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एक सुखद अनुभूति थी आलम आरा-सुरेन्‍द्र कुमार वर्मा

यह लेख 14 मार्च 2011 को दैनिक जागरण के राष्‍ट्रीय संस्‍करण मेंछपा है... भारतीय सिनेमा के लिए वह दिन बहुत खास था। दर्शक रुपहले परदे पर कलाकारों को बोलते हुए देखने को आकुल थे। हर तरफ चर्चा थी कि परदे पर कैसे कोई कलाकार बोलते हुए दिखाई देगा। आखिरकार 14 मार्च 1931 को वह ऐतिहासिक दिन आया, जब बंबई (अब मुंबई) के मैजिस्टक सिनेमा में आलम-आरा के रूप में देश की पहली बोलती फिल्म रिलीज की गई। उस समय दर्शकों में इसे लेकर काफी कौतूहल रहा था। फिल्म में अभिनेत्री जुबैदा के अलावा पृथ्वी राज कपूर, मास्टर विट्ठल, जगदीश सेठी और एलवी प्रसाद प्रमुख कलाकार थे, जिन्हें लोग पहले परदे पर कलाकारी करते हुए देख चुके थे, लेकिन पहली बार परदे पर उनकी आवाज सुनने की चाह सभी में थी। दादा साहेब फाल्के ने अगर भारत में मूक सिनेमा की नींव रखी तो अर्देशिर ईरानी ने बोलती फिल्मों का नया युग शुरू किया। हालांकि इससे पूर्व कोलकाता तब कलकत्ता की फिल्म कंपनी मादन थिएटर्स ने चार फरवरी 1931 को एंपायर सिनेमा (मुंबई) में दो लघु फिल्में दिखाई थी, लेकिन इस फिल्म में कहानी को छोड़कर नृत्य और संगीत के दृश्य थे। इसलिए आलम-आरा को देश की पहली