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बेवकूफ हैं जंग के पैरोकार – सलमान खान

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जंग के पैरोकारों को लगता है, वे बच जाएंगे ! ...हाहाहा – सलमान खान हॉलीवुड में सुपरमैन और स्‍पाइडरमैन जैसे सुपरहीरो, जिन्‍हें देखने के लिए दुनिया के अधिकांश देशों के दर्शक इंतजार करते होंगे। भारत में खास कर हिंदी दर्शकों को तो सलमान( Sal Man ) का इंतजार रहता है। पिछले कुछ सालों से वे अपनी फिल्‍मों की ईदी लेकर दर्शकों के बीच मनोरंजन बांटने आ जाते हैं। उन्‍होंने धीरे-धीरे एक फार्मूला तैयार किया है। वे इस फार्मूले के दायरे के बाहर नहीं जाते। उन्‍होंने अपनी सीमाओं के अंदर ही खूबियां खोज ली हैं और दर्शकों के चहेते बने हुए हैं। इस साल ईद के मौके पर उनकी फिल्‍म ‘ ट्यूबलाइट ’ आ रही है। कबीर खान के साथ तीसरी बार उनकी जुगलबंदी नजर आएगी। ‘ एक था टाइगर ’ और ‘ बजरंगी भाईजान ’ की कामयाबी और तारीफ के बाद ‘ ट्यूबलाइट ’ में उनकी जोड़ी फिर से दर्शकों को हंसाने और रुलाने आ रही है। सलमान खान ने झंकार के पाठकों के लिए अजय ब्रह्मात्‍मज से बातें कीं। - ‘ ट्यूबलाइट ’ की रिलीज के मौके पर हिंदी प्रदेशों के दर्शकों को क्‍या बताना चाहेंगे ? 0 आप ने नोटिस किया होगा कि पिछले कुछ सालों से मैं वैसी

मेनस्ट्रीम स्पेस में ही कुछ कहना है- कबीर खान

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-अजय ब्रह्मात्‍मज कबीर खान हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अनोखे निर्देशक हैं। उनकी मेनस्ट्रीम फिल्मों में कंटेंट की पर्याप्त मात्रा रहती है। वे खुद को राजनीतिक रूप से जागरूक और सचेत फिल्मकार मानते हैं। उनकी फिल्में सबूत हैं। इस बार वे ‘बजरंगी भाईजान’ लेकर आ रहे हैं। उन्होंने झंकार के लिए अजय ब्रह्मात्मज से बातचीत की  ¸ ¸ ¸ -‘बजरंगी भाईजान’ में बजरंगी का सफर सिर्फ भावनात्मक है या उसका कोई राजनीतिक पहलू भी है? भारत-पाकिस्तान का संदर्भ आएगा तो राजनीति आ ही जाएगी। मेरी कोशिश रहती है कि फिल्मों का संदर्भ रियल हो। मैं मेनस्ट्रीम सिनेमा में रियल बैकड्रॉप की कहानी कहता हूं। बिना राजनीति के कोई इंसान जी नहीं सकता। मुझे राजनीतिक संदर्भ से हीन फिल्में अजीब लगती हैं। राजनीति से मेरा आशय पार्टी-पॉलिटिक्स नहीं है। ‘बजरंगी भाईजान’ में स्ट्रांग राजनीतिक संदर्भ है। -पहली बार किसी फिल्म इवेंट में आप के मुंह से ‘पॉलिटिक्स ऑफ द फिल्म’ जैसा टर्म सुनाई पड़ा था? मेरे लिए वह बहुत जरूरी है। अपने यहां इस पर बात नहीं होती। समीक्षक भी फिल्म की राजनीति की बातें नहीं कहते। मैं फिल्म में कोई भी कमी बर्दाश्त कर सकता

फिल्‍म समीक्षा : बजरंगी भाईजान

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  सलमान खान की ‘बजरंगी भाईजान’ को देखने के कई तरीके हो सकते हैं। पॉपुलर स्टार सलमान की फिल्में समीक्षा से परे होती हैं। खरी-खोटी लिखने या बताने से बेहतर होता है कि फिल्मों की अपील की बातें की जाएं। सलमान खान की खास शैली है। एक फॉर्मूला सा बन गया है।  ‘वांटेड’ के बाद से उनकी फिल्मों में इसी का इस्तेमाल हो रहा है। निर्देशक बदलते रहते हैं, लेकिन सलमान खान वही रहते हैं। बात तब अलग हो जाती है, जब उन्हें राजनीतिक रूप से सचेत निर्देशक कबीर खान मिल जाते हैं। मनोरंजन के मसाले मेे मुद्दा मिला दिया जाता है। स्वाद बदलता है और फिल्म का प्रभाव भी बदलता है। कबीर खान ने बहुत चालाकी से सलमान की छवि का इस्तेमाल किया है और अपनी बात सरल तरीके से कह दी है। इस सरलता में तर्क डूब जाता है। तर्क क्यों खोजें? आम आदमी की जिंदगी भी तो एक ही नियम से नहीं चलती। ‘बजरंगी भाईजान’ बड़े सहज तरीके से भारतीय और पाकिस्तानी समाज में सालों से जमी गलतफहमी की काई को खुरच देती है। पॉपुलर कल्चर में इससे अधिक की उम्मीद करना उचित नहीं है। सिनेमा समाज को प्रभावित जरूर करता है, लेकिन दुष्प्रभाव ही ज्यादा दिखत

खुद पर हमेशा रखना चट्टान सा भरोसा -करीना कपूर खान

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  -क्या कुछ है ‘बजरंगी भाईजान’ और जाहिर तौर पर क्या निभा रही हैं आप? फिल्म के साथ सबसे रोचक बात तो यह है कि सलमान के संग फिर से काम कर रही हूं। ‘बॉडीगार्ड’ सफल रही थी। आम जनता भी काफी उत्साहित है कि हम दोनों साथ आ रहे हैं। फिल्म की यूएसपी कबीर खान भी हैं। मैंने पहले कभी उनके संग काम नहीं किया। वह बड़ा रोचक अनुभव रहा। मेरा किरदार बड़ा मजेदार है। वह चांदनी चौक के एक स्कूल में टीचर है। वह कैसे सलमान के किरदार से मिलती है? कैसे एक बच्ची उनकी जिंदगी में आती है? दोनों फिर कैसे उसे उसके घर पहुंचाते हैं, वह सब कुछ फिल्म में है। - बाकी फिल्म में गाने-वाने तो होंगे ही? हां, पर वे सब जरा हटकर हैं। ऐसे नहीं कि लंदन में प्रेमी-प्रेमिका नाच-गाना कर रहे हैं। -और वह टीचर कैसी है? साड़ी वाली या..? नहीं, यंग और मॉडर्न। टिपिकल चांदनी चौक वाली। वह लुक और फील तो आएगा। - .. लेकिन दिल्ली वाली लड़कियों का रोल तो आपने पहले भी किया है? यह वाली बड़ी मैच्योर है। पहले थोड़े बबली, चर्पी किस्म की लड़की का किरदार निभाया था। ‘जब वी मेट’ वाला तो बिल्कुल अलग ही मामला था। हां, उसे लोग मेरा सिग्नेचर रोल कह

मंडावा में सलमान खान

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सलमान खान इन दिनों कबीर खान की फिल्‍म 'बजरंगी भाईजान' की शूटिंग राजस्‍थान के मंडावा में चल रही है। मंडावा बेहद खूबसूरत कस्‍बाई शहर है। यूरोप के किसी भी छोटे शहर को मात देती इस शहर की खूबसूरती मन मोह लेती है। पिछले साल 2014 में 'पीके' और 'जेड प्‍लस' की शूटिंग यहां हुई। अगर राजस्‍थान के मशहूर शहरों से अलग और विशेष कुछ देखना हो तो तंडावा जरूर जाएं।  चवन्‍नी के लिए ये तस्‍वीरें इंडीसिने के सौजन्‍य से ली जा रही हैं।

फिल्‍म समीक्षा : एक था टाइगर

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फार्मूलाबद्ध फिल्म है एक था टाइगर -अजय ब्रह्मात्‍मज  भारत,आयरलैंड,तुर्की,क्यूबा और थाईलैंड से घूमती-घुमाती एक था टाइगर तुर्की में खत्म होती है। माशाल्लाह गाना तुर्की में ही फिल्माया गया है। यह गाना फिल्म के अंत में कास्टिंग रोल के साथ आता है। यशराज फिल्म्स ने यह अच्छा प्रयोग किया है कि कास्ट रोल स्क्रीन को छेंकते हुए नीचे से ऊपर जाने के बजाए दाएं से बाएं जाता है। हम सलमान खान और कट्रीना कैफ को नाचते-गाते देख पाते हैं। इसके अलावा फिल्म में ठूंस-ठूंस कर एक्शन भरा गया है। हाल-फिलहाल में में दक्षिण भारतीय फिल्मों से आयातित रॉ एक्शन देखते-देखते अघा चुके दर्शकों को एक था टाइगर के एक्शन में ताजगी दिखेगी। इस फिल्म में हीरोइन के भी एक्शन सीन हैं। कॉनरेड पाल्मिसैनो की सलाह से किए गए एक्शन में स्फूर्ति नजर आती है और वह मुमकिन सा लगता है। वैसे इस फिल्म में भी हीरो का निशाना कभी खाली नहीं जाता, जबकि दुश्मनों को शायद गोली चलाने ही नहीं आता। फिल्में हिंदी की हों या किसी और भाषा की। हीरो हमेशा अक्षत रहता है। कबीर खान निर्देशित एक था टाइगर जासूसी टाइप की फिल्म है। मिशन पर निकला

फ़िल्म समीक्षा:न्यूयार्क

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दोस्ती, प्यार, आतंकवाद व अमेरिका -अजय ब्रह्मात्मज कबीर खान सजग फिल्मकार हैं। पहले काबुल एक्सप्रेस और अब न्यूयार्क में उन्होंने आतंकवाद के प्रभाव और पृष्ठभूमि में कुछ व्यक्तियों की कथा बुनी है। हर बड़ी घटना-दुर्घटना कुछ व्यक्तियों की जिंदगी को गहरे रूप में प्रभावित करती है। न्यूयार्क में 9/11 की पृष्ठभूमि और घटना है। इस हादसे की पृष्ठभूमि में हम कुछ किरदारों की बदलती जिंदगी की मुश्किलों को देखते हैं। उमर (नील नितिन मुकेश) पहली बार न्यूयार्क पहुंचता है। वहां उसकी मुलाकात पहले माया (कैटरीना कैफ) और फिर सैम (जान अब्राहम) से होती है। तीनों की दोस्ती में दो प्रेम कहानियां चलती हैं। उमर को लगता है कि माया उससे प्रेम करती है, जबकि माया का प्रेम सैम के प्रति जाहिर होता है। हिंदी फिल्मों की ऐसी स्थितियों में दूसरा हीरो त्याग की मूर्ति बन जाता है। यहां भी वही होता है, लेकिन बीच में थोड़ा एक्शन और आतंकवाद आता है। आतंकवाद की वजह से फिल्म का निर्वाह बदल जाता है। स्पष्ट है कि उमर और सैम यानी समीर मजहब से मुसलमान हैं। उन पर अमेरिका की खुफिया एजेंसी एफबीआई को शक होता है। कहते हैं 9/11 के बाद अमेरिका म