सिनेमालोक : कबीर सिंह के दर्शक


सिनेमालोक
कबीर सिंह के दर्शक
अजय ब्रह्मात्मज

पिछले शुक्रवार को रिलीज हुई ‘कबीर सिंह’ मूल फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ से अच्छा कारोबार कर रही है. ‘अर्जुन रेड्डी’ ने कुल 51 करोड़ का कारोबार किया था, जबकि ‘कबीर सिंह’ ने तीन दिनों के वीकेंड में 70 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है. अगले दो नहीं तो तीन दिनों में यह 100 करोड़ी क्लब में शामिल हो जाएगी. कारोबार के लिहाज से ‘कबीर सिंह’ कामयाब फिल्म है. जाहिर है इसकी कामयाबी का फायदा शाहिद कपूर को होगा. वे इस की तलाश में थे. पिछले साल ‘पद्मावत’ ने जबरदस्त कमाई और कामयाबी हासिल की, पर उसका श्रेय संजय लीला भंसाली दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह के बीच बंट गया था. ‘कबीर सिंह’ में शाहिद कपूर अकेले नायक हैं, इसलिए पूरे श्रेय कि वे अकेले हकदार हैं.
इस कामयाबी और शाहिद कपूर के स्टारडम के बावजूद ‘कबीर सिंह’ पर बहस जारी है. आलोचकों की राय में यह फिल्म स्त्रीविरोधी और मर्दवादी है. पूरी फिल्म में स्त्री यानि नायिका केवल उपभोग (कथित प्रेम) के लिए है. फिल्म के किसी भी दृश्य में नायिका प्रीति आश्वस्त नहीं करती कि वह 21वीं सदी की पढ़ी-लिखी मेडिकल छात्र हैं, जिसका अपना एक करियर भी होना चाहिए. मुग्ध दर्शकों को नायिका के इस चित्रण पर सवाल नहीं करना है? उन्हें ख्याल भी नहीं होगा कि वह स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में क्यों नहीं उभरती हैं? फिल्म के आरंभिक संवाद में ही नायक घोषणा करता है कि ‘प्रीति मेरी बंदी है’. ‘बंदी’ का एक अर्थ लड़की है लेकिन उसका दूसरा शाब्दिक/लाक्षणिक अर्थ ‘कैदी’ भी तो है. पूरी फिल्म में वह कैदीद ही नजर आती है. कभी कबीर सिंह की तो कभी अपने पिता की. इन दोनों के बाद वह परिस्थिति की भी कैदी है. लेखक-निर्देशक ने उसे गर्भवती बनाने के साथ पंगु भी बना दिया है. कबीर से अलग होने के बाद वह मेडिकल प्रैक्टिस भी तो कर सकती थी.
फिल्म के समर्थकों का आग्रह है कि कबीर सिंह के किरदार को पर्दे पर जीवंत करने के लिए शाहिद कपूर की तारीफ की जानी चाहिए. फिल्म के शिल्प और सभी तकनीकी पक्षों पर भी बातें होनी चाहिए. इस आग्रह में बुराई नहीं है, लेकिन हमें यह भी सोचना चाहिए कि क्या ऐसे (खल)नायक की सराहना होनी चाहिए. साहित्य और फिल्मों में इसे हम ‘एंटी हीरो’ के नाम से जानते हैं. फिल्म का ऐसा नायक जिसमें नेगेटिव और ग्रे शेड हो. हॉलीवुड की फिल्मों में एंटी हीरो’ का अच्छा-खासा ट्रेडिशन रहा है. हिंदी फिल्मों में भी ‘एंटी हीरो’ का क्रेज रहा है अमिताभ बच्चन का फिल्मी विशेषण ‘एंग्री यंग मैन’ इसी ‘एंटी हीरो’ का पर्याय था. अनिल कपूर,शाह रुख खान और अन्य अभिनेताओं ने भी ‘एंटी हीरो’ के किरदार निभाए हैं.
गौर करें तो हिंदी फिल्मों में एंटी हीरो के पीछे सलीम-जावेद तर्क ले लिए आते थे. नायक के साथ हुए अन्याय की पृष्ठभूमि रहती थी, जिसमें उसकी नेगेटिव और गैरकानूनी गतिविधियां उचित लगती थीं. सारे चित्रण और ग्लेमर के बावजूद फिल्म के अंतिम दृश्य में एंटीहीरो को अपराध बोध और पश्चाताप से ग्रस्त दिखाया जाता था. उसे ग्लानि होती थी. वह अपने लिए और अपनी गलतियों के लिए अफसोस जाहिर करता था. भारतीय शास्त्रों, नाटकों और सिनेमा में खलनायकों को गरिमा प्रदान नहीं की जाती है. उन्हें रोमांटिसाइज़ नहीं किया जाता. ‘कबीर सिंह’ का नायक किसी ग्लानि में नहीं आता. उसे अपनी करतूतों पर पश्चाताप भी नहीं होता है. वह लड़कियों को महज उपभोग की वस्तु समझता है. चाकू की नोक पर उनके कपड़े उतरवाता है. डॉक्टर दोस्तों के मरीजों से हवस मिटाता है. प्रेमिका के विछोह में वह व्यभिचारी हो जाता है. ताज्जुब यह है कि  दर्शक उसे पर्दे पर देखकर लहालोट हो रहे हैं. तालियां बजा रहे हैं. सोशल मीडिया पर उसके पक्ष में तर्क के गढ़ रहे हैं.
‘कबीर सिंह’ के प्रशंसकों और समर्थकों को लगता है कि शाहिद कपूर ने अपने कैरियर का सर्वश्रेष्ठ अभिनय इस फिल्म में किया है. अभिनय की श्रेष्ठता और उदात्तता की सभी परिभाषाओं को भूलकर वे इस किरदार से मोहित हैं. देर-सबेर इस फिल्म की कामयाबी का सामाजिक अध्ययन होगा. कारण खोजे जाएंगे कि 2019 के जून में क्यों ‘कबीर सिंह’ जैसी फिल्म दर्शकों को पसंद आई. कारण स्पष्ट है. हमारा समाज जिस तेजी से पुरुष प्रधानता को प्रश्रय दे रहा है और उसकी बेजा हरकतों को उचित ठहरा रहा है. जिस देश में दिन-रात बलात्कार हो रहे हैं. अपराधियों को सजा नहीं मिल पा रही है. जिस समाज में बेटियों की भ्रूण हत्या से लेकर दहेज हत्या तक आम है, गली मोहल्लों में लड़कियों पर भद्दी टिप्पणियां और इशारे करने में युवकों को गुरेज नहीं होता... उस समाज और देश में ‘कबीर सिंह’ की जलील और अश्लील हरकतों में कोई खामी क्यों दिखेगी?
आज ऐसे किरदार का नाम कबीर रखा गया है. कल राम,कृष्ण, मोहम्मद, यीशु,विवेकानंद,बुद्ध, गाँधी,नानक भी हो सकता है. जब पूरा जोर कमाई और कामयाबी पर हो तो क्रिएटिव कर्तव्य की कौन सोचे?


Comments

Akshat-vishal said…
Bahut hi sahi vishleshan, main un mahilaon ki pratikriya janana chahunga jinhe yeh kahani aur nayak ka charitrey behed pasand aaya hai.

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