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दरअसल:क्यों धीरे चलें बच्चन?

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-अजय ब्रह्मात्मज बहुत पहले की बात न करें। पिछले छह महीनों की दिनचर्या ही देख लें, तो अमिताभ बच्चन की व्यस्तता और सक्रियता का अनुमान हो जाएगा। सबूत के लिए उनके ब्लॉग पर जाएं। वहां दिखेगा कि पिछले छह महीनों में ही उन्होंने इस पृथ्वी पर पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व की कई यात्राएं कीं। कई देशों में गए और अनेक कार्यक्रमों में भी शामिल हुए। अपने परिजन और अन्य स्टारों के साथ अनफारगेटेबल टुअॅर पूरा किया। नई फिल्मों के लिए बैठकें कीं। प्रतिकूल परिस्थितियों और मौसम में फिल्मों की शूटिंग की। 66-67 की उम्र में उनकी यह सक्रियता अचंभित करती है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में देव आनंद को सदाबहार अभिनेता कहा जाता है। ऐसे में अमिताभ बच्चन को सदासक्रिय अभिनेता कहना गलत नहीं होगा। सारी सुविधाओं और साधन के बावजूद अमिताभ बच्चन नहीं चाहते कि उनकी वजह से किसी और को परेशानी या तकलीफ हो। यही वजह रही होगी कि इस बार जन्मदिन से पहले वाली रात को पेट दर्द होने पर भी वे बर्दाश्त करते रहे। शायद उन्होंने सोचा हो कि दर्द खुद ही कम हो जाएगा और उनके जन्मदिन के अवसर पर एकत्रित हुए परिचितों और शुभचिंतकों की खुशी में खलल न

हिन्दी टाकीज:सिनेमा देखने चलना है - श्याम दिवाकर

हिन्दी टाकीज-१३ इस बार श्याम दिवाकर ने हिन्दी टाकीज की अगली कड़ी लिखी है.चवन्नी के विशेष आग्रह को उन्होंने स्वीकार किया और बिल्कुल अलग अंदाज़ में यह संस्मरणात्मक लेख लिखा.श्याम दिवाकर पेशे से हिन्दी के प्रोफ़ेसर और स्वभाव से कवि हैं.'इस सदी का प्रेमपत्र' नाम से उनका काव्य संग्रह आ चुका है.उन्होंने छिटपुट कहानियाँ लिखी हैं और यदा-कदा समीक्षात्मक लेख लिखते हैं.उन्होंने ख़ुद जितना लिखा है,उस से ज्यादा लोगों को लिखने के लिए प्रेरित किया है.बिहार के जमालपुर निवासी श्याम दिवाकर फिलहाल आरडीएनडीजे कॉलेज ,मुंगेर में हिन्दी के विभागाध्यक्ष हैं। 'सिनेमा' शब्द से मेरा पहला परिचय संभवत: 1958-59 के आसपास हुआ। अक्टूबर का महीना था। मां ने कहा - आज स्कूल नहीं जाना है। स्कूल जाने के लिए कमोबेश रोज डांट खाने वाले के लिए इससे बड़ी खुशी दूसरी हो ही नहींसकती थी। मैं अभी इस आश्चर्य से उबर भी नहीं पाया था कि घर से निकलने की मनाही करते हुए दीदी ने नहा-धोकर तैयार हो जाने का फरमान जारी कर दिया। पता चला आज घर के अधिकांश लोग सिनेमा देखने जाएंगे। मैं बिहार के मुंगेर जनपद के हवेली खडग़पुर तहसील का नि

गजनी में गजब ढाएंगे आमिर खान

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-अजय ब्रह्मात्मज पिछले साल 'तारे जमीन पर' में दर्शकों ने आमिर खान को निकुंभ सर की सीधी-सादी भूमिका में देखा था। अब 'गजनी' में वे हैरतअंगेज एक्शन करते नजर आएंगे। गजनी के लिए उनके माथे पर कटे का निशान तो सभी ने देख रखा है। लेकिन, उनकी बाडी के बारे में किसी को पता नहीं था। 'गजनी' में आमिर उभरे 'बाइसेप्स' और 'शोल्डर्स' के साथ दर्शकों के सामने होंगे। दैनिक जागरण से खास बातचीत में आमिर ने नए लुक और 'गजनी' के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा, 'मैं लंबे अंतराल के बाद एक्शन फिल्म कर रहा हूं। फिल्म के निर्देशक मुरुगदास ने मुझे सलाह दी थी कि एक्शन हीरो होने के नाते मैं अपनी बाडी बनाऊं। ऐसी बाडी बनाने में डेढ़-दो साल लगते हैं।' आमिर ने कहा, 'मैंने तारे जमीन पर के पोस्ट प्रोडक्शन के समय से ही अपने शरीर पर काम शुरू कर दिया था। उन दिनों रोजाना तीन-चार घंटे की एक्सरसाइज के बाद मैं थक कर चूर हो जाता था। लेकिन, फिल्म के लिए यह करना जरूरी था।' आमिर ने कहा, 'फिर मुझे दुनिया की नजरों से भी इस बाडी को छिपा कर रखना था। मैं उन दिनों

इंसानी वजूद का अर्थ तलाशती है ट्रेजडी-महेश भट्ट

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ट्रेजडी इन दिनों फैशन में नहीं है। आप हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में किसी को दिल तोडने वाली और आत्मा को झिंझोड देने वाली दुख भरी कहानी सुनाएं तो वह हालिया बरसों में दर्शकों की बदल चुकी रुचि के संबंध में भाषण दे देगा। एक चैनल के सीनियर मार्केटिंग हेड पिछले दिनों मेरी नई फिल्म जन्नत की रिलीज की रणनीति तय करने आए। उन्होंने समझाया, हमारे दर्शकों में बडी संख्या युवकों की है और उनकी रुचि मस्ती में रहती है। कृपया उन्हें उदासी न परोसें। उनसे उम्मीद न करें कि वे ऐसी कहानियों को लपक लेंगे। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन दिनों मीडिया में हर कोई केवल फील गुड प्रोडक्ट के उत्पादन में लगा है। 2007 में पार्टनर, हे बेबी और वेलकम जैसी निरर्थक फिल्मों की कमाई ने बॉक्स ऑफिस के सारे रिकॉर्ड तोड दिए। मुझे तो ट्रेजडी पर लिखने का यह भी एक बडा कारण लगता है। ट्रेजडी की परिभाषा मैंने 24 साल के अपने बेटे राहुल से सुबह वर्कआउट के समय पूछा, ट्रेजडी के बारे में सोचने पर तुम्हारे जहन में क्या खयाल आता है? मरने के लंबे आंसू भरे दृश्य, कानफाडू पा‌र्श्व संगीत और कभी-कभी घटिया एक्टिग. कुछ देर सोचकर उसने जवाब दिया। उ

अहंकार नहीं है सनी में -संजय चौहान

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फिल्म धूप से मशहूर हुए संजय चौहान ने सनी देओल के लिए कई फिल्में लिखी हैं। सनी के जन्मदिन (19 अक्टूबर) पर संजय बता रहे हैं उनके बारे में॥ सनी देओल से मिलने के पहले उनके बारे में मेरे मन में अनेक बातें थीं। दरअसल, मीडिया और लोगों की बातों से ऐसा लगा था। उनसे मेरी पहली मुलाकात बिग ब्रदर के समय हुई। फिल्म के निर्देशक गुड्डू धनोवा के साथ मैं उनसे मिलने गया था। पुरानी बातों की वजह से सनी केबारे में मैंने धारणाएं बना ली थीं। औरों की तरह मैं भी मानता था कि वे गुस्सैल और तुनकमिजाज होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पहली मुलाकात में ही वे मुझे बहुत मृदु स्वभाव के लगे। यह सच है कि वे बहुत मिलनसार नहीं हैं, क्योंकि वे शर्मीले स्वभाव के हैं। दूसरे, उनके बारे में मशहूर है कि वे सेट पर समय से नहीं आते हैं। मैंने बिग ब्रदर की शूटिंग के दौरान पाया कि वे हर स्थिति में बिल्कुल समय से सेट पर आ जाते थे। फिल्म की शूटिंग के दौरान मैंने पाया कि वे काम के समय ज्यादा लोगों से नहीं मिलते। अपना काम किया, शॉट दिया और अपने स्थान पर चले गए। वैसे, मैंने यह भी कभी नहीं देखा कि उन्होंने सेट पर आए किसी मेहमान को झिड़क दिया हो य

फ़िल्म समीक्षा:कर्ज्ज्ज्ज़

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पुरानी कर्ज से कमतर -अजय ब्रह्मात्मज सतीश कौशिक रीमेक फिल्मों के उस्ताद हैं। ताजा कोशिश में उन्होंने सुभाष घई की कर्ज को हिमेश रेशमिया के साथ पेश किया है। कहानी के क्लाइमेक्स से पहले के ड्रामा में कुछ बदलाव है। 28 साल के बाद बनी फिल्म के किरदारों में केवल बाहरी परिवर्तन किए गए हैं उनके स्वभाव और कहानी के सार में कोई बदलाव नहीं है। सतीश कौशिक और हिमेश ने हमेशा विनम्रता से स्वीकार किया है कि दोनों ही सुभाष घई व ऋषि कपूर की तुलना में कमतर हैं। पुनर्जन्म की इस कहानी में छल, कपट, प्रेम, विद्वेष और बदले की भावना पर जोर दिया गया है। यह शुद्ध मसाला फिल्म है। 25-30 वर्ष पहले ऐसी फिल्में दर्शक खूब पसंद करते थे। ऐसे दर्शक आज भी हैं। निश्चित ही उनके बीच कर्ज पसंद की जाएगी। फिल्म का संगीत, हिमेश की एनर्जी और उर्मिला मातोंडकर का सधा निगेटिव अंदाज इसे रोचक बनाए रखता है। यह हिंसात्मक बदले से अधिक भावनात्मक बदले की कहानी है। पुरानी कर्ज की तरह यह कर्ज भी संगीत प्रधान है। हिमेश ने पुराने संगीत को रखते हुए अपनी तरफ से नई धुनें जोड़ी हैं। धुनें मधुर लगती हैं लेकिन उनके साथ पिरोए शब्द चुभते हैं। तंदूरी ना

दरअसल: नया आइटम है अंडरवाटर शूटिंग

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-अजय ब्रह्मात्मज नवीनता के लिए तरस रही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को अंडरवाटर शूटिंग का नया आइटम मिल गया है। दरअसल, फिल्मों का आकर्षण बढ़ाने और दर्शकों को नए तरीकों से लुभाने की कोशिश में लगे निर्देशक इन दिनों अंडरवाटर शूटिंग पर जोर दे रहे हैं। दो हफ्ते पहले रिलीज हुई दोनों ही फिल्मों द्रोण और किडनैप में अंडरवाटर दृश्य थे। इसीलिए अब ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले समय में फिल्मों में अंडरवाटर दृश्यों की अवधि बढ़ेगी। सूचना मिली है कि अष्टविनायक की एंथनी डी-सूजा निर्देशित फिल्म ब्लू में भी एक गाने की अंडरवाटर शूटिंग की जा रही है। इस गाने में संजय दत्त, अक्षय कुमार, जाएद खान, लारा दत्ता और कैटरीना कैफ पानी में नृत्य करते नजर आएंगे। निश्चित ही निर्देशक ने खुद के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर ली है, लेकिन यकीन मानें ब्लू का अंडरवाटर गीत फिल्म का मुख्य आकर्षण होगा। सिर्फ अंडरवाटर गीत देखने के लिए ही दर्शक फिल्म देख सकते हैं। पानी से निर्देशकों का पुराना लगाव रहा है। झरना, झील, तालाब, नदी और समुद्र जैसे प्राकृतिक जल स्रोतों का उपयोग लंबे समय से होता रहा है। वास्तव में, मनुष्य के जीवन की कल्पना पानी के ब

पटना के रिजेंट सिनेमाघर में दो दिनों में तीन फिल्में

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रिजेंट सिनेमाघर का टिकट (अगला-पिछला) पटना का गांधी मैदान … कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है। गांधी मैदान के ही एक किनारे बना है कारगिल चौक। कारगिल में शहीद हुए सैनिकों की याद दिलाते इस चौराहे के पास एलफिंस्टन, मोना और रिजेंट सिनेमाघर हैं। मोना का पुनरूद्धार चल रहा है। कहा जा रहा है कि इसे मल्टीप्लेक्स का रूप दिया जा रहा है। अगर जल्दी बन गया तो यह पटना का पहला मल्टीप्लेक्स होगा। वैसे प्रकाश झा भी एक मल्टीप्लेक्स पटना में बनवा रहे हैं। पटना के अलावा बिहार और झारखंड के दूसरे जिला शहरों में भी मल्टीप्लेक्स की योजनाएं चल रही हैं। पूरी उम्मीद है कि अगले एक-दो सालों में बिहार और झारखंड के दर्शकों का प्रोफाइल बदल जाएगा। सिनेमाघरों में भीड़ बढ़ेगी और उसके बाद उनकी जरूरतों का खयाल रखते हुए हिंदी सिनेमा भी बदलेगा। फिलहाल, 1 अक्टूबर की बात है। भोजपुरी फिल्म 'हम बाहुबली' का प्रीमियर रिजेंट सिनेमाघर में रखा गया है। रिजेंट में आमतौर पर हिंदी फिल्में दिखाई जाती हैं। उस लिहाज से यह बड़ी घटना है। यहां यह बताना

बॉक्स ऑफिस:१७.१०.२००८

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सफल नही रही हैलो मुंबई में हैलो की सक्सेस पार्टी हो चुकी है। निर्माता और निर्देशक इसे कामयाब घोषित करने में लगे हैं। दावा तो यह भी है कि इसकी ओपनिंग जब वी मेट से अच्छी थी। जब भी किसी नयी रिलीज की तुलना पुरानी कामयाब फिल्म से की जाती है तो शक बढ़ जाता है। फिल्म हिट हो चुकी हो तो बताने की क्या जरूरत है? वह तो सिनेमाघरों में दिखाई पड़ने लगता है और सिनेमाघरों को देख कर हैलो को सफल नहीं कहा जा सकता। हैलो का आरंभिक कलेक्शन 30 से 40 प्रतिशत रहा। पिछले हफ्ते वह अकेले ही रिलीज हुई थी और उसके पहले रिलीज हुई द्रोण एवं किडनैप को दर्शकों ने नकार दिया था। फिर भी हैलो देखने दर्शक नहीं गए। लगता है चेतन भगत का उपन्यास वन नाइट एट कॉल सेंटर पढ़ चुके दर्शकों ने भी फिल्म में रुचि नहीं दिखाई। सलमान खान और कैटरीना कैफ आकर्षण नहीं बन सके। पुरानी फिल्मों में द्रोण और किडनैप फ्लॉप हो चुकी हैं। इस हफ्ते हिमेश रेशमिया की कर्ज रिलीज हो रही है। उसके साथ एनीमेशन फिल्म चींटी चींटी बैंग बैंग और लंदन के बम धमाकों पर आधारित जगमोहन मूदंड़ा की शूट ऑन साइट भी आ रही है।

बारिश में भीगता हुआ पोस्टर-दिनेश श्रीनेत

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हिन्दी टाकीज-१२ इस बार दिनेश श्रीनेत.दिनेश श्रीनेत इंडियन बाइस्कोप नाम से ब्लॉग लिखते हैं.हिन्दी में फिल्मों पर लिखनेवाले चंद गंभीर और महत्वपूर्ण में से एक हैं दिनेश श्रीनेत.इन दिनों वे एक हिन्दी पोर्टल की संपादन जिम्मेदारियों की वजह से बैंगलोर में रहते हैं.अपने बारे में उन्होंने लिखा है,बीते दस सालों से पत्रकारिता. फिलहाल बैंगलोर में. एक न्यूज़ पोर्टल में एडीटर. कुछ लेख, कुछ कहानियां प्रकाशित, सिनेमा तथा अन्य दृश्य विधाओं से गहरा लगाव. सिनेमा के प्रति सबसे पहले मन में कब अनुराग जन्मा यह तो नहीं कह सकता, पर इतना जरूर है कि जितनी स्मृतियां वास्तविक जीवन की हैं, उतनी ही सिनेमाई छवियों की भी. अगर सिनेमा को याद करूं तो मैं उन तमाम पोस्टरों को नहीं भूल सकता, जिन्होंने सही मायनों में इस माध्यम के प्रति मेरे मन में गहरी उत्सुकता को जन्म दिया। जबसे मैंने थोड़ा होश संभाला तो सिनेमा के पोस्टरों ने मेरा ध्यान खींचना शुरु किया। मुझे यह पता होता था कि ये फिल्में मैं नहीं देख सकता मगर पोस्टर से मैं उनकी कहानियों के बारे में कयास लगाया करता था। बाद के दिनों में भी पोस्टरों से इतना ज्यादा जुडा़ रहा