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फिल्‍म समीक्षा : आलवेज कभी कभी

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फिर से जेनरेशन गैप -अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्म के शीर्षक का इस्तेमाल करूं तो मुझे आलवेज कभी कभी आश्चर्य होता है कि अनुभवी और कामयाब स्टारों से भी क्यों ऐसी भूलें होती हैं? शाहरूख खान हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सफलता के पर्याय हैं। मतलब यह कि वे जानते-समझते होंगे कि अच्छी फिल्मों में क्या-क्या नहीं होना चाहिए? उनके होम प्रोडक्शन की ताजा फिल्म आलवेज कभी कभी निराश करती है। हम लोगों ने अभी हाल ही में तो फालतू देखी थी। वहां भी शिक्षा व्यवस्था और युवकों एवं अभिभावकों के बीच पीढि़यों के अंतर से पैदा हुई गलतफहमियां थीं। 3 इडियट में तो इसे और अच्छे तरीके से चित्रित किया गया था। बहरहाल शाहरूख खान ने पुराने मित्र रोशन अब्बास के निर्देशक बनने की तमन्न ा पूरी कर दी और इस फिल्म में कुछ नए चेहरों को अपना टैलेंट दिखाने का मौका मिला। उम्मीद है उन्हें आगे भी फिल्में मिलेंगी। फिल्म की शुरूआत में किरदारों के बीच के रिश्ते को स्थापित करने और मूल बात तक आने में लेखक-निर्देशक ने लंबा समय लगा दिया है। इंटरवल के पहले कहानी का सिरा ही पकड़ में नहीं आता। बाद में दो स्तरों पर द्वंद्व उभरता है। बारहवीं के