फिल्म समीक्षा : रॉय
*1/2 डेढ़ स्टार -अजय ब्रह्मात्मज बहुत कम फिल्में ऐसी होती हैं,जो आरंंभ से अंत तक दर्शकों को बांध ही न पाएं। विक्रमजीत सिंह की 'रॉय' ऐसी ही फिल्म है। साधारण फिल्मों में भी कुछ दृश्य, गीत और सिक्वेंस मिल जाते हैं,जिसे दर्शकों का मन बहल जाता है। 'रॉय' लगातार उलझती और उलझाती जाती है। हालांकि इसमें दो पॉपुलर हीरो हैं। रणबीर कपूर और अर्जुन रामपाल का आकर्षण भी काम नहीं आता। ऊपर से डबल रोल में आई जैक्लीन फर्नांडिस डबल बोर करती हैं। आयशा और टीया में बताने पर ही फर्क मालूम होता है या फिर रणबीर और अर्जुन के साथ होने पर पता चलता है कि वे दो हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बैकड्राप पर बनी 'रॉय' इंडस्ट्री की गॉसिप इमेज ही पेश करती है। फिल्म के एक नायक कबीर ग्रेवाल के 22 संबंध रह चुके हैं। उनके बारे में मशहूर है कि वे अपनी प्रेमिकाओं की हमशक्लों को फिल्मों की हीरोइन बनाते हैं। कुछ सुनी-सुनाई बात लग रही है न ? बहरहाल,'रॉय' कबीर और रॉय की कहानी है। रॉय चोर है और कबीर उसकी चोरी से प्रभावित है। वह उस पर दो फिल्में बना चुका है। तीसरी फिल्म की