सिर्फ भाई ने किया सपोर्ट - वरुण धवन


-अजय ब्रह्मात्मज
-‘बदलापुर’ हमें बिग बी के एरा वाली फिल्मों की याद दिलाएगी कि नायक को फ्लैशबैक में अपनों से दूर करने वाला शख्स दिखता था। नायक का खून खौलता और वह फिर बदला लेकर ही मानता था?
आपने सही कहा, क्योंकि फिल्म के डायरेक्टर श्रीराम राघवन अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े फैन हैं। इत्तफाकन बच्चन साहब की ढेर सारी फिल्में रिवेंज पर बेस्ड रही हैं, मगर ‘बदलापुर’ से हम रिवेंज ड्रामा का पैटर्न तोडऩा चाहते हैं। मिसाल के तौर पर आप अखबार में पढ़ते हो कि एक पति ने पड़ोसी से अफेयर की आशंका में अपनी पत्नी को चाकू से गोद दिया। या फलां अपराधी ने एक मासूम को एक-दो नहीं बीसियों बार तलवार या दूसरे धारदार हथियार से नृशंसतापूर्वक मारा। कोई इस किस्म की नफरत से कैसे लैस होता है, हमने उस बारे में फिल्म में पड़ताल करके बताया है। फिल्म का नायक रघु कुछ उसी तरीके से अपनी पत्नी के हत्यारों का खात्मा करता है। उसका तरीका सही है। फिल्म के अंत में हमने एक मोरल लेसन भी दिया है कि क्या ‘आंख के बदले आंख’ के भाव को न्यायोचित है। हर किरदार परतदार है। हम किसी को एकदम से राइट या रौंग करार नहीं दे सकते।
-‘बदलापुर’ टाइटिल ही रखने की खास वजह? कोई जगह है, जहां फिल्म सेट है या फिर कोई और बात है?
जी हां, फिल्म में बदलापुर एक जगह है, जहां नायक रघु रहता है। दूसरी वजह यह भी है कि फिल्म बदले पर बेस्ड है तो उसका नाम बदलापुर रखा गया है। साथ ही हर किरदार अच्छे से बुरा, बुरा से बढिय़ा, मासूम से निर्मम शख्स में तब्दील होता रहता है तो इसलिए भी फिल्म का टाइटिल बदलापुर है।
-कैरेक्टर क्रिएशन कितना आसान या चुनौतीपूर्ण रहा?
यह देखने में सिंपल रिवेंज ड्रामा लगे, लेकिन ऐसा नहीं है। मैंने श्रीराम से तीन-चार की नैरेशन में इस फिल्म व अपने किरदार को समझा। फिल्म रोलिंग टाइटिल से शुरू भी नहीं होती। सेंसर बोर्ड का सर्टिफिकेट दिखते ही फिल्म की कहानी शुरू हो जाती है। यह काफी सीरियस फिल्म है। उन्होंने अपने पसंदीदा विजय आनंद और हिचकॉक जैसे फिल्मकारों को इस फिल्म से होमेज दिया है। हम कहते रहते हैं कि लोग काफी प्रोग्रेसिव हो गए हैं। यूथ काफी परिपक्व हो गई है, लेकिन वे इस फिल्म को कैसी प्रतिक्रिया देते हैं, उससे उनकी मैच्योरिटी झलकने वाली है।
- जी हां, श्रीराम की यह खासियत ही कह सकते हैं कि उन्होंने खुद को थ्रिलर से भटकने नहीं दिया?
जी। उन्होंने काफी प्योर थ्रिलर बनाई है। थ्रिलर के लिए दरकार चीजों को काफी अनुशासनात्मक तरीके से फिल्म में पिरोया है। उस किस्म की प्योरिटी व डिसिप्लिन मुझमें पहले नहीं था।
- आप के इस चयन पर जानकार भी हतप्रभ हैं। आप के एक परिचित ने भी बीते दिनों कहा कि करियर के इस मोड़ पर वरुण को यह फिल्म नहीं करनी चाहिए थी?
जी हां। मेरे भी ढेर सारे दोस्तों ने कहा है कि इतने शुरूआती स्तर पर मुझे यह फिल्म नहीं करनी चाहिए थी। पिताजी के दोस्तों ने, पिताजी खुद ने मुझसे कहा कि यह फिल्म नहीं करनी चाहिए थी। दरअसल बहुत कम लोग जानते हैं कि मैंने यह फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ के बाद साइन की थी। बहरहाल मैं एक एक्टर हूं। मेरा बुनियादी फर्ज लोगों को एंटरटेन करना है। उन्हें नया देना है। मुझे अपने इमेज के हिसाब से काम करना होता तो मैं अपने असल उम्र के नायक की भूमिका में कोई डार्क फिल्म करता, लेकिन ‘बदलापुर’ के नायक रघु की एक यात्रा है, जो नयापन लिए हुए है। फिर मैंने तीन साल अदाकारी के जो विविध आयाम बैरी जॉन के यहां सीखे, उन्हें इस किरदार में उड़लेने का मौका मिला, जिसे मैं खोना नहीं चाहता था। फिर इस फिल्म में सह-कलाकार भी मुझे टक्कर वाले मिले, जिनके संग काम कर नई चीजें सीखने को भी मिलीं।
- तो कभी ऐसी फीलिंग आती है कि सामने नवाजुद्दीन सिद्दिकी जैसे कद्दावर कलाकार हों तो उन्हें कंपीट करना है?
कंपीट तो नहीं, लेकिन यह भाव रहता है कि मैं कहीं सीन का स्तर कमतर न कर दूं। घबराहट होती थी उनके सामने। एक्टर के तौर पर वे हैं ही इतने कमाल के। वे जब सीन में होते हैं तो एकदम से किरदार मोहम्मद लायक तुगलेकर ही बन जाते हैं। वे जमीन पर बैठ जाते हैं। दिए गए सीन को जान लगाकर निभाते हैं। उन्हें देख मैं भी रघु बन जाता था। सिर्फ यही इरादा बन जाता कि रघु के तौर पर मुझे लायक से बेइंतहा नफरत करनी है। उन्हें पीटना-मारना है। हम दोनों के तार पहले दिन से ही बैठ गए। इस पिक्चर में हम दोनों कपल हैं।
-‘बदलापुर’ करने के लिए सबने आप को मना किया। आप के बड़े भाई की क्या राय थी?
सिर्फ वे ही सपोर्टिव थे। उन्होंने कहा कि ‘बदलापुर’ जरूर करो, क्योंकि उनको विश्वास था कि मैं रघु को निभा लूंगा। उन दिनों वे अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट लिख रहे थे तो उनकी दाढ़ी  बढ़ी हुई थी। मुझे विचार कौंधा कि रघु के बढ़े हुए ऐज का लुक वैसा ही रहेगा।
- आपने कहा कि हर किरदार के कार्य-कारण की ठोस वजह है। यानी विलेन की करतूतें भी जायज हैं?
यही तो इस फिल्म की यूएसपी है कि फिल्म में कौन विलेन है वह लोगों को तय करना होगा। रघु विलेन है या लायक, वह आप विभेद नहीं कर सकते। जब हम किसी आतंकी की बैक स्टोरी पता करते हैं तो मालूम पड़ता है कि उसने जान-बूझकर हथियार नहीं उठाए। मुझे हैरानी होती है कि लोग आतंकी क्यों बनते हैं? मैं यह नहीं कहता कि वे दया के पात्र हैं, लेकिन उनके खूनी बनने की वजहों की पड़ताल भी जरूरी है। तो हमने ऐसे सवालों के जवाब इस फिल्म में दिए हैं। मेरे ख्याल से यह फिल्म लोगों को प्रेरित करेगी कि अगर कोई क्रिमिनल बन रहा है तो उसे रोक लें।
- आपने यह फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ के टाइम पर ही साइन की। फिर आज की तारीख में उसके आने की खास वजह?
‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ के तुरंत बाद ‘मैं तेरा हीरो’ और ‘हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया’ आ गई थी। मैं ‘बदलापुर’ को करने में वक्त लेना चाहता था, क्योंकि यह अलग किस्म की फिल्म है। मैंने कहानी समझने और किरदार को गढऩे में आठ से नौ महीने का वक्त लिया। रघु लोअल मिडिल क्लास फैमिली से बिलौंग करता है, जो असल में मैं नहीं हूं। ऐसे में उसकी जीवनशैली समझने के लिए श्रीराम राघवन ने मुझे 20-25 दिन मुंबई के पास ईगतपुरी इलाके में रहने को कहा। मुझसे दसियों दिन न नहाने को कहा गया। डार्क, डिप्रेसिंग कहानियां पढऩे, समझने को कहा गया। तब जाकर मैं शायद इस लायक बना कि रघु को बेहतर तरीके से निभा सकूं। मैंने उसके लिए अपनी आवाज तक बदली है। लिहाजा फिल्म अब आ रही है।



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