रोज़ाना : स्‍वरा की त्‍वरा



रोज़ाना
स्‍वरा की त्‍वरा
-अजय ब्रह्मात्‍मज

स्‍वरा भास्‍कर से पहली मुलाकात उनकी पहली फिल्‍म की शूटिंग के दरम्‍यान हुई थीं। प्रवेश भारद्वाज बिहार की पकड़ुआ शादी पर नियति नाम की फिल्‍म बना रहे थे। उस फिल्‍म की नायिका हैं स्‍वरा भास्‍कर। हैं इसलिए कि नियति अभी तक अप्रदर्शित है। प्रवेश भारद्वाज बिहार की पृष्‍ठभूमि की इस फिल्‍म की शूटिंग बिहार में नहीं कर सकते थे,इसलिए उन्‍होंने भोपाल में बिहार का लोकेशन खोजा था। प्रकाश झा ने तो बाद में अपनी फिल्‍मों में भोपाल को बिहार में तब्‍दील किया। स्‍वरा भास्‍कर 2009 में आई माधोलाल कीप वाकिंग में हिंदी दर्शकों को नजर आईं। इस छोटी फिल्‍म में वह पहचान बनाने में सफल रहीं। उसके बाद का उनका सफर धीमे कदमों से जारी रहा। पिछले दिनों जागरण फिल्‍म फेस्टिवल में उन्‍हें अनारकली ऑफ आरा के लिए सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेत्री का पुरस्‍कार मिला। उन्‍हें पिछले साल निल बटे सन्‍नाटा के लिए भी यही पुरस्‍कार मिल चुका है।
स्‍वरा भास्‍कर ऐसी छोटी व कथ्‍यपूर्ण फिल्‍मों में बतौर नायिका एक कदम धरती हैं तो उनका दूसरा कदम मेनस्‍ट्रीम कमर्शियल फिल्‍मों में सहनायिका की भूमिकाओं को संभाल रहा होता है। उनहोंने दोनों के बीच सुदर संतुलन बना रखा है। दमदार अभिनेत्री के तौर पर अपनी पहचान के साथ वह कायम हैं। ऐसा लगता है कि वह ग्‍लैमर की दुनिया का हिस्‍सा बन चुकी हैं,लेकिन फिल्‍मों के चुनाव की तरह स्‍वरा छवि और स्‍वभाव के दोनों पाटों को साध रही हैं। एक ग्‍लैमरस अभिनेत्री की सभी जरूरतों को वह जिम्‍मेदारी और संलग्‍नता के साथ निभाती हैं। साथ ही निजी जिंदगी में किसी दवि की परवाह नहीं करते हुए हर ज्‍वलंत मुद्दे पर आने विचार रखती हैं। हस्‍तक्षेप करती हैं और कई बार तो उनकी पहलकदमी फिल्‍म इंडस्‍ट्री के उनके मित्रों को झटका देती हैं। स्‍वरा स्‍वतंत्र स्‍वभाव की समर्थ अभिनेत्री हैं।
स्‍वरा की त्‍वरा देखते ही बनती है। फिल्‍मों में अपने किरदारों को निभाते समय उनके इस स्‍वतंत्र स्‍वभाव का स्‍पष्‍ट प्रभावव दिखता है। वे चालू किस्‍म के खांकों में बंधे किरदारों को भी नए आयाम दे जाती हैं,इसलिए सहेली और बहन के साधारण किरदारों को भी वह मानीखेज बना देती हैं। बतौर नायिका उनकी फिल्‍मों में एक-दो गलत चुनावों को नजरअंदाज कर दें तो उनमें एक पैटर्न देखा जा सकता है। उन्‍होंने संघर्षरत महिलाओं के किरदारों को स्‍वर दिया है। शहरी मध्‍यवर्गीय परिवेश में पली-बढ़ी स्‍वरा ने ने अपनी सोच-समझ के दायरे का विस्‍तार किया है। अनुभूति के स्‍तर पर वह ऐसी महिलाओं से जुड़ाव महसूस करती हैं। उनकी अदाकारी में इसके निशान खोजे जा सकते हैं। हिंदी फिल्‍मों की हीरोइनें को आम तौर पर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर खामोश रहती हैं। गूंगी हो जाती हैं,जबकि स्‍वरा की सोशल मीडिया पर सक्रिय और वाचाल रहती हैं। वह अपनी बात कहती हैं और जवाब भी देती हैं। 

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