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ताजा उम्मीदें 2011 की

-अजय ब्रह्मात्‍मज साल बदलने से हाल नहीं बदलता। हिंदी फिल्मों के प्रति निगेटिव रवैया रखने वाले दुखी दर्शकों और सिनेप्रेमियों से यह टिप्पणी सुनने को मिल सकती है। एक तरह से विचार करें तो कैलेंडर की तारीख बदलने मात्र से ही कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। परिवर्तन और बदलाव की प्रक्रिया चलती रहती है। हां, जब कोई प्रवृत्ति या ट्रेंड जोर पकड़ लेता है, तो हम परिवर्तन को एक नाम और तारीख दे देते हैं। इस लिहाज से 2010 छोटी फिल्मों की कामयाबी का निर्णायक साल कहा जा सकता है। सतसइया के दोहों की तरह देखने में छोटी प्रतीत हो रही इन फिल्मों ने बड़ा कमाल किया। दरअसल.. 2010 में छोटी फिल्मों ने ही हिंदी फिल्मों के कथ्य का विस्तार किया। दबंग, राजनीति और तीस मार खां ने हिंदी फिल्मों के बिजनेस को नई ऊंचाई पर जरूर पहुंचा दिया, किंतु कथ्य, शिल्प और प्रस्तुति में छोटी फिल्मों ने बाजी मारी। उन्होंने आश्वस्त किया कि हिंदी सिनेमा की फार्मूलेबाजी और एकरूपता के आग्रह के बावजूद नई छोटी फिल्मों के प्रयोग से ही दर्शकों के अनुभव और आनंद के दायरे का विस्तार होगा। छोटी फिल्मों में प्रयोग की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं। सबसे पहली