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मिडिल क्‍लास औरत की अधूरी कहानी-महेश भट्ट

-अजय ब्रह्मात्‍मज     सोल्जिनित्सिन ने कहा था कि किसी भी समाज की भावनात्‍मक गहराई नापनी हो तो उस समाज की कलाएं देख लें। उससे आप उस समाज के नैतिक रेशों को पहचान लेंगे। मौसम बदलता है तो पत्‍तों से पता चलता है। समाज में परिवर्तन की आहट फिल्‍मों की बदलती कहानियों से मिलने लगती है। उनका ढांचा बदलता है। मुझे लगता है कि भारतीय समाज में गहरे स्‍तर पर परिवर्तन घट चुका है। अब मुंबई की फिल्‍म इंडस्‍ट्री में इसे महसूस किया जा रहा है। ‘ पीकू ’ और ‘ तनु वेड्स मनु रिटर्न्‍स ’ इसके उदाहरण हैं। इसकी कड़ी में ‘ हमारी अधूरी कहानी ’ को देख सकते हैं। 21 वीं   सदी के दूसरे दशक में आ रही इन फिल्‍मों को देख कर लोगों को लग रहा है कि ऐसी कहानियां पहले नहीं आई थीं। मैं तो   कहूंगा कि ऐसा सिनेमा पहले भी था, अपनी जड़ों से जुड़ा और संस्‍कृति से संबद्ध।     अभी की फिल्‍मों के रिदार पहले से जटिल हो गए हैं। संस्‍कारों की लगाम से वे मुक्‍त होना चाहते हैं। ‘ हमारी अधूरी कहानी ’ मिडिल क्‍लास हिंदुस्‍तानी औरत की कहानी है। वह मंगलसूत्र पहनती है। बिंदी लगाती है। अकेली जान ही संतान पालती है। इसकी प्रेरणा मुझे