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पहली सीढ़ी:आशुतोष गोवारिकर से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

पहली सीढ़ी सीरिज में इस बार प्रस्तुत है आशुतोष गोवारिकर से हुई बातचीत.यह बातचीत जोधा अकबर की रिलीज से पहले हुई थी.आशुतोष ने इस बातचीत को बहुत गंभीरता से लिया था और पूरे मनोयोग से सभी प्रश्नों के उत्तर दिए थे। आपका बचपन कहाँ बीता। आप मुंबई के ही हैं या किसी और शहर के...? सिनेमा से आपका पहला परिचय कब हुआ? - मेरा जन्म मुंबई का ही है। मैं बांद्रा में ही पला-बढ़ा हूँ। जिस घर में मेरा जन्म हुआ है, उसी घर में आज भी रहता हूँ। फिल्मों से मेरा कोई संबंध नहीं था। मैं जब स्कूल में था, तो तमन्ना भी नहीं थी कि फिल्मों में एक्टिंग करूँगा। मेरे पिताजी एक पुलिस ऑफिसर रह चुके हैं। ऐसा भी नहीं था कि उनका कोई फिल्मी संबंध हो। जिस बंगले में मैं रहता था, वह बंगला कुमकुमजी का था। कुमकुमजी ने मदर इंडिया और अन्य कई फिल्मों में काम किया। कुमकुमजी को हम लोग पहचानते थे। उस समय उनके घर पर काफी सारे स्टारों का आना-जाना था। तीसरी कक्षा में मैंने एक नाटक किया था। उसमें मैंने पीछे खड़े एक सिपाही का किरदार किया। मेरा कोई डायलॉग नहीं था। उस नाटक का प्रसारण दूरदर्शन पर हुआ था। लेकिन दिमाग में खयाल नहीं आया कि एक्टिंग करना ह

घर का द्वार खोल दिया है: अमिताभ बच्चन

इन दिनों अमिताभ बच्चन आक्रामक मुद्रा में हैं। ऐसा लगता है कि वे किसी भी आरोप, प्रश्न या आशंका पर चुप नहीं रहना चाहते। आजकल आपकी ब्लॉगिंग की बहुत चर्चा है। यह माध्यम आपके संपर्क में कब आया? -हाल ही में। यह बहुत अच्छा माध्यम है। हम अपने प्रशंसकों के साथ व्यक्तिगत संपर्क कर सकते हैं। यह मुझे बहुत अच्छा लगता है। जैसे आप और हम अभी आमने-सामने बैठकर बातें कर रहे हैं, उसी तरह हम प्रशंसकों के साथ बातें कर सकते हैं। आपके ब्लॉग पर लोगों के कमेंट्स में पूछा जा रहा है कि बच्चन जी क्या हिंदी में ब्लॉगिंग नहीं कर सकते? -हां, अवश्य करेंगे। यह टेक्नोलॉजी मेरे लिए नई है। मेरे कंप्यूटर में अभी वह सॉफ्टवेयर नहीं है जो हिंदी में कनवर्ट कर देता है। वह अभी बन रहा है। जैसे ही बन जाएगा, उसके बाद हम सीधे हिंदी में भी लिखेंगे। एक सवाल हवा में है कि बच्चन जी ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्यों वे ब्लॉग पर सभी के जवाब लिख रहे हैं? ऐसी स्थिति क्यों आ गई? -क्यों परेशान हो रहे हैं? कैसी स्थिति आ गई है? ये मेरा जीवन है, उसे मैं अपने ढंग से व्यतीत करना चाह रहा हूं। मुझे अब एक जरिया प्राप्त हो गया है, जिससे मै

क्या अपनी फिल्में देखते हैं यश चोपड़ा?

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-अजय ब्रह्मात्मज फिल्म टशन की रिलीज और बॉक्स ऑफिस पर उसके बुरे हश्र के बाद यही सवाल उठ रहा है कि क्या यश चोपड़ा अपनी फिल्में देखते हैं? चूंकि वे स्वयं प्रतिष्ठित निर्देशक हैं और धूल का फूल से लेकर वीर जारा तक उन्होंने विभिन्न किस्म की सफल फिल्में दर्शकों को दी हैं, इसलिए माना जाता है कि वे भारतीय दर्शकों की रुचि अच्छी तरह समझते हैं। फिर ऐसा क्यों हो रहा है कि यशराज फिल्म्स की पांच फिल्मों में से चार औसत से नीचे और सिर्फ एक औसत या औसत से बेहतर फिल्म हो पा रही है। ऐसा तो नहीं हो सकता कि रिलीज के पहले ये फिल्में उनकी नजरों से नहीं गुजरी हों! क्या यश चोपड़ा की सहमति से इतनी बेकार फिल्में बन रही हैं? नील एन निक्की, झूम बराबर झूम जैसी फिल्मों को देखकर कोई भी अनुभवी निर्देशक उनका भविष्य बता सकता है? खास कर यश चोपड़ा जैसे निर्देशक के लिए तो यह सामान्य बात है, क्योंकि पिछले 60 सालों में उन्होंने दर्शकों की बदलती रुचि के अनुकूल कामयाब फिल्में दी हैं। वीर जारा उनकी कमजोर फिल्म मानी जाती है, लेकिन टशन और झूम बराबर झूम के साथ उसे देखें, तो कहना पड़ेगा कि वह क्लासिक है। दिल तो पागल है के समय यश चोपड

मिमोह ने खुद को साबित किया अच्छा डांसर

पहले यह जान लें कि जिम्मी मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह चक्रवर्ती की पहली फिल्म है। किसी भी स्टार सन की पहली फिल्म में निर्देशक की कोशिश रहती है कि वह स्टार सन के टैलेंट को अच्छी तरह से दिखाए। जिम्मी देखने के बाद कह सकते हैं कि मिमोह अच्छे डांसर हैं और एक्शन दृश्य में भी सही लगते हैं। जहां तक एक्टिंग और इमोशन का मामला है तो अभी उन्हें मेहनत करनी होगी। जिम्मी के पिता ने बिजनेस फैलाने के लिए कर्ज में भारी रकम ली थी और बिजनेस में कामयाब नहीं होने पर दिल के दौरे से उनकी मृत्यु हो गयी। अब जिम्मी की जिम्मेदारी है कि वह उनके कर्ज को चुकाए। ज्यादा पैसे कमाने के लिए वह दिन में आटोमोबाइल इंजीनियर और रात में डीजे का काम करता है। उसे हर समय डांस करते ही दिखाया गया है। जिम्मी एक साजिश का शिकार होता है। खुद को निर्देष साबित करने में वह अपने एक्शन का हुनर भी दिखाता है। निर्देशक ने जिम्मी को ज्यादा इमोशनल सीन नहीं दिए हैं। शायद वह मिमोह की सीमाओं को जानते होंगे। अमूमन स्टार सन की फिल्म का पैमाना बड़ा होता है। मिमोह को यह सौभाग्य नहीं मिला। सीमित बजट की फिल्म में दोयम दर्जे के सहयोगी कलाकारों से काम लि

डरावनी फिल्म नहीं है भूतनाथ

-अजय ब्रह्मात्मज बीआर फिल्म्स की भूतनाथ डरावनी फिल्म नहीं है। फिल्म का मुख्य किरदार भूत है, लेकिन उसे अमिताभ बच्चन निभा रहे हैं। अगर निर्देशक अमिताभ बच्चन को भूत बना रहे हैं तो आप कल्पना कर सकते हैं कि वह भूत कैसा होगा? भूतनाथ का भूत नाचता और गाता है। वह बच्चे के साथ खेलता है और उससे डर भी जाता है। इस फिल्म का भूत केवल निर्दोष बच्चे की आंखों से दिखता है। निर्देशक विवेक शर्मा ने एक बच्चे के माध्यम से भूत के भूतकाल में झांक कर एक मार्मिक कहानी निकाली है, जिसमें रवि चोपड़ा की फिल्म बागवान की छौंक है। बंटू के पिता पानी वाले जहाज के इंजीनियर हैं, इसलिए उन्हें लंबे समय तक घर से दूर रहना पड़ता है। वे अपने बेटे और बीवी के लिए गोवा में मकान लेते हैं। उस मकान के बारे में मशहूर है कि वहां कोई भूत रहता है। मां अपने बेटे बंकू को समझाती है कि भूत जैसी कोई चीज नहीं होती। वास्तव में एंजल (फरिश्ते) होते हैं। फिल्म में जब भूत से बंकू का सामना होता है तो वह उसे फरिश्ता ही समझता है। वह उससे डरता भी नहीं है। भूत और बंटू की दोस्ती हो जाती है और फिर बंकू की मासूमियत भूत को बदल देती है। इस सामान्य सी कहानी मे

बॉक्स ऑफिस:०८.०५.२००८

फिल्म कामेडी हो या सस्पेंस या फिर सामाजिक रूप में प्रासंगिक, दर्शक उन्हीं फिल्मों को पसंद करते हैं, जो अच्छी बनी हो। पिछले हफ्ते की रिलीज फिल्मों को देखें तो तीनों फिल्में अलग-अलग मिजाज की थीं। उम्मीद की जा रही थी कि कामेडी और सस्पेंस को ठीक-ठाक दर्शक मिल जाएंगे, लेकिन अफसोस की बात है कि तीनों ही फिल्में बाक्स आफिस पर गिर पड़ीं। आश्चर्य ही हो रहा है कि किसी भी फिल्म को 25 प्रतिशत से अधिक की ओपनिंग नहीं मिली। प्रणाली का विषय अच्छा था, पर फिल्म इतनी बुरी थी कि कुछ दर्शक इंटरवल के बाद थिएटर में नहीं लौटे। मिस्टर ह्वाइट और मिस्टर ब्लैक की कामेडी दर्शकों को नहीं भायी। अरशद वारसी और सुनील शेट्टी की जोड़ी दर्शकों को पसंद नहीं आई। अनामिका का सस्पेंस इतना ठहरा हुआ था कि दर्शक ऊब गए। तात्पर्य यह कि तीनों ही फिल्मों को दर्शकों ने नकार दिया। फिल्मों में ऐसा आकर्षण नहीं है कि अब कोई उम्मीद की जा सके। पहले की फिल्मों में टशन ने यशराज फिल्म्स को गहरा झटका दिया। फिल्म एक हफ्ते के बाद मल्टीप्लेक्स में रिलीज हुई, लेकिन तब तक इतना कुप्रचार हो चुका था कि दर्शक पहुंचे ही नहीं। ट्रेड विशेषज्ञों के मुताबिक ट

प्रकाश झा से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

पहली सीढ़ीमैं प्रवेश भारद्वाज का कृतज्ञ हूं। उन्होंने मुझे ऐसे लंबे, प्रेरक और महत्वपूर्ण इंटरव्यू के लिए प्रेरित किया। फिल्मों में डायरेक्टर का वही महत्व होता है, जो किसी लोकतांत्रिक देश में प्रधानमंत्री का होता है। अगर प्रधानमंत्री सचमुच राजनीतिज्ञ हो तो वह देश को दिशा देता है। निर्देशक फिल्मों का दिशा निर्धारक, मार्ग निर्देशक, संचालक, सूत्रधार, संवाहक और समीक्षक होता है। एक फिल्म के दरम्यान ही वह अनेक भूमिकाओं और स्थितियों से गुजरता है। फिल्म देखते समय हम सब कुछ देखते हैं, बस निर्देशक का काम नहीं देख पाते। हमें अभिनेता का अभिनय दिखता है। संगीत निर्देशक का संगीत सुनाई पड़ता है। गीतकार का शब्द आदोलित और आलोड़ित करते हैं। संवाद लेखक के संवाद जोश भरते हैं, रोमांटिक बनाते हैं। कैमरामैन का छायांकन दिखता है। बस, निर्देशक ही नहीं दिखता। निर्देशक एक किस्म की अमूर्त और निराकार रचना-प्रक्रिया है, जो फिल्म निर्माण \सृजन की सभी प्रक्रियाओं में मौजूद रहता है। इस लिहाज से निर्देशक का काम अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। श्याम बेनेगल ने एक साक्षात्कार में कहा था कि यदि आप ईश्वर की धारणा में यकीन करते हों औ

कैटरिना और अक्षय की नजदीकियां

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यह तस्वीर अक्षय कुमार और कैटरिना कैफ की है.अक्षय कुमार दिल्ली की टीम की हौसलाआफजाई के लिए हमेशा पहुँच जाते हैं.कैटरिना कैफ विजय माल्या की टीम के साथ हैं.पिछले दिनों दोनों एक साथ मैच देख रहे थे.जाहिर सी बात है की दोनों अपनी-अपनी टीम के लिए ही वहाँ रहे होंगे.लेकिन लोगों कि निगाह का क्या कहेंगे? उन्होंने ने कुछ और ही देखा. मैच तो सारे लोग देख रहे थे,लेकिन घरों में टीवी पर मैच देख रहे दर्शक अक्षय और कैटरिना की नजदीकियां देख रहे थे। चवन्नी की रूचि इन बातों में नहीं रहती कि कौन किस के करीब आया या कौन किस से दूर गया.लेकिन अक्षय-कैटरिना का मामला थोड़ा अलग है.चवन्नी ने शोभा डे के स्तम्भ में पढ़ा.उन्होंने साफ लिखा है कि सलमान को समझ जाना चाहिए कि कैटरिना क्या संकेत दे रही हैं.शोभा मानती हैं कि दोनों की शारीरिक मुद्राओं से ऐसा नहीं लग रहा था कि वे केवल सहयोगी कलाकार हैं.शोभा डे के इस निरीक्षण पर गौर करने की जरूरत हैं.क्योंकि शोभा डे बोलती हैं तो हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री सुनती है। सच क्या है?यह तो अक्षय या कैटरिना ही बता सकते हैं...हाँ,कुछ समय तक अब दोनों चर्चा में रहेंगे और इसी बहने उनकी फ़िल्म स

मिर्जा ग़ालिब:१९५४ में बनी एक फ़िल्म

मिर्जा ग़ालिब सन् १९५४ में बनी थी.इसे सोहराब मोदी ने डायरेक्ट किया था.सोहराब मोदी पिरीयड फिल्मों के निर्माण और निर्देशन में माहिर थे.इस फ़िल्म में भारत भूषण ने मिर्जा ग़ालिब का किरदार निभाया था और उनकी बीवी के रोल में निगार थीं. ग़ालिब की प्रेमिका चौदवीं का किरदार सुरैया ने बहुत खूबसूरती से निभाया था.इस फ़िल्म को १९५५ में स्वर्ण कमल पुरस्कार मिला था.अगले साल फिल्मफेअर ने इसे कला निर्देशन का पुरस्कार दिया। इस फ़िल्म को देखने के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सुरैया से कहा था की तुम ने मिर्जा ग़ालिब की रूह को जिंदा कर दिया.फ़िल्म देखने के पहले चवन्नी पंडित नेहरू की इस तारीफ का आशय नहीं समझ पा रहा था.आप फ़िल्म देखें और महसूस करें कि यह कैसे मुमकिन हुआ होगा.सुरैया की आवाज ने ग़ालिब की गजलों को गहराई दी है। galib को बाद में लगभग हर गायक ने gaya है,लेकिन गुलाम मोहम्मद के संगीत निर्देशन में सुरैया की गायकी ने जैसे मानदंड स्थापित कर दिया था.चवन्नी चाहेगा कि इरफान भाई,यूनुस भाई या विमल भाई सुरैया की gaayi ग़ज़लों को हम सभी के लिए पेश करें। इस फ़िल्म में पहले मधुबाला को लेने की बात

अनामिका: सस्पेंस फिल्म और इतनी स्लो!

अनंत नारायण महादेवन की सस्पेंस फिल्म अनामिका की गति इतनी धीमी है कि दर्शकों की कल्पना को बार-बार ठेस लगती है। कहानी ऐसी अटकती और उलझती है कि रहस्य के प्रति जिज्ञासा खत्म होने लगती है। सस्पेंस फिल्मों के लिए आवश्यक है कि उनमें गति और संगीत का अच्छा संगम हो। विक्रम आदित्य सिंह सिसोदिया गजनेर पैलेस के कुंवर हैं। वह अपने पैलेस को रिजार्ट में तब्दील करना चाहते हैं। मुंबई में उनकी मुलाकात एस्कार्ट जिया राव से होती है। पहली ही मुलाकात में उन्हें जिया का स्वभाव जंचता है और वह शादी का प्रस्ताव रख देते हैं। जिया राजी हो जाती है। वह गजनेर पैलेस में आ जाती है। मध्यवर्गीय परिवार की जिया पैलेस की चकाचौंध और रीति-गतिविधि से नावाकिफ है। वहां वह विक्रम आदित्य की पूर्व पत्नी अनामिका के नाम से इस कदर आतंकित होती है कि उसके बारे में सब कुछ जानने को उत्सुक होती है। अनामिका की मौत रहस्यमय स्थितियों में हुई है। पैलेस में ही मोहिनी रहती हैं। वह पैलेस की सभी गतिविधियों पर नजर रखती हैं और उनकी बात विक्रम आदित्य भी नहीं टाल पाते। लंबे समय तक एक ही जगह पर चकरघिन्नी काटने के बाद कहानी रहस्य तक पहुंचती है तो फटाक स