सिनेमालोक : परतदार और समकालीन दस्तावेज है ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’


सिनेमालोक
परतदार और समकालीन दस्तावेज है ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले हफ्ते अनुराग कश्यप की फिल्म ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’ ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज हुई. फिलहाल निर्माता-निर्देशकों ने फिल्मों के रिलीज के लिए ओटीटी का रास्ता चुन लिया है. इस तथ्य से मल्टीप्लेक्स मालिक नाराज हैं. उनकी नाराजगी एक तरफ... समस्या यह है कि ‘कोरोना काल’ में पूर्णबंदी और उसके बाद की बरती जा रही सावधानियों का ख्याल रखते हुए फिल्मों की आउटडोर गतिविधियां ठप हो गई हैं. ऐसी स्थिति में तैयार फिल्मों को लंबे समय तक रिलीज से रोकना मुमकिन नहीं है. विकल्प की तलाश थी. इसी वजह से चोक्ड:पैसा बोलता है’ के बाद इस हफ्ते शूजीत सरकार की ‘गुलाबो सिताबो’ रिलीज की कतार में है. परंपरा के मुताबिक ओटीटी प्लेटफार्म पर भी फिल्में शुक्रवार को ही रिलीज की जा रही है.
अनुराग कश्यप की ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’ परतदार फिल्म है. यह फिल्म एक साथ कई स्तरों पर चलती है. कुछ का विस्तार करती है तो कुछ का केवल संकेत देती है. यह दंपति की कहानी है, जिनका एक 8 साल का बेटा है. पत्नी बैंक में काम करती है और पति फिर से काम की तलाश में है. वह म्यूजिशियन है और उसी फिल्ड में कुछ करना चाहता है. पत्नी गायकी के टैलेंट शो में प्रतियोगी रह चुकी है. अभी वह पति के सपनों के लिए अपने सपने का त्याग कर देती है. आम मध्यवर्गीय महिलाओं की तरह वह खुद सारी जिम्मेदारी उठा लेती है. उसे दफ्तर के साथ घर का भी काम करना पड़ता है. पति की लापरवाही और खुद की परेशानी से वह घर आते ही एक ही खीझ में रहती है. उसकी स्वाभाविक इच्छा है कि पति जल्दी से किसी रोजगार में लग जाए. साथ ही घर के काम में भी हाथ बटाए.
पति मलयाली है सुशांत पिल्लई और पत्नी मराठी है सरिता सहस्त्रबुद्धे. टैलेंट शो में ही दोनों की मुलाक़ात हुई थी. आत्मीयता बढ़ी और फिर दोनों ने शादी कर ली. फिल्म उनके रोमांस से अधिक उनकी आज की परेशानियों के इर्द-गिर्द रहती है. गौर करने की बात है कि दोनों की खीझ और नाराजगी में अपनी-अपनी मातृभाषा मलयाली और मराठी का इस्तेमाल करते हैं. यह मुंबई का 21वीं सदी का आधुनिक परिवार है, जिसमें पति-पत्नी दो प्रदेशों के हैं. सिर्फ एक रेफरेंस आता है कि सुशांत के माता-पिता थोड़े गरीब हैं. मुंबई और देश में ऐसे अनेक दंपति मिल जाएंगे जो दो प्रदेशों के होते हैं और उनकी मातृभाषाएं अलग होती हैं. वर्ग और आर्थिक स्थिति के अनुसार उनके बीच की समपर्क भाषा हिंदी या अंग्रेजी हो जाती है. वही उनके बच्चों की भाषा बनती है. मां-बाप ने रूचि और मेहनत की तो वे माता-पिता की भाषाएं भी समझने और बोलने लगते हैं.
‘चोक्ड:पैसा बोलता है’ का मध्यवर्गीय परिवार फ्लैट में रहता है. ऐसा लगता है कि महाडा की कॉलोनी है. मुंबई की किसी आम और मध्यवर्गीय सोसाइटी तरह सभी एक-दूसरे की मदद और कानाफूसी करते हैं. मुंबई के ऐसे परिवार और परिवेश हिंदी फिल्मों में कम दिखाई पड़ते हैं. पैरेरल सिनेमा के दौर में सईद मिर्जा और कुछ अन्य फिल्मकारों ने जरूर बेहतरीन प्रयास किए थे. इन दिनों तो अपराधी गैंग,संपन्न परिवार और कभी-कभी भिंडी बाजार व मोहम्मद अली रोड दिखा दिए जाते हैं. नीम रोशनी के इस परिवेश में किरदारों के चेहरे और परिधान मलिन होते हैं. उनकी चिंताएं आर्थिक और परस्पर समबन्ध तनावपूर्ण होते हैं. इधर मान लिया गया है कि दर्शक ऐसे परिवेश की कहानियां नहीं देखना चाहता. वह पर्दे पर केवल चमक-दमक और चकाचौंध देखना चाहता है.
यह फिल्म देश के समकालीन जीवन और राजनीति पर टेक लेती है. सभी जानते हैं कि 2016 में नोटबंदी लागू हुई थी. नोटबंदी से हुए नुकसान और फायदे के अपने-अपने तर्क दिए जाते हैं, लेकिन देश की आर्थिक स्थिति के बदलाव में नोटबंदी की बड़ी भूमिका है. फिल्म के निर्देशक के लिए वह कहानी का एक रेफरेंस है. हां, उनके किरदारों खासकर मुख्य किरदार सरिता सहस्त्रबुद्धे की टिप्पणियों पर ध्यान दें तो वह मौका मिलते ही व्यंग्य करने से बाज नहीं आती. पति समझ नहीं पाता कि और सरिता से पूछता भी है कि तुम मोदी जी से क्यों नाराज रहती हो? वह कोई जवाब नहीं देती लेकिन पति को निशाना कर फिर से तंज करती है.
अनुराग कश्यप की यह फिल्म अपने समय का दस्तावेज है. हिंदी फिल्मों में समकालीन सच्चाइयों को दिखाने से बचने की प्रवृत्ति रही है. अनुराग ने एक कोशिश की है.


Comments

मनीषा said…
सही कहा आपने कि ये एक सामयिक रचना है। अपनी समकालीन स्थितियों को दिखाना ही इतिहास बनाता है। भाद के वर्षों में ये सब पढ़ा, देखा और समझा जायेगा। मैंने हाल में अपने हिंदी ब्लॉग हिंदीडायरी.कॉम पर फिर से काम करना शुरु कर दिया है। अगर आप हिंदी मे पढ़ने के शौकीन हैं तो एक बार जरूर पधारें।

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