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कंफ्यूजन की बिसात पर कामेडी का तड़का

-अजय ब्रह्मात्मज प्रियदर्शन की फिल्मों से एक खास ट्रेंड चला है। जिसके मुताबिक कहानी में कंफ्यूजन पैदा करो तो कामेडी अपने आप निकल आएगी। हिंदी फिल्मों में इन दिनों कामेडी के नाम पर ऐसी ही फिल्में बन रहीं हैं। अगर आप अपनी समझ और संवेदना का स्तर नीचे ले आएं तो डान मुत्थुस्वामी जैसी फिल्म का आनंद उठा सकते हैं। जिन शक्ति सामंत ने आराधना और अमर प्रेम जैसी फिल्में दी हों उनके ही सामंत मूवीज के बैनर तले डान मुत्थुस्वामी का निर्माण हुआ है। 14-15 साल पहले मिथुन चक्रवर्ती ने सीमित बजट की सी ग्रेड फटाफट फिल्मों का फैशन आरंभ किया था। लगता है उसी दौर की एक फिल्म छिटक कर 2008 में आ गई है। पिता की आत्मा की शांति के लिए डान मुत्थुस्वामी (मिथुन चक्रवर्ती) अच्छा आदमी बनना चाहता है। पिता की अंतिम इच्छा के मुताबिक जिंदगी और मौत के बीच लटके व्यक्ति की मदद के लिए वह कुछ भी कर सकता है। नेक इंसान बनने की उसकी घोषणा केसाथ शुरू हुआ कंफ्यूजन इतना बढ़ता है कि कुछ समय के बाद आप सोचना बंद कर देते हैं। निर्देशक असीम सामंत ने मिथुन की प्रतिभा के साथ खिलवाड़ किया है। लेकिन, फिल्म से यह भी पता लगता है कि बेहतरीन अभिनेता

घटोत्कच: एनीमेशन के नाम पर फूहड़ प्रस्तुति

-अजय ब्रह्मात्मज एस श्रीनिवास के निर्देशन में बनी घटोत्कच एनीमेशन फिल्मों के नाम पर चल रहे कारोबार की वास्तविकता सामने ला देती है। महाभारत के पात्र घटोत्कच के जीवन पर बनी इस एनीमेशन फिल्म को सुंदर और प्रभावशाली बनाने की संभावनाएं थीं, लेकिन निर्देशक ने एक मिथकीय किरदार को कैरीकेचर और कार्टून बना कर रख दिया है। एनीमेशन की बारीकियों में न जाकर सिर्फ कहानी की ही बात करें तो घटोत्कच के जीवन में हास्यास्पद प्रसंग दिखाने के लिए निर्देशक की कपोल कल्पना उसे आज तक खींचती है। समझ में नहीं आता कि निर्देशक की क्या मंशा है? आखिर किन दर्शकों के लिए यह फिल्म बनाई गई है। घटोत्कच की विकृत प्रस्तुति महाभारत के एक उल्लेखनीय वीर का मखौल उड़ाती है और उसे हिंदी फिल्मों के साधारण कामेडियन में बदल देती है। भीम और हिडिम्बा के बेटे घटोत्कच की महाभारत में खास भूमिका रही है। उन्होंने अपने शौर्य, पराक्रम और चमत्कार से श्रीकृष्ण का आर्शीवाद भी पाया था। अगर यह फिल्म बाल घटोत्कच के कारनामों तक सीमित रहती तो भी मनोरंजक और शिक्षाप्रद होती। घटोत्कच एनीमेशन के नाम पर फूहड़ प्रस्तुति है। दिक्कत यह है कि ऐसी फिल्म की मार्क

बच्चों की फिल्म में हैं अपार संभावनाएं

-अजय ब्रह्मात्मज आप लोगों ने भी गौर किया होगा। अगर कोई बच्चा किसी अक्षर के उच्चारण में तुतलाता है और आप उसी शब्द का तोतला उच्चारण करें, तो वह नाराज हो जाता है। इसकी सीधी वजह यह है कि वह अपनी जानकारी में सही उच्चारण कर रहा होता है और हम सभी से अपेक्षा रखता है कि हम भी सही उच्चारण करें। बच्चों की फिल्मों के बारे में यही बात कही जा सकती है। हमने अपनी तरफसे तय कर लिया है कि बच्चों की फिल्में कैसी होनी चाहिए और बच्चों को क्या पसंद आता है? बाल संवेदना के नाम पर ऐसी फिल्में बनती रही हैं, जिन्हें बच्चे बड़ों के तोतले उच्चारण की तरह नापसंद करते रहे हैं। लगभग दो दशकों तक चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी के सौजन्य से ऐसी दर्जनों फिल्में बनीं, जिन्हें न तो बच्चों ने पसंद किया और न ही बड़ों ने! गौरतलब यह है कि ऐसी अधिकांश फिल्में 26 जनवरी, 15 अगस्त और चाचा नेहरू के जन्मदिन बाल दिवस पर बच्चों को जबरन दिखाई जाती हैं। चूंकि स्कूल और बाल सोसाइटी का सर्कुलर जारी हो गया रहता है, इसलिए युनिफॉर्म पहने बच्चे मन मारकर ऐसी फिल्में देखते हैं। सामान्य तौर पर भारतीय फिल्मों और खास कर हिंदी फिल्मों के फिल्मकारों ने बच्चों

बॉक्स ऑफिस :२०.०५.२००८

औसत कारोबार कर लेगी जन्नत जन्नत हिट हो गयी है। फिल्म से संबंधित एक प्रमुख व्यक्ति का यही एसएमएस आया तो लगा कि हर फिल्म की रिलीज के बाद उस यूनिट के लोगों द्वारा किए जाने वाले झूठे प्रचार का ही यह हिस्सा होगा। लेकिन सप्ताहांत के तीन दिनों में जन्नत ने उम्मीद से ज्यादा बिजनेस किया और सचमुच हिट होने की दिशा में अग्रसर दिखी। कुणाल देशमुख निर्देशित जन्नत से ज्यादा उम्मीद नहीं की गयी थी। इमरान हाशमी का मार्केट पिछली कुछ फिल्मों से ढीला ही चल रहा था। नायिका सोनल चौहान एकदम नयी थीं। फिर भी जन्नत को दर्शकों ने पसंद किया। फिल्म का आरंभिक कलेक्शन 90 फीसदी तक पहुंचा। सोमवार से फिल्म के कलेक्शन में थोड़ी गिरावट आई है। इस हफ्ते की फिल्मों को दर्शक मिले तो जन्नत का कलेक्शन और घटेगा। फिर भी माना जा रहा है कि जन्नत औसत कारोबार कर लेगी और और कम बजट के कारण निर्माताओं के लिए फायदेमंद साबित होगी। भूतनाथ को शहरों में दर्शकों ने पसंद किया। खास कर बच्चे इसे देख रहे हैं और उन्हें दिखाने के चक्कर में परिवार के बड़ों को भी इसे देखना पड़ रहा है। भूतनाथ के साथ रिलीज हुई जिम्मी सिनेमाघरों से उतर रही है। यशराज फिल्म

खप जाती है एक पीढ़ी तब मिलती है कामयाबी

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री समेत हर इंडस्ट्री और क्षेत्र में ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे। हजारों- लाखों उदाहरण हैं। एक पीढ़ी के खपने और होम होने के बाद ही अगली पीढ़ी कामयाब हो पाई। आजकल मनोवैज्ञानिक और अन्य सभी कहते हैं कि बच्चों पर अपनी इच्छाओं और सपनों का बोझ नहीं लादना चाहिए। लेकिन हम अपने आसपास ऐसे अनेक व्यक्तियों को देख सकते हैं, जिन्होंने अपने माता या पिता के सपनों को साकार किया। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई उदाहरण हैं। हाल ही में 'हाल-ए-दिल' के म्यूजिक रिलीज के समय फिल्म के निर्माता कुमार मंगत मंच पर आए। उन्होंने कहा कि मैं कुछ भी बोलने से घबराता हूं। लेकिन आज मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं। आज मैं अवश्य बोलूंगा। उन्होंने समय और तारीख का उल्लेख करते हुए बताया कि 1973 में मैं आंखों से सपने लिए मुंबई आया था। इतने सालों के बाद मेरा वह सपना पूरा हो रहा है। मेरी बेटी अमिता पाठक फिल्मों में हीरोइन बन कर आ रही है। अमिता पाठक के पिता कुमार मंगत हैं। लंबे समय तक वे अजय देवगन के मैनेजर रहे। इन दिनों वे बिग स्क्रीन एंटरटेनमेंट के मालिक हैं और कई फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं।

माँ से नहीं मिले खली पहलवान

खली पहलवान भारत आए हुए हैं.आप पूछेंगे चवन्नी को पहलवानी से क्या मतलब? बिल्कुल सही है आप का चौंकना. कहाँ चवन्नी चैप और कहाँ पहलवानी? चवन्नी को कोई मतलब ही नहीं रहता.मगर खली चवन्नी की दुनिया में आ गए.यहाँ आकर वे राजपाल यादव के साथ फोटो खिंचवाते रहे और फिर रविवार को धीरे से मन्नत में जा घुसे.मन्नत ??? अरे वही शाहरुख़ खान का बंगला.बताया गया की आर्यन और सुहाना खली पहलवान के जबरदस्त प्रशंसक हैं.प्रशंसक तो आप के भी बच्चे हो सकते हैं,लेकिन खली वहाँ कैसे जा सकते हैं।बेचारे खली पहलवान के पास तो इतना समय भी नहीं है कि वे माँ के पास जा सकें.चवन्नी को पता चला है कि खली की माँ ने घर का दरवाजा ८ फीट का करवा दिया है.उसे ४ फीट चौडा भी रखा है,ताकि लंबे-चौड़े हो गए बेटे को घर में घुसने में तकलीफ न हो.वहाँ नए दरवाजे के पास बैठी माँ खली का इंतज़ार कर रही है और यहाँ खली पहलवान शाहरुख़ खान के बेटे-बेटी का मनोरंजन कर रहे हैं। ऐसा कैसे हो रहा कि ढाई साल के बाद अपने देश लौटा बेटा माँ के लिए समय नहीं निकल पा रहा है.ऐसा भी तो नहीं है कि उसके पास गाड़ी-घोडा नहीं है.उसे तो बस सोचना है और सारा इन्तेजाम हो जायेगा

छोटी फिल्मों का सीमित संसार

-अजय ब्रह्मात्मज हिंदी की छोटी फिल्में अवधि, आकार या विषय की दृष्टि से छोटी नहीं होतीं, बल्कि बजट और कलाकारों से फिल्में छोटी या बड़ी हो जाती हैं। फिर उसी के अनुरूप उनका प्रचार भी किया जाता है। भले ही विडंबना हो, लेकिन यही सच है कि हिंदी फिल्में आज भी स्टार के कारण बड़ी हो जाती हैं। अगर स्टार रहेंगे, तो बजट बढ़ेगा और यदि बजट बढ़ा, तो फिल्म अपने आप महंगी हो जाती है। महंगी फिल्मों में निवेशित धन उगाहने के लिए मार्केटिंग और पब्लिसिटी पर भी ज्यादा खर्च किया जाता है। यह अलग बात है कि कई बार नतीजा ठन-ठन गोपाल हो जाता है, जैसा कि टशन के साथ हुआ। बहरहाल, हम छोटी फिल्मों की बातें कर रहे हैं। सुभाष घई की कंपनी मुक्ता आ‌र्ट्स ने सर्चलाइट नाम से एक अलग कंपनी बनाई है। यह कंपनी छोटी फिल्मों का निर्माण करती है। नागेश कुक्नूर की फिल्म इकबाल से इसकी शुरुआत हुई। यूटीवी ने भी स्पॉट ब्वॉय नाम से एक अलग कंपनी खोलकर छोटी फिल्मों का निर्माण आरंभ किया है। उनकी पहली फिल्म आमिर जल्दी ही रिलीज होगी। स्पॉट ब्वॉय ही अनुराग कश्यप की फिल्म देवड़ी का भी निर्माण कर रही है। यशराज फिल्म्स ने कोई अलग से कंपनी नहीं बनाई ह

बस नाम से ही 'जन्नत'

-अजय ब्रह्मात्मज भट्ट कैंप की खूबी है कि वे फटाफट फिल्में बनाते हैं। सीमित बजट, छोटी बात, नए व मझोले कलाकार और चौंकाने वाले कुछ संवाद..। जन्नत भी इसी प्रकार की फिल्म है। इसे युवा निर्देशक कुणाल देशमुख ने निर्देशित किया है। अर्जुन दीक्षित आदर्शवादी पिता का बेटा है। पिता से अलग मिजाज के अर्जुन द्वारा चुना हुआ माहौल अलग है। वह तीन पत्ती के खेल से जल्दी पैसे कमाने के चक्र में घुसता है और क्रिकेट मैच की फिक्सिंग तक पहुंचता है। धारावी की झोपड़पट्टी से निकला अर्जुन एक दिन दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन के शानदार बंगले में रहने लगता है। कहते हैं पाकिस्तानी कोच वूल्मर की हत्या की घटना से प्रेरित है यह फिल्म। अमीर बनने की लालसा रखने वाले अर्जुन की कहानी उस घटना के इर्द-गिर्द बुनी गई है। फिल्म में एक प्रेम कहानी भी है, जिसका तनाव किरदारों को जोड़े रखता है। भट्ट कैंप की फिल्मों में नायक-नायिका हमेशा खिंचे-खिंचे से रहते हैं। तनावपूर्ण प्रेम संबंध उनकी फिल्मों की विशेषता बन गयी है। जन्नत में अर्जुन और जोया के बीच भी ऐसा ही संबंध है। जन्नत की कहानी दो स्तरों पर चलती है। प्रेम कहानी के आगे-पीछे अर्जुन के

बॉक्स ऑफिस: १५.०५.२००८

भूतनाथ और जिम्मी में स्वाभाविक रूप से भूतनाथ को ज्यादा दर्शक मिले। हीरो-हीरोइन की रोमांटिक थ्रिलर या कामेडी जैसी फिल्म नहीं होने के बावजूद दर्शक उत्साह से भूतनाथ देखने आए। शायद अमिताभ बच्चन का आकर्षण रहा हो। इस फिल्म का कलेक्शन पहले दिन 60 प्रतिशत रहा। सप्ताहांत में कलेक्शन बढ़ा, लेकिन सोमवार से गिरावट दिखी। हिंदी फिल्मों का निश्चित खांचों में होना जरूरी होता है। भूतनाथ चिल्ड्रेन फिल्म या फैमिली फिल्म की दुविधा का शिकार हुई। फिर भी निर्माता रवि चोपड़ा और निर्देशक विवेक शर्मा का प्रयास उल्लेखनीय कहा जाएगा। जिम्मी की बॉक्स ऑफिस संभावना कम थी। मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह चक्रवर्ती के प्रति किसी स्टार सन का आकर्षण नहीं था। फिल्म का प्रचार उस ढंग से किया ही नहीं गया था। इसके अलावा फिल्म भी कमजोर थी। मिमोह अच्छे डांसर हैं, लेकिन वह फिल्म को बचा नहीं सके। इस फिल्म का आरंभिक कलेक्शन 20-25 प्रतिशत ही रहा। समीक्षकों ने मिमोह के लुक और ड्रेस सेंस की काफी आलोचना की। पहले की फिल्मों में अनामिका और मिस्टर ह्वाइट मिस्टर ब्लैक सिनेमाघरों से उतारी जा रही हैं। यशराज फिल्म्स ने मल्टीप्लेक्स मालिकों से

ब्लॉग पर चल रही भौं-भौं

चवन्नी तो सोच रहा था की यह हिन्दी ब्लॉगर आपस में भौं-भौं करते रहते है.टिप्पणियों के माध्यम से एक-दूसरे को काटते और चाटते रहते हैं.चवन्नी को कोफ्त होती रही है ऐसी भौं-भौं से.उसे लगता था की हिंदीवाले बीमारू प्रदेश के हैं.हमेशा खौफ में जीते हैं और किसी की तरक्की उन्हें रास नहीं आती.पिछले दिनों हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में जो शब्दों के बाण चले उनसे आप सभी वाकिफ हैं। इधर आप ने गौर किया होगा की कुछ फिल्मी हस्तियाँ ब्लॉग लिख रही है.अमिताभ बच्चन तो इतने नियमित हैं कि आलोक पुराणिक के प्रतियोगी हो गए हैं.आप रोजाना कुच्छ न कुछ उनके ब्लॉग पर पा सकते हैं.उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा से लेकर शाहरुख़ खान तक से भौं-भौं की.चलते-चलते कुछ पत्रकारों पर भी छींटाकशी करने से वे बाज नहीं आते.अगर १०-१२ साल पहले भी आप ने कुछ उनके ख़िलाफ़ लिख दिया हो या बोल दिया हो तो हो सकता है कि वे अपने ब्लॉग में पलटवार करें.ब्लॉग का maadhyam उन्हें मिल गया है और इसे वे हथियार की तरह इअतेमाल कर रहे हैं। दूसरे हैं आमिर खान.उनहोंने लगान का डीवीडी रिलीज करने के बाद अपने प्रशंसकों से बात करने के लिए यह ब्लॉग आरंभ किया था.कुछ अच्छी जान