढ़ती हैं। कुछ मजेदार प्रसंग होते हैं। थोड़ी हंसी आती है। थोड़ा गुस्‍सा भी आता है कि कहानी और किरदारों पर मेहनत क्‍यों नहीं की गई है।
हीं,फिल्‍म में सोनू सूद भी हैं। वे फिल्‍म स्‍टार राज खन्‍ना की भूमिका में हैं। वे सोनू सूद के रूप में भी आ ताते तो दर्शक क्‍या कर लेते? उनकी फिल्‍म है। वे निर्माता हैं। किसी भी रूप में आएं। अफसोस यही है कि उनकी मौजूदगी फिल्‍म में कुछ जोड़ती नहीं है। यह फिल्‍म प्रभुदेवा के लिए देखी जा सकती है। उनकी कॉमिक टाइमिंग और डांसिंग स्‍टेप कमाल की है। उन्‍होंने इस फिल्‍म में पहली बार मुख्‍य किरदार यानी हीरो की भूमिका निभाई है। वे बुरे नहीं लगे हैं। तमन्‍ना देवी और रुबी के रूप में अपनी भूमिका निभा ले गई हैं। स्‍टार के सेक्रेटरी की भूमिका में मुरली शर्मा जंचे हैं।
फिल्‍म अतार्किक है। घटनाओं और प्रसंगों में सामंजस्‍य नहीं है। अच्‍छी बात है कि यह फूहड़ नहीं है।
अवधि- 126 मिनट
डेढ़ स्‍टार   

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