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Showing posts from October, 2015

फिल्‍म समीक्षा : तितली

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रियल सिनेमा में रियल लोग -अजय ब्रह्मात्‍मज पहले ही बता दूं कि ‘ तितली ’ देखते हुए मितली आ सकती है।      नियमित तौर पर आ रही हिंदी फिल्‍मों ने हमें रंग,खूबसूरती,सुदर लोकेशन,आकर्षक चेहरों और सुगम कहानी का ऐसा आदी बना दिया है कि अगर पर्दे पर यथार्थ की झलक भी दिखे तो सहज प्रतिक्रिया होती है कि ये क्‍या है ? सचमुच सिनेमा का मतलब मनोरंजन से अधिक सुकून और उत्‍तेजना हो गया है। अगर कोई फिल्‍म हमें अपने आसपास की सच्‍चाइयां दिखा कर झकझोर देती हैं तो हम असहज हो जाते हैं। ‘ तितली ’ कोई रासहत नहीं देती। पूरी फिल्‍म में सांसत बनी रहती है कि विक्रम,बावला और तितली अपनी स्थितियों से उबर क्‍यों नहीं जाते ?           जिंदगी इतनी कठोर है कि जीने की ललक में आदमी घिनौना भी होता चला जाता है। तीनों भाइयों की जिंदगी से अधिक नारकीय क्‍या हो सकता है ? अपने स्‍वर्थ के लिए किसी का खून बहा देना उनके लिए साधारण सी बात है। जिंदगी की जरूरतों ने उन्‍हें नीच हरकतों के लिए मजबूर कर दिया है। पाने की कोशिश में जिंदगी उनके हाथ से फिसलती जाती है। वे इस कदर नीच हैं कि हमें उनसे अधिक सहानुभूति भी नहीं होती। अपनी

दरअसल - फिर से पाकिस्‍तानी कलाकारों का विरोध

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पहले गुलाम अली के गायन पर पाबंदी लगी। महाराष्‍ट्र में सक्रिय शिसेना के नुमाइंदों ने गुलाम अली के कार्यक्रम पर आपत्ति की तो आयोजकों ने तत्‍काल कार्यक्रम ही रद्द कर दिया। हालांकि महाराष्‍ट्र के मुख्‍य मंत्री पे सुरक्षा का आश्‍वासन दिया,लेकिन उस आश्‍वासन में ऐसा भरोसा नहीं था कि गुलाम अली मुंबई में गा सकें। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पहले भी शिवसेना के कार्यकर्ता इसी तरह के हुड़दंग करते रहे हैं। उन्‍होंने पहले भीद पाकिस्‍तानी कलाकारों के खिलाफ बयान दिए हैं। कई बा उनका विरोध आक्रामक और हिंसक भी हुआ है। पाकिस्‍तानी कलाकारों के वर्त्‍तमान विरोध का खास पहरप्रेक्ष्‍य है। इस बार तो केंद्र और राज्‍य में भाजपा की सरकार है। रात्ज्‍य में शिवसेना का उसे सकर्थन भी प्राप्‍त है। न केवल कलाकार, क्रिकेटरों का भी विरोध हो रहा है। उसके पहले एक  राजनयिक के पुस्‍तक विमोचन के अवसर पर तो सुधींद्र कुलकर्णी का मुंह भी काला किया गया। एक तर्क दिया जाता है कि पाकिस्‍तान से आतंकवादी गतिविधियां चलती रहती हैं और बोर्डर पर हमेशा दोनों देशों के बीच कलह रहती है,जिसमें पाकिस्‍तान ही शुरुआत करता

‘दिलवाले’ में वरुण धवन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज        इस साल 18 दिसंबर को रिलीज हो रही ‘ दिलवाले ’ वरुण धवन की 2015 की तीसरी फिल्‍म होगी। इस साल फरवरी में उनकी ‘ बदलापुर ’ और जून में ‘ एबीसीडी 2 ’ रिलीज हो चुकी हैं। ‘ दिलवाले ’ उनकी छठी फिल्‍म होगी। ‘ स्‍टूडेंट ऑफ द ईयर ’ के तीन कलाकारों में वरूण धवन बाकी दोनों आलिया भट्ट और सिद्ार्थ मल्‍होत्रा से एक फिल्‍म आगे हो जाएंगे। अभी तीनों पांच-पांच फिल्‍मों से संख्‍या में बराबर हैं,लेकिन कामयाबी के लिहाज से वरुण धवन अधिक भरोसेमंद अभिनेता के तौर पर उभरे हैं।     वरुण धवन फिलहाल हैदराबाद में रोहित शेट्टी की फिल्‍म ‘ दिलवाले ’ की शूटिंग कर रहे हैं। इस फिल्‍म में वे शाह रुख खान के छोटे भाई बने हैं। उनके साथ कृति सैनन हैं। इन दिनों दोनों के बीच खूब छन रही है। पिछले साठ दिनों से तो वे हैदराबाद में ही हैं। आउटडोर में ऐसी नजदीकी होना स्‍वाभाविक है। यह फिल्‍म के लिए भी अच्‍छा रहता है, क्‍योंकि पर्दे पर कंफर्ट और केमिस्‍ट्री दिखाई पड़ती है। हैदराबाद में फिल्‍म के फुटेज देखने को मिले,उसमें दोनों के बीच के तालमेल से भी यह जाहिर हुआ।     कृति सैनन और वरुण धवन की जोड़

दरअसल : गाने सुनें और पढें भी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज     पिछले से पिछले रविवार को मैं लखनऊ में था। दैनिक जागरण ने अभिव्‍यक्ति की विधाओं पर ‘ संवादी ’ कार्यक्रम का आयेजन किया था। इस के एक सत्र में चर्चित गीतकार इरशाद कामिल गए थे। वहां मैंने उनसे बातचीत की। इस बातजीत में लखनऊ के श्रोताओं ने शिरकत की और सवाल भी पूछे। बातचीत मुख्‍य रूप से इरशाद कामिल के गीतो और उनकी ताजा फिल्‍म ‘ तमाशा ’ पर केंद्रित थी। फिर भी सवाल-जवाब में ऐसे अनेक पहलुओं पर बातें हुई,जो आज के फिल्‍मी गीत-संगीत से संबंधित हैं।     एक पहलू तो यही था कि क्‍या फिल्‍मी गीतों को कभी साहित्‍य का दर्जा हासिल हो सकता है। इरशाद कामिल ने स्‍वयं अने गीतों की अनेक पंक्तियों से उदाहरण्‍ दिए और पूछा कि क्‍या इनमें काव्‍य के गुण नहीं हैं ? क्‍या सिर्फ फिल्‍मों में आने और किसी पाम्‍पुलर स्‍टार के गाने की वजह से उनकी महत्‍ता कम हो जाती है। यह सवाल लंदनवासी तेजेंन्‍द्र शर्मा भी शैलेन्‍द्र के संदर्भ में उठाते हैं। उन्‍होंने तो वृहद अध्‍ययन और संकलन से एक जोरदार प्रेजेंटेशन तैयार किया है। साहित्‍य के पहरूए या आलोचक फिल्‍मी गीतों को साहित्‍य में शामिल नहीं करते। उन

फिल्‍म समीक्षा - शानदार

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नहीं है जानदार शानदार -अजय ब्रह्मात्‍मज     ‘ डेस्टिनेशन वेडिंग ’ पर फिल्‍म बनाने से एक सहूलियत मिल जाती है कि सभी किरदारों को एक कैशल(हिंदी में महल या दुर्ग) में ले जाकर रख दो। देश-दुनिया से उन किरदारों का वास्‍ता खत्‍म। अब उन किरदारों के साथ अपनी पर्दे की दुनिया में रम जाओ। कुछ विदेशी चेहरे दिखें भी तो वे मजदूर या डांसर के तौर पर दिखें। ‘ शानदार ’ विकास बहल की ऐसी ही एक फिल्‍म है,जो रंगीन,चमकीली,सपनीली और भड़कीली है। फिल्‍म देखते समय एहसास रहता है कि हम किसी कल्‍पनालोक में हैं। सब कुछ भव्‍य,विशाल और चमकदार है। साथ ही संशय होता है कि क्‍या इसी फिल्‍मकार की पिछली फिल्‍म ‘ क्‍वीन ’ थी,जिसमें एक सहमी लड़की देश-दुनिया से टकराकर स्‍वतंत्र और समझदार हो जाती है। किसी फिल्‍मकार से यह अपेक्षा उचित नहीं है कि वह एक ही तरह की फिल्‍म बनाए,लेकिन यह अनुचित है कि वह अगली फिल्‍म में इस कदर निराश करे। ‘ शानदार ’ निराश करती है। यह जानदार नहीं हो पाई है। पास बैठे एक युवा दर्शक ने एक दृश्‍य में टिप्‍पणी की कि ‘ ये लोग बिहाइंड द सीन(मेकिंग) फिल्‍म में क्‍यों दिखा रहे हैं ?’     ‘ शानद

अनुभव रहा शानदार - शाहिद कपूर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज       उस दिन शाहिद कपूर ‘ झलक दिखला जा रीलोडेड ’ के फायनल एपीसोड की शूटिंग कर रहे थे। तय हुआ कि वहीं लंच पर इंटरव्‍यू हो जाएगा। मुंबई के गोरेगांव स्थित फिल्मिस्‍तान स्‍टूडियो में उनका वैनिटी वैन शूटिंग फ्लोर के सामने खड़ा था।        पाठकों को बता दें कि यह वैनिटी बैन किसी एसी बस का अदला हुआ रूप होता है। इसके दो-तिहाई हिस्‍से में स्‍टार का एकाधिकार होता है। एक-तिहाई हिस्‍से में उनके पर्सनल स्‍टाफ और उस दिन की शूटिंग के लिए बुलाए गए अन्‍य सहयोगी चढ़ते-उतरते रहते हैं। स्‍टार के कॉस्‍ट्यूम(चेंज के लिए) भी वहीं टंगे होते हें। अमूमन सुनिश्चित मेहमानों को इसी हिस्‍से के कक्ष में इंतजार के लिए बिठाया जाता है। स्‍टार की हामी मिलने के बाद बीच का दरवाजा खुलता है और स्टार आप के सामने अपने सबसे विनम्र रूप में रहते हैं। आखिर फिल्‍म की रिलीज के समय इंटरव्‍यू का वक्‍त होता है। स्‍टार और उनके स्‍टाफ को लगता है कि अभी खुश और संतुष्‍ट कर दिया तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। इतनी बार चाय या काफी या ठंडा पूछा जाता है कि लगने लगता है कि अगर अब ना की तो ये जानवर समझ कर मुंह में कां

जीवन के आठ पाठ - शाह रुख खान

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So here’s my first life lesson, inspired by the movie title ‘Deewana’: MaMadness (of the particularly nice / romantic kind) is an absolute prerequisite to a happy and successful life. Don’t ever treat your little insanities as if they are aberrations that ought to be hidden from the rest of the world. Acknowledge them and us them to define your own way of living the only life you have. All the beautiful people in the world, the most creative, the ones who led revolutions, who discovered and invented things, did so because they embraced their own idiosyncrasies. There’s no such thing as “normal”. That’s just another word for lifeless. Life Lesson 2: So my next lesson is the following: If you ever find yourself cheated of all your money and sleeping on a grave, do not fear, a miracle is near, either that or a ghost. All you have to do is fall asleep! In other words, no matter how bad it gets, life IS the miracle you are searching for. There is no other one around the

फिल्‍म समीक्षा : प्‍यार का पंचनामा 2

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प्रेम का महानगरीय प्रहसन प्‍यार का पंचनामा 2 -अजय ब्रह्मात्‍मज      ‘ प्‍यार का पंचनामा ’ देख रखी है तो ‘ प्‍यार का पंचनामा 2 ’ में अधिक नयापन नहीं महसूस होगा। वैसे ही किरदार हैं। तीन लड़के है और तीन लड़कियां भी इनके अलावा कुछ दोस्‍त हैं और कुछ सहेलियां। तीनों लड़कों की जिंदगी में अभी लड़कियां नहीं हैं। ऐसा संयोग होता है कि उन तीनों लड़कों की जिंदगी में एक साथ प्रेम टपकता है। और फिर पहली फिल्‍म की तरह ही रोमांस, झगड़े, गलतफहमी और फिर अलगाव का नाटक रचा जाता है। निश्चित रूप से पूरी फिल्‍म लड़कों के दृष्टिकोण से है, इसलिए उनका मेल शॉविनिज्‍म से भरपूर रवैया दिखाई पड़ता है। अगर नारीवादी नजरिए से सोचें तो यह फिल्‍म घोर पुरुषवादी और नारी विरोधी है। दरअसल, ‘ प्‍यार का पंचनामा 2 ’ स्‍त्री-पुरुष संबंधों का महानगरीय प्रहसन है। कॉलेज से निकले और नौकरी पाने के पहले के बेराजगार शहरी लड़कों की कहानी लगभग एक सी होती है। उपभोक्‍ता संस्‍कृति के विकास के बाद प्रेम की तलाश में भटकते लड़के और लड़कियों की रुचियों, पसंद और प्राथमिकताओं में काफी बदलाव आ गया है। नजरिया बदला है और संबंध भी

फिलम समीक्षा : वेडिंग पुलाव

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बासी और ठंडा पुलाव -अजय ब्रह्मात्‍मज     यह फिल्‍म अनुष्‍का रंजन के माता-पिता ने बेटी की लौंचिंग के लिए बनाई है। ऐसी लौंचिंग फिल्‍म में लेखकों को हिदायत रहती है कि सारा जोर उस कलाकार पर हो, जिसे लौंच किया जा रहा है। फिल्‍म में उसके लिए ऐसे दृश्‍य होने चाहिए, जिसमें उस कलाकार की क्षमता और प्रतिभा का परिख्‍य मिले। ऐसी फिल्‍में वास्‍तव में फिल्‍म से अधिक नवोदित कलाकार का पोर्टफोलियो होती हैं, जो एक साथ दर्शकों और इंडस्‍ट़ी के लिए पेश की जाती है।     इस लिहाज से इस फिल्‍म की कहानी अनुष्‍का रंजन को ध्‍यान में रख कर लिखी गई है। फिल्‍म के आरंभ से अ‍ाखिर तक खयाल रखा गया है कि किसी और किरदार की तरफ दर्शक आकर्षित न हो जाएं, इसीलिए दिगंत, मनचले, सोनाली सहगल और करण ग्रोवर के किरदारों को बढ़ने का मौका ही नहीं दिया गया है। हर बार फिल्‍म लौट कर अनुष्‍का पर आ जाती है। उनके किरदार तक का नाम अनुष्‍का रख दिया गया है।     अनुष्‍का सामान्‍य हैं। स्‍क्रीन पर वह अच्‍छी लगती हैं। अपनी लंबाई से उन्‍हें झेंप नहीं आती। उनकी मुस्‍कराहट बौर कद-काठी अच्‍छी है। भावनात्‍मक दृश्‍यों में अभी उन्‍हें औ

दरअसल : जब सेलेब्रिटी पूछते हैं सवाल

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- अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों ट्विटर पर एक मित्र ने टिप्पणी की। उनकी टिप्पणी का आशय था कि फिल्मों के पत्रकार किसी   सेलेब्रिटी की तरह सवाल नहीं पूछते।   सेलेब्रिटी चैट शो में जब एक   सेलेब्रिटी दूसरे   सेलेब्रिटी से बात करता है तो उनके सवाल-जवाब बेहद अंतरंग और निजी होते हें। जानी-अनजानी बातें सुनाई पड़ती हैं। ऐसा लगता है कि सितारे अपने जिंदगी के रहस्‍य खोल रहे हों। मित्र ने यह टिप्‍पणी ‘ द अनुपम खेर शो-कुछ भी हो सकता है ’ देख कर की थी। भारतीय टीवी पर फिल्‍म सेलेब्रिटी के चैट शो बहुत पॉपुलर होते हैं। साल-दो साल में कोई नया सेलेब्रिटी एंकर ऐसे शो लेकर आता है। पिछले कुछ सालों में ‘ कॉफी दि करण ’ को सर्वाधिक लोकप्रियता मिली है। से‍लेब्रिटी चैट शो के इतिहास से वाकिफ लोगों को मालूम है कि दमरदर्शन के जमाने में तबस्‍सुम ‘ फूल खिले हैं गुलशन गुलशन ’ शो लेकर आती थीं। इस शो में हिंदी फिल्‍मों की पॉपुलर हस्तियों से तबस्‍सुम बातें करती थीं और उन्‍हें अपनी खास मुस्‍कराहट के साथ पेश करती थीं। सैटेलाइट टीवी के अस्तित्‍व और प्रसार में आने के बाद मुस्‍कराहट कम हुई और हर शो होस्‍ट के मिजाज क