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जागने और बदलने की ललकार : रण

एक नई कोशिश चवन्‍नी पर दूसरे समीक्षकों की समीक्षा देने की बात लंबे समय से दिमाग में थी,लेकिन अपने समीक्षक गण कोई उत्‍साह नहीं दिखा रहे थे। पिछले दिनों गौरव सोलंकी से बात हुई तो उन्‍होंने उत्‍साह दिखाया। वायदे के मुताबिक उनका रिव्‍यू आ भी गया।यह तहलका में प्रकाशित हुआ है। कोशिश है कि हिंदी में फि‍ल्‍मों को लकर लिखी जा रही संजीदा बातें एक जगह आ जाएं। अगर आप को कोई रिव्‍यू या लेख या और कुछ चवन्‍नी के लिए प्रासंगिक लगे तो प्‍लीज लिंक या मेल भेज दे।पता है chavannichap@gmail.com फिल्म समीक्षा फिल्म रण निर्देशक राम गोपाल वर्मा कलाकार अमिताभ बान , रितेश देशमुख , सुदीप , गुल पनाग रण कोई नई बात नहीं कहती. यह जिस मिशन को लेकर चलती है , वह कोई खोज या चमत्कार नहीं है और यही बात रण को खास बनाती है. वह सुबह के जितनी नई होने का दावा नहीं करती , लेकिन जागने के लिए आपको उससे बेहतर कोई और ललकारता भी नहीं. यह उन न्यूज चैनलों के बारे में है जो ख़बरों के नाम पर हमारे शयनकक्षों में चौबीस घंटे सेक्स , अपराध और फिल्मी गपशप की सच्ची झूठी , मसालेदार कहानियां सप्लाई कर रहे हैं और उन मनोहर कहानियों का आनंद ले

फिल्‍म समीक्षा : रण

मध्यवर्गीय मूल्यों की जीत है रण -अजय ब्रह्मात्‍मज राम गोपाल वर्मा उर्फ रामू की रण एक साथ पश्चाताप और तमाचे की तरह है, जो मीडिया केएक जिम्मेदार माध्यम की कमियों और अंतर्विरोधों को उजागर करती है। रामू समय-समय पर शहरी जीवन को प्रभावित कर रहे मुद्दों को अपनी फिल्म का विषय बनाते हैं। पिछले कुछ सालों से इलेक्ट्रोनिक मीडिया के प्रभाव और उसमें फैल रहे भ्रष्टाचार पर विमर्श चल रहा है। रामू ने रण में उसी विमर्श को एकांगी तरीके से पेश किया है। फिल्म का निष्कर्ष है कि मीडिया मुनाफे के लोभ और टीआरपी के दबाव में भ्रष्ट होने को अभिशप्त है, लेकिन आखिर में विजय हर्षव‌र्द्धन मलिक और पूरब शास्त्री के विवेक और ईमानदारी से सुधरने की संभावना बाकी दिखती है। मुख्य रूप से इंडिया 24-7 चैनल के सरवाइवल का सवाल है। इसके मालिक और प्रमुख एंकर विजय हर्षव‌र्द्धन मलिक अपनी जिम्मेदारी और मीडिया के महत्व को समझते हैं। सच्ची और वस्तुनिष्ठ खबरों में उनका यकीन है। उनके चैनल से निकला अंबरीष कक्कड़ एक नया चैनल आरंभ करता है और मसालेदार खबरों से जल्दी ही टाप पर पहुंच जाता है। विजय हर्षव‌र्द्धन मलिक के बेटे जय मलिक की चि

खबरों को लेकर मची जंग है रण-रामगोपाल

एक समय था कि राम गोपाल वर्मा की फैक्ट्री का स्टांप लगने मात्र से नए एक्टर, डायरेक्टर और टेक्नीशियन को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री और आईडेंटिटी मिल जाती थी। वे आज भी यही कर रहे हैं, लेकिन राम गोपाल वर्मा की आग के बाद उनकी क्रिएटिव लपटों में थोड़ा कम ताप महसूस किया जा रहा है। अपनी ताजा फिल्म रण में उन्होंने इलेक्ट्रानिक मीडिया के माहौल को समझने की कोशिश की है। वे इस फिल्म को महत्वपूर्ण मानते हैं और यह है भी- [मीडिया पर फिल्म बनाने की बात कैसे सूझी?] न्यूज चैनलों में आए विस्फोट के बाद से ही मेरी जिज्ञासा थी कि अचानक लोगों की रुचि समाचारों में बढ़ गयी है या फिर न्यूज चैनलों का अपना कोई स्वार्थ है? मैं इसे समझने की कोशिश में लगा था। दो साल पहले एक चैनल पर समाचार देखते हुए मुझे लगा कि अभी तो किसी भी रिपोर्ट को एडिट से विश्वसनीय बनाया जा सकता है। न्यूज मेकिंग लगभग फिल्म मेकिंग की तरह हो गयी है। वास्तविक तथ्यों और फुटेज को जोड़कर आप किसी भी घटना का फोकस बदल सकते हैं। सवाल है कि खबरें बनती हैं या बनायी जाती है? ऐसी बातों और घटनाओं ने मुझे रण बनाने के लिए प्रेरित किया। [आपने फिल्म बनायी है,

रामू के रण में जन गण मन

जन गण मन रण है इस रण में ज़ख्मी हुआ है भारत का भाग्यविधाता पंजाब सिंध गुजरात मराठा एक दूसरे से लड़कर मर रहे हैं इस देश ने हमको एक किया हम देश के टुकड़े कर रहे हैं द्रविड़ उत्कल बंगा खून बहा कर एक रंग का कर दिया हमने तिरंगा सरहदों पे ज़ंग और गलियों में फसाद दंगा विन्ध हिमाचल यमुना गंगा में तेजाब उबल रहा है मर गया सब का ज़मीर जाने कब जिंदा हो आगे फिर भी तव शुभ नामे जागे तव शुभ आशीष मांगे आग में जल कर चीख रहा है फिर भी कोई सच को नहीं बचाता गाहे तव जय गाथा देश का ऐसा हाल है लेकिन आपस में लड़ रहे नेता जन गण मंगल दायक जय हे भारत को बचा ले विधाता जय है या यह मरण है जन गण मन रण है