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पटना सिने परिवेश : सैयद एस तौहीद

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सैयद एस तौहीद का यह लेख मुझे बहुत पहले मिल गया था। पोस्‍ट नहीं कर पाया था। पटना शहर के सिने परिवेश पर उन्‍होंने रोचक तरीके से लिखा है। हम सभी को अपने शहरों और कस्‍बों के बारे में लिखना चाहिए। सब कुछ इतनी तेजी से बदल रहा हैं कि हम खुद ही भूल जाएंगे पते,ठौर-ठिाने और किस्‍से...इन सब के साथ भूलेंगी यादें। पटना सिने वातावरण से गुजरा दौर बडे व्यापक रूप से ओझल होने की कगार पर है। आधुनिक समय की धारा में गुजरा वक्त अपनी ब्यार खो चुका है। नए समय में सिनेमा का जन-सुलभ वितरण अमीरों के शौक में बदलता जा रहा है। राजधानी के बहुत से सिंगल-स्क्रीन सिनेमाघर परिवर्तन एवं तालाबंदी के दौर से गुजररहे हैं। परिवर्तन की रफ्तार में यह इतिहास ‘आधुनिकता’ व बाजारवाद के लिए जगह बना रहा है । अतीत जो अब भी उस समय की याद लिए नगर में कहीं सिमटा पडा था। आज वह गुजरे वक्त की जुस्तजु को फिर भी हवा देता है । सबसे पहले बुध मार्ग के उजड चुके ‘पर्ल’ का जिक्र करना चाहिए। कहा जाता है कि यह अस्सी के उत्तरार्ध में तालाबंदी के अंधेरे में डूब गया। रेलवे स्टेशन करीब जबरदस्त लोकेशन पर इसे स्थापित किया गया था। संचालन के कुछ ही वर