पर्दे पर दर्द को जीने वाली मीना - अजय ब्रह्मात्‍मज

पर्दे पर दर्द को जीने वाली मीना 
- अजय ब्रह्मात्‍मज

महजबीन.. यह एक खूबसूरत लड़की का खूबसूरत नाम था, लेकिन वह लड़की स्वयं को खूबसूरत नही मानती थी। पतले चेहरे, गालो की उभरी हड्डियों और झुकी आंखों के कारण वह पूर्वी एशिया की लड़की लगती थी। दादी मां चिढ़ाने के लिए उसे चीनी लड़की कहती थी। मजाक में दिया यह नाम उससे चिपक गया और उसने लड़की के अंदर हीन भावना पैदा की। चार वर्ष की उम्र में वह पहली बार कैमरे के सामने आई। उसका नाम पूछा गया। उसने महजबीन बताया। यूनिट के लोगों ने मजाक किया, यह तो किसी मोटी और गबदी बेगम का नाम लगता है, इसलिए इस नाम से काम नही चलेगा। उसे मीना, प्रभा और कमला तीन नामों में से एक चुनने के लिए कहा गया। उसने मीना चुना और वह मीना कुमारी हो गई। 
किसी स्टार की तरह उसने शुरुआत में ही नखरे दिखाए। निर्देशक ने उसे बताया कि उसे दौड़कर डकैत द्वारा परेशान की जा रही अपनी मां के पास पहुंचना है और फिर धड़ाम से जमीन पर गिरना है। मीना के मन में प्रश्न आया कि वह गंदे फर्श पर क्यों गिरेगी? मान-मुनौव्वल का असर नही हुआ, लेकिन जब मां ने वादा किया कि क्रीम केक मिलेगा, तो तुरंत वह तैयार हो गई। बाद में चूल्हा जलता रहे, यह सोचकर मीना को फिल्मों में काम करने की अनुमति दी गई। हालांकि पिता ने विरोध किया, पर उन्हे अपनी पत्नी की व्यावहारिकता के आगे झुकना ही पड़ा। जल्द ही उनकी दोनो कम उम्र की बेटियां अपने नाजुक कंधों पर परिवार का बोझ ढोने लगी। अब मीना, मीना कुमारी हो चुकी थी।
मां की मौत के बाद उन्हे किताबो और कविताओ का ही सहारा रह गया। 1949 के आखिरी महीनों में वे एक पत्रिका पढ़ रही थीं। पत्रिका में एक व्यक्ति का जीवन-परिचय छपा था। उसके कार्यों से प्रभावित होकर मैं उसकी तरफ खिंचती चली गई कि वह कैसा लगता होगा? कुछ दिनों के बाद एक पत्रिका में कमाल अमरोही की तस्वीर दिखी। मेरी आंखो के आगे कुछ चमका और एक अहसास ने मुझे कंपकंपा दिया। मैं आशंकाओं से घिर गई। वही मेरे सपनो के देवता की तस्वीर थी। उसकी छवि मेरे दिल में अंकित थी.. ऐसा नही हो सकता, मै स्वयं को समझाती रही, लेकिन हमेशा अंदर से एक ही आवाज आती रही, मुझे पहचानने से नही डरो। मैं ही तुम्हारा अभीष्ट हूं। मैं तुम्हारी कल्पना मात्र नही हूं। आखिरकार मै हार गई और मैंने उस आवाज पर विश्वास कर लिया। मीना ने स्वीकार किया था।  
कमाल अमरोही जब सोहराब मोदी की फिल्म जेलर की कास्टिंग कर रहे थे, तब वे सात साल की एक लड़की के रोल के लिए मीना से मिलने उनके घर गए थे, उन्हे उस रोल के लिए मीना पसंद आई, लेकिन काम अंतत: किसी और लड़की को मिल गया। कमाल अमरोही महल मे भी मीना को नही ले सके थे। गौरतलब यह है कि महल मे मधुबाला ने काम किया था और वे रातोरात स्टार बन गई। मीना अपने सपनों के देवता के इंतजार में ही रह गई। तमाशा के सेट पर अशोक कुमार ने कमाल अमरोही से मीना का परिचय करवाया। बाद मे 15 फरवरी, 1952 को दोनो की शादी हो गई। कुछ वर्षो तक वे अपार खुशी मे सराबोर दिखी। उनकी दोस्त नादिरा ने कभी कहा था, उनके मन में अमरोही के प्रति अथाह आदर था। अगर मीना मर भी रही हो और कमाल कमरे में आ जाएं, तो वे उठकर बैठ जाती थीं। किसी को यकीन नही था कि वे कमाल साहब का घर छोड़कर कभी जाएंगी! अमरोही के घर से मीना का निकलना उनके प्रवेश की तरह ही नाटकीय था। एक दिन वे स्टूडियो आई और फिर नही लौटी। निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा ने कभी बताया था, हमारी रोज मुलाकात होती थी। उस दिन मीना ने अचानक पूछा, शर्मा जी एक औरत के लिए सबसे प्यारी चीज क्या होती है? थोड़ी देर सोचने के बाद मैने जवाब दिया, औलाद या जेवर। उन्होने फिर पूछा, यदि उसकी औलाद ही नही हो और उसे जेवरो का भी शौक न हो तो..? मुझे तुरंत कोई जवाब नही सूझा। फिर उन्होने बताया कि कमाल साहब ने उसे घर से जो चाहे लेकर निकल जाने को कहा है। यदि लौटकर जाऊंगी, तो वे मेरी टांगे तोड़ देंगे। वहां से मै क्या लेकर आती, सिर्फ इस एक चीज के अलावा? उन्होंने मुझे एक पॉकेट बुक दिखाया, जो मैने वर्षो पहले उन्हे भेट की थी। 
वे अपनी भावनाओं के अनुसार चली। अमरोही से उनका अलग होना उन्हे तोड़ गया। नादिरा ने बताया था, जब वे कमाल साहब के साथ थीं, तब एक सहमी और दबी हुई स्त्री थीं। वहां से निकलते ही उनके पंख निकल आए। उन्हे देखकर ऐसा लगता था कि वे कफन बांधकर निकली हैं। जैसे-जैसे उनका करियर गिरता गया, वे अपने काम के प्रति उदासीन होती चली गई। वे पढ़ने और शायरी करने मे समय बिताने लगी। पर एक समय यह भी आया कि वे चाहकर भी कुछ नही कर पाती थी। उनका लीवर खराब हो चुका था। उपचार के लिए उन्हे लंदन और स्विट्जरलैड ले जाया गया। डा1टरो ने उन्हे शराब पीने से मना किया था। कुछ समय तक वे शराब से दूर भी रही, लेकिन अधिक दिनों तक ऐसा नही चला। 
कमाल अमरोही जब सोहराब मोदी की फिल्म जेलर की कास्टिंग कर रहे थे, तब वे सात साल की एक लड़की के रोल के लिए मीना से मिलने उनके घर गए थे, उन्हे उस रोल के लिए मीना पसंद आई, लेकिन काम अंतत: किसी और लड़की को मिल गया। कमाल अमरोही महल मे भी मीना को नही ले सके थे। गौरतलब यह है कि महल मे मधुबाला ने काम किया था और वे रातोरात स्टार बन गई। मीना अपने सपनों के देवता के इंतजार में ही रह गई। तमाशा के सेट पर अशोक कुमार ने कमाल अमरोही से मीना का परिचय करवाया। बाद मे 15 फरवरी, 1952 को दोनो की शादी हो गई। कुछ वर्षो तक वे अपार खुशी मे सराबोर दिखी। उनकी दोस्त नादिरा ने कभी कहा था, उनके मन में अमरोही के प्रति अथाह आदर था। अगर मीना मर भी रही हो और कमाल कमरे में आ जाएं, तो वे उठकर बैठ जाती थीं। किसी को यकीन नही था कि वे कमाल साहब का घर छोड़कर कभी जाएंगी! अमरोही के घर से मीना का निकलना उनके प्रवेश की तरह ही नाटकीय था। एक दिन वे स्टूडियो आई और फिर नही लौटी। नादिरा ने ही बताया था। निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा ने कभी बताया था, हमारी रोज मुलाकात होती थी। उस दिन मीना ने अचानक पूछा, शर्मा जी एक औरत के लिए सबसे प्यारी चीज क्या होती है? थोड़ी देर सोचने के बाद मैने जवाब दिया, औलाद या जेवर। उन्होने फिर पूछा, यदि उसकी औलाद ही नही हो और उसे जेवरो का भी शौक न हो तो..? मुझे तुरंत कोई जवाब नही सूझा। फिर उन्होने बताया कि कमाल साहब ने उसे घर से जो चाहे लेकर निकल जाने को कहा है। यदि लौटकर जाऊंगी, तो वे मेरी टांगे तोड़ देंगे। वहां से मै क्या लेकर आती, सिर्फ इस एक चीज के अलावा? उन्होंने मुझे एक पॉकेट बुक दिखाया, जो मैने वर्षो पहले उन्हे भेट की थी।
वे अपनी भावनाओं के अनुसार चली। अमरोही से उनका अलग होना उन्हे तोड़ गया। नादिरा ने बताया था, जब वे कमाल साहब के साथ थीं, तब एक सहमी और दबी हुई स्त्री थीं। वहां से निकलते ही उनके पंख निकल आए। उन्हे देखकर ऐसा लगता था कि वे कफन बांधकर निकली हैं। जैसे-जैसे उनका करियर गिरता गया, वे अपने काम के प्रति उदासीन होती चली गई। वे पढ़ने और शायरी करने मे समय बिताने लगी। पर एक समय यह भी आया कि वे चाहकर भी कुछ नही कर पाती थी। उनका लीवर खराब हो चुका था। उपचार के लिए उन्हे लंदन और स्विट्जरलैड ले जाया गया। डा1टरो ने उन्हे शराब पीने से मना किया था। कुछ समय तक वे शराब से दूर भी रही, लेकिन अधिक दिनों तक ऐसा नही चला।
जब उन्हे पता चल गया कि अब आखिरी दिन बीत रहे है, तब उन्होंने अपने नौकरो का पूरा हिसाब किया, लेकिन बहन मधु से संबंध खराब हो गए। केदार शर्मा अभी भी उनके सलाहकार थे, लेकिन बीच मे दो वर्ष तक उनके बीच बोल-चाल बंद रही। उन्होंने उनसे सुलह कर ली।
मर्सीडीज कार मीना ने फैमिली डॉक्टर को दे दी, आप ले जाइए नही तो कोई और ले जाएगा। उनका स्वास्थ्य तेजी से गिरने लगा। 31 मार्च, 1972 शुक्रवार का दिन। मुसलिम होने के बावजूद उस दिन मीना ने घर पर हवन किया और माउंट मेरी चर्च गई। बाहर दुनिया ईसा मसीह के बलिदान को याद कर रही थी, जब लोग अस्पताल पहुंचे। वे दुनिया छोड़ने को तैयार नही थीं। शायद इसीलिए उन्होंने चीखकर कहा, मैं मरना नही चाहती। फिर अचानक सब कुछ शांत हो गया। उन्होंने बहन मधु की गोद में अंतिम सांसें ली। भारत की प्रसिद्ध अभिनेत्री अपनी मौत के समय बिल्कुल तनहा थीं। उन्होने स्वयं कभी कहा था- 
जिंदगी क्या इसी को कहते है
हम तनहा है और जां तनहा
हमसफर कोई गर मिले भी कही,
चलते ही रहे कहां कहां तनहा।

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