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महानतम क्रांति है ब्लॉग-शेखर कपूर

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मशहूर फिल्मकार शेखर कपूर नियमित रूप से ब्लॉग लिखते हैं.उन्होंने अपने ब्लॉग पर इसके महत्व के बारे में लिखा है...मेरे विचार से ब्लॉग हमारे समय की महानतम क्राति है.अभी तो हम इसकी परिधि ही देख सके हैं.अपनी बात रखने का यह परम लोकतांत्रिक माध्यम है.यह अपने संविधान से मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ही नया रूप है.आप अपनी बात नहीं कह सकते तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या अर्थ रह जाता है. निहित स्वार्थ से नियंत्रित मीडिया का विकल्प है यह...मुझे ब्लॉग लिखने में आनंद आता है.मैं पूरी दुनिया से सीधे संबंध स्थापित कर लेता हूं और वह भी दोतरफा...

आमिर खान के ब्लॉग से

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कल से आगे ... मुझे लगता है कि तारे जमीं पर के बैकग्राउंड संगीत का काम ठीक चल रहा है. हमलोगों ने अ।श्चर्यजनक तरीके से तेज काम किया. और हमलोगों ने लाइव रिकार्डिंग भी की. फिल्मों में पिछले 15 सालों से ... जी हां, 15 सालों से ऐसी रिकार्डिंग नहीं की जा रही है. अ।पको बताऊं, जब हमलोग बैकग्राउंड संगीत डालते हैं तो सबसे पहले कोई दृश्य/प्रसंग लेते हैं, फिर तय करते हैं कि उस दृश्य में संगीत कहां से अ।रंभ हो और उसे कहां खत्म हो जाना चाहिए ... और क्या बीच में हम कोई बदलाव भी चाहते हैं... अ।दि..अ।दि. यह सब तय होने के बाद, और क्रिएटिव की स्पष्टता होने के बाद रिकार्डिंग अ।रंभ होती है. अ।जकल यह तकनीकी प्रक्रिया हो गयी है. सारे कीबोर्ड कंप्यूटर से जुड़े होते हैं और कंप्यूटर पर फिल्म डाल दी जाती है. उस पर अ।रंभ बिंदु लगा देते हैं, एक ग्रिड तैयार हो जाता है, संगीत की गति ग्रिड की लंबाई से तय होती है ... इसका मतलब ढेर सारा काम गणितीय ढंग का होता है. यह सब कंप्यूटर के अ।विष्कार से हुअ। है. मेरी राय में यह कार्य करने का स्वाभाविक तरीका नहीं है, लेकिन निश्चित ही नियंत्रित और व्यावहारिक तरीका है. इसे सिक्वेसिं

मनोरमा सिक्स फीट अंडर

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रियल सिनेमा है मनोरमा सिक्स फीट अंडर =अजय ब्रह्मात्मज नाच-गाना, विदेशी लोकेशन, हीरो-हीरोइन के चमकदार कपड़े, बेरंग रोमांस से ऊब चुके हों और चाहते हों कि कुछ रियल सिनेमा देखा जाए तो आप मनोरमा सिक्स फीट अंडर देखने जा सकते हैं। अपने देश के गांव-कस्बों और छोटे शहरों की कहानियां ऐसी ही होती हैं। मनोरमा ़ ़ ़ मध्यवर्गीय परेशानियों और आकांक्षाओं की फिल्म है। युवा निर्देशक नवदीप सिंह ने कुछ अलग कहने और दिखाने की कोशिश की है। राजस्थान के छोटे से शहर लाखोट में रह रहे सत्यवीर (अभय देओल) के जीवन में कोई उमंग नहीं है। वह सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर है। मामूली सी नौकरी, सरकारी क्वार्टर, चखचख करती बीवी और कुछ ज्यादा ही जिज्ञासु पड़ोसी से ऊब चुका सत्यवीर जासूसी कहानियां लिखने में सुख पाता है। उसे रियल जासूसी का एक आफर मिलता है तो इंकार नहीं कर पाता। स्थानीय नेता और पूर्व महाराज पीपी राठौड़ की बीवी उसे अपने पति के खिलाफ जासूसी के लिए लगाती है। बाद में पता चलता है कि वह औरत तो पीपी राठौड़ की बीवी ही नहीं थी। पूरा मामला उलझता है और उसे सुलझाने के चक्कर में सत्यवीर और ज्यादा फंस जाता है। नए अभिनेताओं

ढोल

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-अजय ब्रह्मात्मज प्रियदर्शन की फिल्मों का एक ढर्रा बन गया है। ढोल भी उसी ढर्रे की फिल्म है। फिल्म में एक ही नयापन है कि कुणाल खेमू पहली बार कामेडी करते नजर आए और निराश भी नहीं करते। शरमन जोशी, तुषार कपूर और राजपाल यादव फिल्म में घिसे-पिटे किरदारों में खुद को दोहराते हैं। लंपट और मूर्ख नौजवानों के अमीर बनने की ख्वाहिश पर इस बीच आधा दर्जन फिल्में आ चुकी हैं। इन फिल्मों का हास्य अब फूहड़ता की सीमा में प्रवेश कर चुका है। फिर भी भद्दे मजाक, उल्टे-सीधे प्रसंग और कामेडी की कसरत देखते हुए दर्शक हंस ही देते हैं। वास्तव में कामेडी फिल्में दर्शकों को पहले से उस मनोदशा में ले जाती हैं, जहां हाथ का इशारा भी गुदगुदी पैदा करता है। हिंदी फिल्मों के निर्माता-निर्देशक इसी का बेजा फायदा उठा रहे हैं, लेकिन ढोल जैसी फिल्में कामेडी की पोल खोल रही हैं। सावधान हो जाएं प्रियदर्शन और उन जैसे अन्य निर्देशक।

मैं जिंदा हूं, हां जिंदा हूं-आमिर खान

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बुधवार, 19 सितंबर, 2007 अ।उच! 2000 से ज्यादा पोस्ट मिले अ।पके. लगता है मेरी मुश्किलें बढ़ेंगी. फिर भी यही कहूंगा कि नंबर बढ़ता देख खुशी होती है. सभी को मेरा हेलो! इतने दिनों तक गायब रहा. अ।पसे कटा महसूस करता रहा, खासकर जब देखता हूं कि अ।प हूं कि अ।प मेरे बगैर भी अपने काम में मशगूल हैं. लगता है कि मैं पीछे छूट गया. सोच रहा हूं कि पहले अ।पके पोस्ट पढूं या अपना पोस्ट लिखूं... अभी पूरी नहीं पढ़ पाया हूं. कुछ पन्नों को पढ़ कर ही लग रहा है कि मजेदार चीजें छूट रही थीं. ठीक है, मैं अपना काम जल्दी कर लूं. मैं अभी ब्रुसेल्स में हूं... मुंबई के रास्ते में. एक सम्मेलन के सिलसिले में 4-5 दिन अमेरिका में था. मैं वादा करता हूं कि तारे जमीं पर का पहला क्रिएटिव मेरे ब्लॉग पर अ।एगा. अ।प लोग सबसे पहले उसे देखेंगे. अ।ज कल मैं उसी पर काम कर रहा हूं. शंकर... अ।पको अपने ब्लॉग पर देखकर खुशी हो रही है. पंचगनी में सब कुछ रहा. दोस्तों मशहूर शंकर एहसान लॉय के शंकर की बात कर रहा हूं. शायद अ।प सभी को मालूम होगा कि वे ही तारे जमीं पर के संगीतकार हैं. शंकर पंचगनी की याद दिला रहे हैं. हमलोग तारे जमीं पर के बैकग्राउंड

शुक्रवार,२१ सितंबर

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माफ़ करें -चवन्नी ने आप से वादा किया था कि हर शुक्रवार को आप से बात करेगा]लेकिन अगले ही हफ्ते उसे मुम्बई से बाहर निकलना पड़ा.कुछ ऐसी व्यस्तता रही कि चाह कर भी चवन्नी कुछ लिख नही सका.एक माफ़ी तो मिल ही सकती है।इस हफ्ते कई बड़ी बातें हुईं.सांवरिया और ओम शांति ओम फिल्मों के मुजिक रिलीज हुए.बड़ा जलसा रहा .सांवरिया में दोनों कपूर परिवार मौजूद था तो ओम शांति ओम में शाहरुख़ खान का जलवा था.अजीब बात है कि दोनों फ़िल्में एक ही दिन रिलीज हो रही है.चवन्नी के पाठकों में से ज़्यादातर पहले दिन सांवरिया देखने की योजना बाना राहे हैं। आज ३ फ़िल्में रिलीज हुई हैं.मनोरमा सिक्स फीट अंडर,ढोल और लायंस ऑफ पंजाब रिलीज हुई हैं.इनमें से नवदीप सिंह की की मनोरमा उल्लेखनीय आर दर्शनीय फिल्म है.समाज के काले और अंधेरे सच को नवदीप ने वास्तविकता के साथ चित्रित किया है.ढोल जैसी दर्जनों फिल्में आप देखा चुके हैं,इसलिए चवन्नी की राय है कि मनोरमा ही देखने जाएं.लायंस ऑफ पंजाब चवन्नी के पाठकों की फिल्म नहीं है.वैसे भी वह अंग्रेजी में बनी है.इधर मल्टीप्लेक्स आने से अंग्रेजी सिनेमा कं दर्शक बढ़े हैं.चवन्नी वैसे दर्शकाें की परवाह

दरअसल...कॉमेडी का गिरता स्तर

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-अजय ब्रह्मात्मज कॉमेडी फिल्मों का बाजार गर्म है। दर्शक देख रहे हैं, इसलिए निर्माता-निर्देशकों को कॉमेडी फिल्मों में मुनाफा दिख रहा है। दरअसल, आजकल निर्माता कॉमेडी फिल्मों में निवेश के लिए तैयार हो जाते हैं। डेविड धवन, प्रियदर्शन, इंद्र कुमार और नीरज वोरा सरीखे निर्देशकों की चांदी हो गई है। किसी निर्देशक ने एक भी सफल कॉमेडी फिल्म बना ली है, तो उसे प्रोड्यूसर और एक्टर की दिक्कत नहीं होती। पहले कॉमेडी फिल्मों में कॉमेडियन की जरूरत पड़ती थी। बाद में संजीव कुमार, धर्मेद्र और अमिताभ बच्चन ने अपनी फिल्मों में कॉमेडी की और धीरे-धीरे वे ऐसी फिल्मों के नायक भी बन बैठे। पिछले एक दशक में सारे एक्टर कॉमेडी में किस्मत आजमा चुके हैं। हर तरफ हंसी बिखेरी जा रही है। तर्क दिया जा रहा है कि सोसायटी में इतना टेंशन है कि दर्शक रिलीफ के लिए सिनेमाघर में आता है। अगर वहां भी दर्शकों की लाइफ का टेंशन ही चित्रित किया जाए, तो उन्हें क्या खाक मजा आएगा? एक जमाना था, जब हिंदी की रोमांटिक और सामाजिक फिल्मों में कॉमेडी ट्रैक रखे जाते थे। तब के डायरेक्टर यह मानते थे कि तीन घंटे की फिल्म देखते समय दर्शकों को थोड़ी रा

काटी चिकोटी दीया के...

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चवन्नी चटखारे लेने के लिए यह सच्चा किस्सा नही सुना रहा है.हुआ यों कि संजय गुप्ता गोआ में अपनी नयी फिल्म अलीबाग की शूटिंग कर राहे थे.आम तौर पर आउटडोर शूटिंग में पारिवारिक माहौल रहता है.आप ने सुना भी होगा,फिल्म स्टार अपनी बातचीत में हमेशा कहते हैं कि फैमिली जैसा माहौल था.ऐसे ही फैमिली माहौल में दिन भर kee शूटिंग से थकी-हारी दीया मिर्ज़ा स्वीमिंग पुल में नहा रही थीं.पानी थकान दूर करता है.उन्हें क्या पता था कि स्वीमिंग पुल में आदमी की शक्ल में मगरमच्छ घुस आया है.रोहित राय नाम है इस मगरमच्छ का.दीया आराम से पानी के छापाके ले रही थीं,तभी पीछ्हे से रोहित राय आये और उनहोंने दीया मिर्ज़ा के नितम्ब में चिकोटी काट ली.दीया समझ नही पायीं.दीया ने विरोध किया और पुल से निकल आयीं.उनहोंने शोर तो नही मचाया ,लेकिन यह बात फैल गयी.चश्मदीद लोगों ने पूछा तो बेशर्म रोहित ने कह कि दीया के नितम्ब में है क्या कि मैं चिकोटी काटूंगा। चवन्नी इस प्रसंग के जरिये आप को बताना चाहता है कि फिल्म इंडस्ट्री की हीरोइनें भी सुरक्षित नही है.उन्हें आये दिन हीरो,निर्माता और निर्देशक के हवस का शिकार होना पड़ता है.आश्चर्य है कि

देव डी का आइडिया-अनुराग कश्यप

अब चूंकि घोषणा हो चुकी है ... इसलिए मुझे बता ही देना चाहिए ... मैं नवंबर में देव डी अभय देओल के साथ बना रहा हूं। हमलोग पिछले साल से ही इस फिल्म के निर्माण की कोशिश में हैं, लेकिन कोई भी हाथ लगाने को तैयार नहीं है , क्योंकि इंडस्ट्री में प्रस्ताव बनते हैं ़ यहां फिल्में नहीं बनतीं ़ ़ ़ शुरू में मैं भी इस फिल्म को लेकर उतना गंभीर नहीं था, क्योंकि मैं अपना तथाकथित बाजार खराब नहीं करना चाहता था, जो अभी-अभी मेरे लिए खुला है ़ ़़ ़ मैं जिससे भी मिला, एक ही बात सुनने को मिली ़ ़ ़ अभय बहुत नैचुरल एक्टर है, लेकिन वह बिकता नहीं ़ ़ ़ मेरा जवाब होता था कि हम देवदास बेच रहे हैं, अभय नहीं ़ ़ ़ क्या भारतीयों के बीच देवदास नहीं बेच पाएंगे? क्या बात कर रहे हैं ? लेकिन वे अपनी जिद पर अड़े रहते ़ ़ ़ मैंने उन्हें नहीं बताया कि मेरी फिल्म में ' मिट्टी वजन मार्डीं' और 'हवाएं ' जैसी फिल्में कर चुकी पंजाबी अभिनेत्री पारो का रोल करेगी ़ ़ ़ देवदास के बारे में हमारी टेक से वे चौंक सकते थे ़ ़ ़ हमारा देवदास निष्ठाहीन है और पारो भी कुंवारी कन्या नहीं है। चंद्रमुखी अपनी पसंद से एस्कॉर्ट का का

१ मिनट की फिल्म बनायें

क्या आप को लगता है कि आप के अन्दर फिल्म बनने की प्रतिभा है तो देर किस बात की.पैशन फ़ॉर सिनेमा के लिंक पर जाएँ और वहाँ से पूरी जानकारी लेकर अपनी फिल्म बनायें.अगर आप विजेता हुए तो आप अनुराग कश्यप,हंसल मेहता,रामू रमनाथान, ओनिर और निशिकांत कामत के साथ प्रशिक्षु बन सकते हैं.इसके लिए आप को १ मिनट की फिल्म बनानी होगी.आप इस पोस्ट के दाहिने में दिए लाल रंग के पीएफसीवन के लिंक पर क्लिक करें.चवन्नी को लगा कि यह हिंदी भाषियों के लिए भी अच्छा मौका है.