फिल्म समीक्षा : कर ले प्यार कर ले
-अजय ब्रह्मात्मज निर्माता सुनील दर्शन और निर्देशक राजेश पांडे की फिल्म 'कर ले प्यार कर ले' के टाइटल में 'प्यार' की जगह 'मार' लिखा जाता तो अधिक सुसंगत होता है। फिल्म के मुख्य किरदार आरंभ से अंत तक छूटते ही मारधाड़ करते रहते हैं। 'कल ले प्यार कर ले' निर्माता-निर्देशक सुनील दर्शन के बेटे शिव दर्शन की पहली फिल्म है। स्टार पुत्रों की लॉन्चिग फिल्मों की परंपरा में इस फिल्म में भी शिव दर्शन की क्षमताओं का प्रदर्शन किया गया है। सारे दृश्य इस लिहाज से ही रचे गए हैं कि हिंदी फिल्मों के हीरो के प्रचलित गुणों को दिखाया जा कसे। रोमांस, एक्शन और इमोशन में सबसे ज्यादा जोर एक्शन पर रहा है। फिल्म के हीरो को दमदार दिखाने के लिए सभी सहयोगी भूमिकाओं में साधारण किलकारों का चयन किया गया है। निर्माता-निर्देशक को डर रहा होगा कि किसी भी दृश्य में कोई अन्य दर्शकों को आकर्षित न कर ले। इस प्रयास में फिल्म इतनी कमजोर हो गई है कि थोड़ी देर के लिए भी बांध नहीं पाती। 'कल ले प्यार कर ले' देखते हुए महसूस हुआ कि युवा कलाकारों की संवाद अदायगी लगभग एक सी हो गई है