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फ़िल्म समीक्षा:जाने तू या जाने ना

कुछ नया नहीं, फिर भी नॉवल्टी है -अजय ब्रह्मात्मज रियलिस्टिक अंदाज में बनी एंटरटेनिंग फिल्म है जाने तू या जाने ना। एक ऐसी प्रेम कहानी जो हमारे गली-मोहल्लों और बिल्डिंगों में आए दिन सुनाई पड़ती है। जाने तू... की संरचना देखें। इस फिल्म से एक भी किरदार को आप खिसका नहीं सकते। कहानी का ऐसा पुष्ट ताना-बाना है कि एक सूत भी इधर से उधर नहीं किया जा सकता। सबसे पहले अब्बास टायरवाला लेखक के तौर पर बधाई के पात्र हैं। एयरपोर्ट पर ग्रुप के सबसे प्रिय दोस्तों की अगवानी के लिए आए चंद दोस्त एक दोस्त की नई गर्लफ्रेंड को प्रभावित करने के लिए उनकी (जय और अदिति) कहानी सुनाना आरंभ करते हैं। शुरू में प्रेम कहानी के नाम पर मुंह बिचका रही माला फिल्म के अंत में जय और अदिति से यों मिलती है, जैसे वह उन्हें सालों से जानती है। दर्शकों की स्थिति माला जैसी ही है। शुरू में आशंका होती है कि पता नहीं क्या फिल्म होगी और अंत में हम सभी फिल्म के किरदारों के दोस्त बन जाते हैं। माना जाता है कि हिंदी फिल्में लार्जर दैन लाइफ होती हैं, लेकिन जाने तू.. देख कर कहा जा सकता है कि निर्देशक समझदार और संवेदनशील हो तो फिल्म सिमलर टू लाइफ