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Showing posts from February, 2018

सिनेमालोक : श्री देवी की याद में

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सिनेमालोक श्री देवी की याद में -अजय ब्रह्मात्‍मज हम हिंदी भाषी और हिंदी दर्शक्‍ अपनी भाषा और समाज के दायरे में इस तरह लिप्‍त रहते हैं कि दूसरी भाषाओं के साहित्‍य और सिनेमा की कद्र नहीं करते। हमें अपनी हिंदी की दुनिया ही संपूर्ण लगती है। रविवार की सुबह आई श्री देवी के आकस्मिक निधन की मनहूस खबर के बाद वेब ,‍ इंटरनेट , अखबार और सोशल मीडिया पर उनसे संबंधित सामग्रियों और जानकारियों की अति पोस्टिंग हो रही है। इनमें से अधिकांश में उनकी हिंदी फिल्‍मों और मुंबई के जीवन की ही बातें हो रही हैं। हिंदी फिल्‍मों में तो उनकी पहली फिल्‍म ‘ सालवां सावन ’ 1979 में आई थी। उसके पहले वह अनेक तमिल और तेलुगू फिल्‍मों में काम कर चुकी थीं। हिंदी के दर्शक और पाठक उन फिल्‍मों के बारे में बातें नहीं करते , क्‍योंकि वे उनके बारे में नहीं जानते। और जानना भी नहीं चाहते। सिर्फगूगल कर लें तो भी मालूम हो जागा कि उन्‍होंने 1967 से 1979 के बीच लगभग एक दर्जन फिल्‍मों के औसत से 100 से अधिक फिल्‍मों में काम किया। कमल हासन के साथ ही उनकी 27 फिल्‍में हैं। अगर दक्षिण की भाषाओं की उनकी फिल्‍मों पर गौर करें तो उ

श्री देवी की सर्वाधिक लोकप्रिय फिल्‍म 'सदमा'

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श्री देवी की सर्वाधिक लोकप्रिय फिल्‍म -अजय ब्रह्मात्‍मज मैंने श्री देवी के आकस्मिक निधन की खबर आने के बाद फेसबुक के मित्रों से पूछा था कि श्री देवी की उनकी पसंदीदा फिल्‍म कौन सी है। मुझे 255 एंट्री मिली। मैंने गौर किया कि उनकी पॉपुलर फिल्‍मों की सूची में उनकी दक्षिण भारत की फिल्‍में नहीं है। केवल एक मित्र सूर्यन मौर्या ने एक तमिल फिल्‍म ‘ पतिनारु वयाथिनिले ’ का नाम लिया था। मैं जोर देकर यह बात दोहराना चाहता हूं कि सिनेप्रेमी और श्री देवी के हिंदी प्रशंसक उनकी तमिल और तेलुगू की फिल्‍में जरूर देखें। इस साल आयोजित होने वाले फिल्‍म फेस्टिवलों के निदेशकों से मेरा आग्रह रहेगा कि वे श्री देवी की फिल्‍मों के पुनरवालोकन में उनकी दक्षिण भारतीय फिल्‍में अवश्‍य दिखाएं। हिंदी फिल्‍मों में उनकी ख्‍याति कमर्शियल फिल्‍मों के स्‍टार के तौर पर है। उनकी उपलब्धि यह नहीं है कि उन्‍हें ‘लेडी अमिताभ’ कहा गया। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि और जिसे रेखांकित भी किया जाना चाहिए कि 54 साल की उम्र में ही उनका फिल्‍म करिअर 50 सालों का रहा। पांच दशकों का फिल्‍म करिअर सहज और आसान नहीं है। बहरहाल,मेरे सर्वेक्षण

हमने बहाने से छुपके ज़माने से तेरी हर इक अदा से दिल को लगाया : सुदीप्ति

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श्रीदेवी   हमने बहाने से छुपके ज़माने से तेरी हर इक अदा से दिल को लगाया - सुदीप्ति   इतवार की कोई सुबह ऐसे भी होगी , सोचा न   था ! थोड़ी नींद अभी बची हुई थी , कुछ अलसाया हुआ सा मन था . और फोन पर ठंडी सी खबर मिली -- “ श्रीदेवी नहीं रहीं . रात दिल के दौरे से देहांत हो गया .” सहसा यकीन नहीं हुआ . कौन श्री ? सच्ची ? ऐसा कैसे ? पलकों के कोर अनायास गीले हो गये . रोना किसी अपने के जाने पर आता है और श्री से अपना जो नाता था वह करीब उनतीस साल पुराना , खासा ‘ अपना ’, था . वो मेरे सपनों की रानी थी . हँसिए मत . कहीं नहीं लिखा हुआ है कि लड़कियों के सपनों के राजकुमार ही होते हैं . श्री के लिए ‘ थी ’ लिखना अभी भी आँसू लाने वाला है . बरसों तक उसकी एक - एक छवि को संजोया हुआ वक़्त आँखों के सामने से गुज़रा जा रहा है . बड़े होने के बाद ‘ फैन ’ होने की भावात्मक मूर्खताओं से जब काफी दूर हो गई तब भी श्री के लिए बहसों में पड़ी और उसको लेकर एक नोस्टाल