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Showing posts from June, 2016

नहीं चला तीन का तुक्‍का . पूजा श्रीवास्‍तव

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नहीं चला तीन का तुक्क -पूजा श्रीवास्तव     अमिताभ बच्चन हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के शायद अकेले एैसे कलाकार हैं जो छोटी और महत्वहीन भूमिका में  भी अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करते हैं। लेकिन उनके खाते भी एैसी बहुत सी फिल्में हैं जो उनकी सशक्त उपस्थिति के बावजूद दर्शकों द्वारा नकार दी गई हैं। हाल ही में आई तीन एक ऐसी ही फिल्म है जिसका पूरा बोझ अमिताभ बच्चन अकेले ही अपने कंधे पर ढोते हुए दिखाई देते हैं। एैसा नहीं है कि फिल्म में बेहतर कलाकारों की कमी हो।  मगर विद्या बालन ,नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, सव्यसाची चक्रवर्ती जैसे सशक्त कलाकारों से सजी ये फिल्म, स्क्रिप्ट और उसके ट्रीटमेंट के स्तर पर मात खा गई है।     फिल्म दक्षिण कोरियाई फिल्म मोटांज से प्रेरित है। वैसे भी अपने देश में सस्पेन्स और थ्रिल से  भरपूर फिल्मों का बेहद अभाव है। जो इक्का दुक्का फिल्में बनती भी हैं उनमें थ्रिल और सस्पेन्स से ज़्यादा उत्तेजक दृश्यों का तड़का लगा होता है। इसलिए गंभीर दर्शक ऐसी फिल्मों से कन्नी काटते हैं। फिल्म तीन के प्रति आकर्षण की वजह इसका कथानक तो था ही, इसके कलाकार  भी हैं। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने अपनी

दरअसल : बधाई आलिया भट्ट

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले शुक्रवार को विवादित फिल्‍म ‘ उड़ता पंजाब ’ रिलीज हुई। अभिषेक चौबे की इस फिल्‍म के निर्माताओं में अनुराग कश्‍यप भी हैं। उन्‍होंने इस फिल्‍म की लड़ाई लड़ी। सीबीएफसी के खिलाफ उनकी इस जंग में मीडिया और फिल्‍म इंडस्‍ट्री का साथ रहा। कोर्ट के फैसले से एक कट के साथ ‘ उड़ता पंजाब ’ सिनेमाघरों में पहुंच गई। हाल-फिलहाल में किसी और फिल्‍म को लेकर निर्माता और सीबीएफसी के बीच ऐसा घमासान नहीं हुआ था। इस घमासान में ‘ उड़ता पंजाब ’ विजयी होकर निकली है। इस फिल्‍म में मुख्‍य कलाकारों के परफारमेंस की तारीफ हो रही है। शाहिद कपूर और आलिया भट्ट दोनों ने अपनी हदें तोड़ी हैं। उन्‍होंने निर्देशक अभिषेक चौबे की कल्‍पना को साकार किया है। पिछले शुक्रवार रिलीज के दिन ही ग्‍यारह बजे रात में महेश भट्ट का फोन आया। गदगद भाव से वे बता रहे थे कि आलिया भट्ट की चौतरफा तारीफ हो रही है। उन्‍होंने मुझे मेरी ही बात याद दिलाई। मैं इम्तियाज अली की फिल्‍म ‘ हाईवे ’ की काश्‍मीर की शूटिंग से लौटा था। मैंने उन्‍हें बताया था कि एक पहाड़ी पर मैंने आलिया का जमीन पर गहरी नींद में लेटे देखा। मेरे

मदारी का गीत डम डमा डमडमडम

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आलोक धन्‍वा कहते हैं कि अगर हिंदी फिल्‍मों के गीतों को सुनने के साथ पढ़ा भी जाए तो उनके नए अर्थ निकलेंगे। मदारी का यह गीत पाठकों और दर्शकों से पढ़ने की मांग करता है। आप निजी भाष्‍य,व्‍याख्‍या और अभिप्रेत के लिए स्‍वतंत्र है।  फिल्‍म - मदारी गीतकार - इरशाद कामिल निर्देशक - निशिकांत कामत कलाकार - इरफान खान डमा डमा डम 
 डमडम डमडम 
 डमा डमा डम 
 डमडम डमडम 
 डमा डमा डम 
 डमडम डमडम डू टी वी पे ये ख़बर भी आनी करके जनहित में क़ुर्बानी गये मंत्री जंगल पानी रे … डमा डमा डम 
 डमडम डमडम 
 डमा डमा डम 
 डमडम डमडम 
 डमा डमा डम 
 डमडम डमडम डू ... फटा फटाफट गुस्सा करके मिला मिलावट मन में भरके बना बनावट करके बैरी तू … औसत बन्दा भूखा मर गया तेरा चमचा खेती चर गया संसद बैठा खाये चैरी तू … जैसे पहले लगी पड़ी थी वैसे अब भी लगी पड़ी है ये राजा भी निरा लोमड़ी है लाल क़िले का हाल वही है कोई पैजामा पहन खड़ा या

ले लिया है चैलेंज : शाहिद कपूर

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‘ -स्मिता श्रीवास्‍तव शाहिद कपूर लगातार वरायटी रोल कर रहे हैं। खासकर वैसे युवाओं का, जो किन्हीं कारणों से ‘भटका’ हुआ या बागी है। मिसाल के तौर पर ‘ हैदर ’ में बागी युवक। अब ‘ उड़ता पंजाब ’ में वह भटके हुए रॉक स्टार की भूमिका में हैं। ‘हैदर’ में किरदार को रियल टच देने के लिए उन्होंने सिर मुंडवाया था। यहां उनके लंबे बाल हैं। शरीर पर टैटूओं की पेंटिंग है। साथ में ज्वैलरी है।         शाहिद कहते हैं , ‘‘ लोग मुझे ऐसी फिल्में करने से मना करते हैं। उनकी दलील रहती है कि पता नहीं वैसी फिल्मों की कितनी आडियंस होगी। मेरा मानना है अगर कहानी उम्दा हो , उसमें इमोशन और एंटरटेनमेंट हो तो उम्मीद से अधिक आडियंस उसे देखती है। साथ ही कहानी अच्छी से कही गई हो तो। आडियंस अब उम्दा कहानियां ही देखना चाहती है।‘ एक वक्त ऐसा भी था जब ‘उड़ता पंजाब’ खटाई में पड़ गई थी। दरअसल , मैंने स्वीकृति दे दी थी। बाकी तीन किरदारों को लेकर कलाकार संशय में थे। वे फैसला नहीं कर पा रहे थे कि करे या न करें। यह फैसला आसान भी नहीं था। यह जोखिम भरा कदम था। मुझे लगा यह सुअवसर है। दर्शकों ने मुझे इस अवतार में न देखा

दरअसल : हो सकता है एक और विवाद

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अभिषेक चौबे की ‘ उड़ता पंजाब ’ पर हाई कोर्ट की सुनवाई से आई खबरों को सही मानें तो केवल एक कट के साथ फिल्‍म रिलीज करने का आदेश मिल जाएगा। पिछले दिनों यह फिल्‍म भयंकर विवाद में रही। फिल्‍म के निर्माताओं में से एक अनुराग कश्‍यप ने सीबीएफसी की आरंभिक आपत्ति के बाद से ही मोर्चा खोल लिया था। सीबीएफसी के पुराने अनुभवों और गुत्थियों की जानकारी होने की वजह से उनके पार्टनर ने अनुराग कश्‍यप को सामने कर दिया था। उन्‍होंने सलीके से अपना विरोध जाहिर किया। और सीबीएफसी के खिलाफ फिल्‍म इंडस्‍ट्री को लामबंद किया। फिल्‍म इंडस्‍ट्री के कुछ संगठन साने आए। सभी फिल्‍मों को अनुराग कश्‍यप जैसा जुझारू और जानकार निर्माता नहीं मिलता। ज्‍यादातर लोग सिस्‍टम से टकराने या उसके आगे खड़े होने के बजाए झुक जाना पसंद करते हैं। ‘ उड़ता पंजाब ’ ने निर्माताओं का राह दिखाई है कि अगर उन्‍हें अपनी क्रिएटिविटी और फिल्‍म पर यकीन है तो तो वे इसी सिस्‍टम में अपनी लड़ाई लड़ कर विजय भी हा‍सिल कर सकते हैं। दरअसल,ज्‍यादातर निर्माता पर्याप्‍त तैयारी और समय के साथ फिल्‍म प्रमाणन बोर्ड नहीं आते। फिल्‍

फिल्‍म समीक्षा : धनक

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-अजय ब्रह्मात्‍मज नागेश कुकुनूर की ‘ धनक ’ छोटू और परी भाई-बहन की कहानी है। वे अपने चाचा-चाची के साथ रहते हैं। चाचा बीमार और निकम्‍मे हें। चाची उन्‍हें बिल्‍कुल पसंद नहीं करती। उनके जीवन में अनेक दिक्‍कतें हैं। भाई-बहन को फिल्‍मों का शौक है। उनके अपने पसंदीदा कलाकार भी है। बहन शाह रुख खान की दीवानी है तो भाई सलमान खान को पसंद करता है। अपने हिसाब से वे पसंदीदा स्‍टारों की तारीफें करते हें। और उनसे उम्‍मीदें भी पालते हैं। भाई की आंखें चली गई हैं। बहन की कोशिश है कि भाई की आंखों में रोशनी लौटे। पिता के साथ एक फिल्‍म देखने के दौरान बहन को तमाम फिल्‍मी पोस्‍टरों के बीच एक पोस्‍टर दिखता है। उस पोस्‍टर में शाह रुख खान ने नेत्रदान की अपील की है। यह पोस्‍टर ही परी का भरोसा बन जाता है। घर की झंझटों के बीच परी और छोटू का उत्‍साह कभी कम नहीं होता। उनका आधा समय तो सलमान और शाह रुख में कौन अच्‍छा के झगड़े में ही निकल जाता है। छोटू जिंदादिल और प्रखर लड़का है। उसे किसी प्रकार की झेंप नहीं होती। हमेशा दिल की बात कह देता है। सच बता देता है। परी और छोटू को पता चलता है कि जैसलमेर में शा

फिल्‍म समीक्षा : उड़ता पंजाब

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-अजय ब्रह्मात्‍मज (हिंदी फिल्‍म के रूप में प्रमाणित हुई ‘ उड़ता पंजाब ’ की मुख्‍य भाषा पंजाबी है। एक किरदार की भाषा भोजपुरी है। बाकी संवादों और संभाषणों में पंजाबी का असर है।) विवादित फिल्‍मों के साथ एक समस्‍या जुड़ जाती है। आम दर्शक भी इसे देखते समय उन विवादित पहलुओं पर गौर करता है। फिल्‍म में उनके आने का इंतजार करता है। ऐसे में फिल्‍म का मर्म छूट जाता है। ‘ उड़ता पंजाब ’ और सीबीएफसी के बीच चले विवाद में पंजाब,गालियां,ड्रग्‍स और अश्‍लीलता का इतना उल्‍लेख हुआ है कि पर्दे पर उन दृश्‍यों को देखते और सुनते समय दर्शक भी जज बन जाता है और विवादों पर अपनी राय कायम करता है। फिल्‍म के रसास्‍वादन में इससे फर्क पड़ता है। ‘ उड़ता पंजाब ’ के साथ यह समस्‍या बनी रहेगी। ‘ उड़ता पंजाब ’ मुद्दों से सीधे टकराती और उन्‍हें सामयिक परिप्रेक्ष्‍य में रखती है। फिल्‍म की शुरूआत में ही पाकिस्‍तानी सीमा से किसी खिलाड़ी के हाथों से फेंका गया डिस्‍कनुमा पैकेट जब भारत में जमीन पर गिरने से पहले पर्दे पर रुकता है और उस पर फिल्‍म का टायटल उभरता है तो हम एकबारगी पंजाब पहुंच जाते हैं। फिल्‍म के टाय

सवाल पूछना मेरे सिस्‍टम में है - निशिकांत कामत

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-अजय ब्रह्मात्‍मज यकीन करते हैं इरफान इरफान और मैंने १९९४ में एक साथ काम किया था। तब मैं नया-नया डायरेक्टर बना था। इरफान भी नए-नए एक्टर थे। वह तब टीवी में काम करते थे। उसके चौदह साल बाद   हम ने मुंबई मेरी जान में काम किया। अभी तकरीबन सात साल बाद मदारी में फिर से साथ हुए। हमारी दोस्ती हमेशा से रही है। एक दूसरे के प्रति परस्पर आदर का भाव रहा है। इत्तफाक की बात है कि मदारी की स्क्रिप्ट मेरी नहीं थी। इरफान ने यह स्क्रिप्ट रितेश शाह के साथ तैयार की थी। एक दिन इरफान ने मुझे फोन किया कि एक स्क्रिप्ट पर बात करनी है। वह स्क्रिप्ट मदारी की थी। इरफान साहब को लगा कि मदारी मुझे डायरेक्ट करनी चाहिए। इस तरह मदारी की प्रक्रिया शुरू हुई। इस बातचीत के छह महीने बाद फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई। मेरे लिए यह अब तक की सबसे जटिल स्क्रिप्ट यह मल्टीलेयर फिल्‍म है। मैं कई बार स्क्रिप्ट पढ़ चुका था। मैं स्क्रिप्ट हर सिरे और लेयर को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। डर था कि कहीं कुछ मिस तो नहीं हो रहा है। मदारी की कहानी एक स्‍तर पर यह बाप और बेटे की कहानी है। उनका मजबूत रिश्ता होता है। जब नया बच